निशांत मिश्रा – एक उभरते हुए लेखक हैं, मुलत: मिथिला प्रांत के मधुबनी जिले के रहने वाले हैं, इनकी शिक्षा संघ के विद्यालय से हुई है। स्नातक देशबंदु महाविद्यालय से हुई है। इनकी रुचि देश विदेश की राजनीति में है।
कहते है जब कोयला पर हद से ज़्यादा दवाब पड़ने लगता है तो कोयला हीरा का रूप लेना प्रारम्भ कर देता है ऐसी ही कुछ कहानी है एक बालक की जिनका जन्म केदारखंड में एक सामान्य परिवार में हुआ, माता जी गृहणी और पिता जी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे तथा एक ज्येष्ट भ्राता भी, बालक की शिक्षा दीक्षा आठवीं तक गांव में ही हुई, जिसमे छठी से आठवीं तक की शिक्षा विद्या मंदिर में हुई, वहीं से बालक का रुझान संघ की ओर गया क्यूकी ज्येष्ठ भाई शुरूआती दौर से ही संघ के स्वयंसेवक थे, बालक का संघ प्रवेश सन् 1996 में पहली बार हुआ, उस समय बालक का स्वभाव थोड़ा सा हठी और ज़िद्दी प्रवृति का था, जिसके कारण घर के लोग बालक के कारण परेशान रहा करते थे, गांव के लोग बालक के करनी की शिकयात घर लेकर आया करते थे जिसके कारण घर में अधिकतम लड़ाई का माहोल रहा करता था, तत्पश्चात बालक को पहली बार घर के लोगो के द्वारा जबरन सन् 1998 अपनी जन्मभूमि केदारखंड को छोड़ दिल्ली आना पड़ा, जहाँ उनको आगे की पढ़ाई गुरुकुल में करनी थी, बालक जब अपने गाँव की वो मनोरम वादियों और अपनी मित्रों से दूर दिल्ली आया तब वो बालक एकांत में खूब रोया करता था, क्यूकी बालक वेद गुरुकुल में पढ़ने आया था, इसके कारण गुरुकुल के परम्परा अनुसार बालक का यज्ञोपवित कराया गया।
सन् 1998 में पहली बार बालक अपने रहन सहन से भिन्न एक ऐसे समुदाई विशेष को अपने अनुभव मे पाया जिसकी बालक को अपने बालकाल से युवा अवस्था तक कोई अपेक्षा नही थी, उनकी क्रियाकलाप जैसे अनिमित्त अज़ान, चिलों को मास खिलाना, कबतूरवाज़ी आदि देख बालक अपने को सहज नही पाता था। इसी के बीच बालक ने पूरे चार वर्ष पूरी निष्ठा से विद्या ग्रहण किया जहाँ का शुल्क भी उस समय सामान्य से कम ही था। उसके उपरांत बालक जब अपने गांव गया तब उसका व्यक्तित्व पूर्ण रूप से बदला हुआ था, जिस बालक को गांव में हठी व ज़िद्दी की संज्ञा दी जाती थी वो बालक पूर्णतः धीर, गंभीर वो अनुशाषित नज़र आ रहा था, जो की असाधारण कल्पना थी, बालक को दिल्ली भेजनें में उनकी माता का ही पूरा योगदान रहा तथा सबसे ज्यादा बालक के लिए आंसू भी उन्ही कि माता के ही निकलते थे। जब तक वह बालक अपनी माता के साथ रहता था, तब तक बालक के लिए ममत्व का अर्थ मानो पराया सा रहा, परन्तु वहाँ से निकलने के पश्चात माँ की ममता के विषय में अनुभव हुआ।
