मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ था जन्म
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन परिचय
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी एक उत्कृष्ट सांसद थे जिनका हमारे अग्रणी राष्ट्रीय नेताओं में प्रमुख स्थान है। अपने दृढ़ संकल्प, समर्पण और दूरदर्शिता के लिए विख्यात अटल बिहारी वाजपेयी देश में विकास संबंधी बड़े बदलाव लाने में एक प्रकाश स्तम्भ की तरह रहे हैं।
अपने बहुआयामी व्यक्तित्व और स्वयं को अभिव्यक्त करने की अपनी अनुपम वाक् कला से वे सभी के दिल को छू लेते थे। उनका शानदार राजनीतिक जीवन जमीनी स्तर से राष्ट्रीय स्तर पर शिखर तक पहुंचने की उनकी उल्लेखनीय यात्रा का साक्षी रहा है। उनका दृढ़ विश्वास था कि हमारे लोकतांत्रिक अस्तित्व के लिए संसदीय लोकतंत्र की उच्चतम परम्पराओं को अक्षुण्ण बनाए रखना अनिवार्य है।
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म स्थान
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। उनके पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम मती कृष्णा देवी था। अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा ग्वालियर के गोरखी स्थित सरस्वती शिशु मंदिर से प्राप्त की। उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्वी बाई कॉलेज) से हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी विषयों के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की और उसके बाद उन्होंने कानपुर, उत्तर प्रदेश के डी.ए.वी. कॉलेज से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। एम.ए. करने के उपरांत, अटल बिहारी बाजपेयी पी.एच.डी. करने के लिए लखनऊ आ गए।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े
लखनऊ में ही वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्य से जुड़ गए जिसके वह वर्ष 1939 से हो सदस्य थे। इसके साथ-साथ उन्होंने हिन्दी मासिक राष्ट्रधर्म; साप्ताहिक पांचजन्य: और दैनिक स्वदेश तथा बोर अर्जुन के लिए भी कार्य किया। इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयो आर्य समाज के युवा स्कन्ध, आर्य कुमार सभा, ग्वालियर से भी जुड़े रहे। आर्य कुमार सभा से जुड़ाव ने उनके युवा संवेदनशील मन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला और उन्हें जीवन में एक नई दिशा दी तथा उद्देश्य प्रदान किया।
भारतीय जनसंघ पार्टी की स्थापना की
अपने समय के प्रत्येक युवा की भांति अटल बिहारी वाजपेयी भी उस समय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह जेल भी गए थे। बाद में, जब 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जन संघ पार्टी की स्थापना की तो दीनदयाल उपाध्याय के साथ मिलकर अटल बिहारी जी ने इस नवगठित पार्टी के लिए कार्य किया।
जन संघ के तत्कालीन नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें अपना सहायक और सचिव बनाया। कश्मीर के संबंध में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रेरक भाषणों, कश्मीर के लिए उनके विरोध प्रदर्शनों, अनशन और संघर्ष तथा बाद में उनकी मृत्यु ने युवा वाजपेयी पर गहरा प्रभाव डाला।
33 वर्ष की आयु में लोकसभा के लिए निर्वाचित
पृष्ठभूमि में वाजपेयी जी की सशक्त नेतृत्व क्षमता और करिश्माई व्यक्तित्व ने उन्हें राजनीति की अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया। इसीलिए जब वर्ष 1957 में 33 वर्ष की आयु में वह लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए तो किसी को अचंभा नहीं हुआ। उस समय सभा को सुशोभित करने वाले अनेक दिग्गज संसद सदस्यों के सानिध्य में रहकर वह एक उत्कृष्ट सांसद के रूप में उभरे।
यद्यपि, वह पहली बार संसद सदस्य बने थे तथापि, वह उन्मुक्त भाव और निर्भीकता से बोलते थे। एक श्रेष्ठ वाद-विवाद करने वाले और प्रतिभासम्पन्न वक्ता के रूप में उन्होंने अपने पाडित्यपूर्ण उद्बोधनों से संसदीय कार्यवाही को समृद्ध बनाने में बहुमूल्य योगदान दिया।
दस बार लोकसभा के लिए निर्वाचित
अटल बिहारी वाजपेयी ने दूसरी लोक सभा के लिए उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से निर्वाचित होकर अपने संसदीय जीवन का आरंभ किया। वह लोक सभा के लिए दस बार और राज्य सभा के लिए दो बार निर्वाचित हुए। यह उनके नेतृत्व में लोगों के अगाध विश्वास और भरोसे को दर्शाता है।