वेद विद्यालय में खेल-कूद प्रतियोगिता में भाग लेते लेते उस माहोल में ढलने लग गए वही से उस बालक में गज़ब का परिवर्तन हुआ। और वही से बालक मे देश और राष्ट्र के प्रति चिंतन की लौ जागृत हुई । विश्व हिंदू की धर्मसंसद में सन् 2001 में उस बालक का जाना हुआ था, उस समय संगठन के लोगों से परिचय होना शुरु हो गया। बालक ने बारहवीं उत्तीर्ण करने के उपरांत दाखिला के लिए सन् 2002 में लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ में साक्षात्कार परीक्षा आदि के बाद दाखिला प्राप्त किया। तथा स्नातक संस्कृति में सर्वदर्शन में किया, वहीं ( एन. सी.सी. ) में भी जुड़ सीनियर आर्मी विंग में (अंडर ऑफिसर) बने। कुल बारह कैंप करने के बाद वाईस चांसलर (भी. सी.) के द्वारा बेस्ट (कैडेट अवार्ड) तथा डायरेक्टिर जनरल ( डी. जी. ) के द्वारा (बेस्ट फायरिंग) का अवार्ड प्राप्त किया। उसी अंतराल में केंद्रीय अधिकारियों के सम्पर्क में आए केंद्रीय कार्यलय विश्व हिंदू परिषद तथा संस्कृति विभाग से जुड़े, यहाँ से जीवन के परिवर्तन का दूसरा पड़ाव शुरु हुआ।
विश्व हिंदू परिषद में वरिष्ठ प्रचारकों के साथ रहने का अवसर मिला जिनमे स्वर्गीय माननीय ओमकार भावे जी, स्वर्गीय माननीय शरद लघाटे जी, स्वर्गीय माननीय अशोक सिंघल जी, स्वर्गीय माननीय बाल कृष्ण नायर जी, स्वर्गीय माननीय स्वामी जी, स्वर्गीय माननीय ओम प्रकाश गर्ग जी, स्वर्गीय माननीय मोहन जोशी जी जैसे दिग्गज़ श्रेणी के व्यक्तित्व के लोग मौजूद थे। इसके अलावा जी अभी भी मार्गदर्शन कर रहे हैँ माननीय चंपत राय जी, माननीय दिनेश जी, माननीय विजय जी, माननीय जीवेश्वर जी, माननीय वीरेंद्र जी, माननीय युगल किशोर जी, माननीय विज्ञानंद जी, माननीय मुकेश जी, माननीय मनोड़ी जी, माननीय पंकज जी ऐसे अनेक प्रचारकों का सानिध्य प्राप्त होता रहा, वही शाखा पर निरंतर जाना होता रहा उसके उपरांत सन् 2005-6 में मुख्य शिक्षक, शाखा कार्यवाह, विद्यार्थी शाखा कार्यवाह, नगर सायं कार्यवाह रहें।
उसी कालखण्ड में स्नातक तथा बी.एड. उसके पश्चात एम.एड. किया। विभाग प्रचारक आदरणीय हरिश जी के सानिध्य में आकर और अधिक संघ को समझने का अवसर मिला। तथा सन् 2009 में पहला प्राथमिक सन् 2010 में प्रथम वर्ष, सन् 2011 में द्वितिय वर्ष में जाते समय स्वयं विभाग प्रचारक स्टेशन तक छोड़ने आए तथा प्रांत प्रमुख बनकर द्वितीय वर्ष में प्रांत प्रमुख बनाकर के गए श्रीमान कमलजीत जी प्रचारक जीवन की योजना आदरणीय हरीश जी आदरणीय अनिल कांत जी निवर्तमान प्रांत प्रचारक तथा मा. प्रेम कुमार जी निवर्तमान क्षेत्र प्रचारक द्वारा बनाई गई, उसी समय एम. एड. पूर्ण करने पर दिल्ली सरकारी विद्यालय में गेस्ट टीचर के रूप में अध्यापन का कार्य किया, तत्पश्चात सन् 2011 में संघ के प्रचारक के रूप में द्वारका नगर द्विजिला, फिर पश्चिमी विभाग प्रचारक, रामकृष्ण पुरम विभाग प्रचारक, उत्तरी विभाग प्रचारक रहते हुए तेरह वर्ष तक शाखा क्षेत्र में कार्य करते रहे। जुलाई 2023 से प्रांत संगठन मंत्री के रूप में विश्व हिंदू परिषद में सेवा कर कार्यरत हैँ।
एक संकल्प एक ध्ये को लेकर सामान्य स्वंसेवक से प्रचारक तक का सफर हर कोई तय नही कर पाता है। समाज कल्याण राष्ट्र कल्याण और राष्ट्र कल्याण से विश्व कल्याण की अवधारणा को लेकर चलने वाले हमारे उस अविरल स्वंसेवक की कहानी उनके व्यक्तित्व चरित्र और स्वभाव में आज भी अमर है।