एक सांसद के रूप में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण संसदीय समितियों जैसे लोक लेखा समिति, विदेशी मामलों सबधी समिति और याचिका समिति के सभापति का दायित्व संभाला। नेता प्रतिपक्ष के रूप में, उन्होंने पूरी गरिमा और मर्यादा बनाए रखो।
अटल बिहारी वाजपेयी कार्यकाल
अटल बिहारी वाजपेयी मोहक व्यक्तित्व और तीक्ष्ण बुद्धि के धनी थे जिसके चलते वह आसानी से राजनीतिक सहयोग प्राप्त कर पाए। उद्देश्य के प्रति उनकी ईमानदारी और मिलनसार स्वभाव के कारण वैचारिक तथा राजनीतिक मतभेदों के बावजूद भी उन्हें अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं में सहयोग प्राप्त होता था। उनमें सभी राजनीतिक दलों के बीच मतभेदों को समाप्त करने और आम सहमति बनाने की विलक्षण क्षमता थी। वाजपेयी ने लंबे समय से अपने सहयोगी रहे एल.के. आडवाणी के साथ 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया और वह राजनीति में इस नव गठित दल के लिए स्थान बनाने में सफल रहे।
भारतीय जनता पार्टी के उत्थान में उनके द्वारा रखी गई सुदृढ़ नीव का बड़ा योगदान रहा है। तदुपरांत, वाजपेयी 1996 से 2004 के बीच तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने उत्कृष्ट नेतृत्व प्रदान किया और सम्पूर्ण विश्व से सराहना प्राप्त की। वह संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री थे।
अटल बिहारी वाजपेयी कितनी बार प्रधानमंत्री बने
एक राजनेता, विशेषकर एक प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी के अनेक योगदान इतिहास में मील के पत्थर सिद्ध होंगे। चाहे वह सुदृढ़ अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करने वाले आर्थिक सुधार हों अथवा अवसंरचना विकास हो जिसने भारत को उच्चस्तरीय एक्सप्रेस राजमार्गों के माध्यम से देश को जोड़ने वाला स्वर्णिम चतुर्भुज प्रदान किया है।
सामरिक महत्व के मुद्दों और विदेशी मामलों की अपनी गहन समझ से उन्होंने विश्वस्तर पर भारत के सम्मान को और बढ़ाया। उन्होंने स्वयं को एक महान राजनेता और वैश्विक नेता के रूप में प्रतिष्ठित किया।
उनके कार्यकाल के दौरान, पड़ोसी देशों के साथ संबंध एक नई ऊंचाई पर पहुंच गए थे। पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रति उनके सरोकार को दिल्ली लाहौर बस सेवा की उनकी पहल के माध्यम से देखा जा सकता है। वह विश्व की महाशक्तियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने में भी सफल रहे।
उनके नेतृत्व में भारत अपने रास्ते में आने वाली किसी भी कठिन परिस्थिति का कुशलतापूर्वक सामना करने में सक्षम था। उनक संकल्प ने विश्व को दिखला दिया कि अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा में भारत एक संकल्पित राष्ट्र है। कई अवसरों पर उन्होंने अपने भाषणों में आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयाग के माध्यम से एक बहतर बिश्व की पुरजोर वकालत की और वैश्विक समुदाय से स्वतंत्रता और न्याय पर आधारित सार्वभौमिक शांति हेतु अपील की।
विकास कार्य प्राथमिकता
भारत का विकास उनकी कार्य सूची में सर्वप्रथम था। उनकी सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया का प्रसार किया और भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्रों की भागीदारी को सुकर बनाया। वे चाहते थे कि भारतीय उद्योग प्रतिस्पर्धी बने और भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम हो।
व्यापार और उद्योगों संबंधी प्रधानमंत्री परिषद की तीसरी बैठक के दौरान, 2 दिसम्बर 2000 को बोलते हुए उन्होंने जो कुछ भी कहा उसको याद करना यहां उचित होगा।
उन्होंने कहा, “प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए भारतीय उद्योग को स्वयं को उसके अनुरूप बनाना चाहिए। अति सुरक्षावादी दृष्टिकोण से केवल अकुशलता ही बढ़ेगी। इससे निष्क्रियता बढ़ेगी। भारतीय उद्योगों को प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम बनाने हेतु आवश्यक कदम क्या हैं? हमारे पास एक कार्यनीति और एक रूपरेखा होनी चाहिए। आज हम उस पर बात करें। इसके साथ ही हम इस पर भी बात करें कि उद्योगों के हितों और उपभोक्ताओं के हितों के बीच कैसे संतुलन बनाएं और उत्पादकता में हुई वृद्धि को सतत परिवर्तन के साथ कैसे जोड़ा जाए”?
विकास योजनाएं
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना स्वर्णिम चतुर्भुज का शुभारंभ, लाखों गरीब परिवारों को रियायती भोजन प्रदान करने के लिए वर्ष 2000 में प्रारंभ की गई अंत्योदय अन्न योजना तथा साक्षरता के प्रसार के लिए वर्ष 2000-01 से लागू सर्व शिक्षा अभियान, प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्य काल के दौरान उठाए गए कुछ उल्लेखनीय कदम हैं।
वाजपेयी जी ने शिक्षा को बनाया मूल अधिकार
यह वाजपेयी थे जो शिक्षा को मूल अधिकार बनाने के लिए संविधान का 86वां संशोधन लाये थे। इस अधिनियम से 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार मिला। पोखरण परमाणु परीक्षण और आतंकवाद-रोधी अधिनियम, राष्ट्र हित के संरक्षण के प्रति उनके निश्चय और साहस को दर्शाता है।
प्रवासी भारतीय दिवस का शुभारंभ
देश के विकास में प्रवासी भारतीयों को जोड़ना उनके द्वारा किया गया एक अन्य प्रयास था। उनकी पहल के कारण हो आज प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है और प्रवासी भारतीय सम्मान प्रदान किया जाता है।
औद्यागिक और सरकारी अवसंरचना के आधुनिकीकरण, विदेशी निवेश में वृद्धि, सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में तेजी में विकास, नई नौकरियों के सूजन, औद्योगिक विस्तार और कृषि क्षेत्र में अधिक उत्पादन में देश को अंतर्राष्ट्रीय शांति में अत्यधिक सुधार हुआ है।
पुरस्कार और सम्मान
संसदीय और राजनीतिक जीवन में अपने योगदान के साथ ही राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी की भूरि-भूरि प्रशंसा की जाती है। अन्य उपाधियों के साथ-साथ उन्हें 1992 में पद्म विभूषण, 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट., 1994 में पंडित गोविंद बल्लभ पन्त उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार और लोकमान्य तिलक पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
वर्ष 2015 में उन्हें भारत रत्न से सुशोभित किया गया। इसी वर्ष बंगलादेश सरकार ने उन्हें बंगलादेश “मुक्तियुद्ध सम्मान” प्रदान किया।
अटल बिहारी वाजपेयी जी एक उत्कृष्ट राजनेता होने के साथ-साथ एक महान व्यक्ति भी थे। उनके लेखों और भाषणों में उनकी भावनाओं की गहराई प्रतिबिंबित होती है। भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में आने से पहले ही उनकी कविताओं और लेखों को भरपूर सराहना मिल चुकी थी। उनकी कविताओं में आम आदमी की अपेक्षाओं की झलक दिखती थी।
वाजपेयी ने सादा और अनुकरणीय जीवन व्यतीत किया। उन्होंने ग्वालियर में स्थित अपनी एकमात्र संपत्ति को कृष्ण बिहारी वाजपेयी न्यास के अंतर्गत बच्चों के लिए अध्ययन कक्ष में परिवर्तित कर दिया। यह न्यास अनेक कार्यकलापों को प्रोत्साहित करता है जिसमें साक्षरता को बढ़ावा देना, प्रशिक्षण संस्थान, विद्यालय और पुस्तकालय स्थापित करना, महिलाओं, बच्चों और दलित लोगों के लिए स्वास्थ्य देखभाल, पोषण परियोजनाएं तथा कल्याणकारी कार्यकलाप शुरू करना शामिल है।
निधन
अटल बिहारी वाजपेयी का निधन 16 अगस्त, 2018 को 93 वर्ष की आयु में हुआ। उनके निधन से भारत ने अपने एक ऐसे महान सपूत को खो दिया जिसने लोगों और राष्ट्र के कल्याण तथा हित के लिए अमूल्य योगदान दिया। राजनीति में उनके मूल्य आधारित और समावेशी दृष्टिकोण के प्रति प्रतिबद्धता आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत रहेगी।
एक सच्चे नेता, एक अनुभवी राजनता और एक उत्कृष्ट व्यक्ति के रूप में उन्हें देश के सभी क्षेत्रा और पीड़ियों में स्नेह और आदर प्राप्त हुआ। उनके निधन पर प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में जनता न भी अपने प्रिय नेता को श्रद्धांजलि अर्पित की।
वाजपेयी जी की नेतृत्व क्षमता, दृढ़ निश्चय और दूरदर्शिता उनकी इस प्रसिद्ध कविता में परिलक्षित होती है:
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा,
काल के कंपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
प्रख्यात शख्सियतों ने अर्पित की श्रद्धांजलि
अटल बिहारी वाजपेयी को आधुनिक भारत के राजनेता बताते हुए भारत के माननीय राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा कि “अटलजी वास्तव में भारतीय राजनीति में पुनर्जागृति लाने वाले व्यक्ति थे।”
उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए भारत के माननीय उप-राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने कहा कि “निस्संदेह वह स्वतंत्र भारत के महानतम नेताओं में से एक थे। लोकतंत्र को सुदृढ़ करने और सुशासन प्रदान करने में उनका विलक्षण योगदान रहा है।”
भारत के माननीय प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि “हमारे प्रिय अटलजी के निधन से भारत शोक संतप्त है। उनके निधन से एक युग का अंत हो गया है।”
उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लोक सभा की माननीय अध्यक्ष मती सुमित्रा महाजन ने कहा कि “वह केवल भारत रत्न ही नहीं थे अपितु वास्तव में हमारी मातृभूमि के सच्चे सपूत थे।” उन्हें “भारत माता का महानतम सपूत” बताते हुए उन्होंने कहा कि “लोग उनके आकर्षक व्यक्तित्व के जादुई प्रभाव से अभिभूत हो जाते थे” और “उनके निधन से हमने एक ऐसे सच्चे दूरदर्शी व्यक्ति को खो दिया है जिसने भारत को हमारे सपनों की भूमि बनाने का स्वप्न देखा था और हमारे सपनों को साकार करने के लिए अथक प्रयास किए थे। उनके निधन से अपूरणीय क्षति हुई है।”