swami shailendra saraswati ji
swami shailendra saraswati ji

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में प्रत्येक शख्स के लिए काम आएंगी स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती की यह बातें

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

भागदौड़ भरी जिंदगी, करियर का प्रेशर और सोशल मीडिया के शोर के बीच आज का युवा सबसे ज्यादा जिस सवाल से जूझ रहा है, वह है—आखिर मन को शांत और ध्यान कैसे करें? अक्सर हमें लगता है कि ध्यान का मतलब है किसी मंत्र का जाप करना या जबरदस्ती विचारों को रोकना। लेकिन, हाल ही में ओशो धारा के प्रख्यात संत स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने साधकों को संबोधित करते हुए ध्यान की एक ऐसी परिभाषा दी है, जो मॉडर्न साइंस और प्राचीन शिव सूत्र का अद्भुत संगम है।

स्वामी जी ने एक बहुत ही रोचक कथा और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के माध्यम से बताया कि हम जिसे ‘खुशी’ बाहरी दुनिया में ढूंढ रहे हैं, वह दरअसल हमारे भीतर ही मौजूद है। उन्होंने ‘पैसिव अवेयरनेस’ (Passive Awareness) यानी निष्क्रिय जागरूकता को ही असली मेडिटेशन बताया है। यह रिपोर्ट न केवल आपको ध्यान की गहराइयों में ले जाएगी बल्कि आपके जीवन को तनाव मुक्त बनाने का एक नया नजरिया (New Perspective) भी देगी।

तीन मित्र और एक साधु: एक दिलचस्प वाकया

ध्यान की अवस्था को समझाने के लिए स्वामी जी ने एक बहुत ही व्यावहारिक उदाहरण दिया। उन्होंने तीन युवकों की कहानी सुनाई जो जंगल के रास्ते मॉर्निंग वॉक पर निकले थे। उनकी नजर पहाड़ी पर खड़े एक साधु पर पड़ी। तीनों दोस्तों में बहस छिड़ गई कि आखिर वह साधु वहां कर क्या रहा है?

  1. पहले मित्र का अनुमान: उसने सोचा कि साधु अपने पीछे छूट गए साथियों का इंतजार (Waiting) कर रहा है।
  2. दूसरे मित्र का तर्क: उसने कहा कि साधु पीछे मुड़कर नहीं देख रहा, बल्कि नीचे देख रहा है। शायद उसकी गाय या भैंस खो गई है और वह उसे खोज (Searching) रहा है।
  3. तीसरे मित्र का विचार: उसने कहा कि साधु स्थिर है, शायद वह ईश्वर की प्रार्थना या याचना (Praying) कर रहा है।

सच्चाई जानने के लिए जब वे साधु के पास पहुंचे, तो जवाब सुनकर वे दंग रह गए। साधु ने तीनों की बातों को खारिज कर दिया। उसने कहा, “न मैं किसी का इंतजार कर रहा हूँ क्योंकि हम अकेले आए हैं और अकेले ही जाना है। न मैं कुछ खोज रहा हूँ क्योंकि मैंने वह पा लिया है जो पाने योग्य है (आत्मज्ञान)। और न ही मैं प्रार्थना कर रहा हूँ, क्योंकि मेरे भीतर अब कोई मांग या इच्छा शेष नहीं है।”

साधु ने जो अंतिम बात कही, वही ध्यान (Meditation) का मूल मंत्र है: “मैं बस हूँ। क्या मैं थोड़ी देर के लिए बिना कुछ किए नहीं हो सकता?”

Relaxed Awareness: ध्यान का असली विज्ञान

स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने इस घटना का विश्लेषण करते हुए युवाओं को समझाया कि समाज ने हमें हमेशा ‘कुछ न कुछ करने’ (Doing) की ट्रेनिंग दी है, लेकिन ‘होने’ (Being) की कला नहीं सिखाई।

वृक्ष, पहाड़ और चट्टानें सदियों से बिना किसी शिकायत के अस्तित्व में हैं। स्वामी जी ने तर्क दिया कि अगर प्रकृति को ‘सिर्फ होने’ की अनुमति है, तो मनुष्य को क्यों नहीं? उन्होंने स्पष्ट किया कि ध्यान कैसे करें, इसका जवाब किसी क्रिया में नहीं, बल्कि एक विशेष अवस्था में है।

“निष्क्रिय जागरूकता (Passive Awareness) ही ध्यान है। यानी शरीर पूरी तरह रिलैक्स्ड हो, जैसे गहरी नींद में होता है, लेकिन मन पूरी तरह जागा हुआ हो, जैसे किसी खतरे के समय होता है। जब ‘विश्राम’ और ‘होश’ का मिलन होता है, वही मैडिटेशन है।”

आनंद बाहर नहीं, आपके भीतर है (कस्तूरी मृग का भ्रम)

अक्सर हमें लगता है कि नई कार खरीदने, सुंदर सूर्यास्त देखने या किसी प्रिय व्यक्ति से मिलने पर हमें खुशी मिलती है। स्वामी जी ने इस भ्रम को तोड़ते हुए न्यूज अपडेट की तरह एक फ्रेश एंगल दिया। उन्होंने समझाया कि जब हम कोई अति सुंदर चीज देखते हैं, तो एक पल के लिए हमारा मन ‘विचार शून्य’ (Thoughtless) हो जाता है। उस सन्नाटे में हमारे भीतर का आनंद बाहर झलक पड़ता है।

लेकिन हम गलती यह करते हैं कि हम उस आनंद का कारण बाहरी वस्तु (कार, पार्टनर, सीनरी) को मान लेते हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसे कस्तूरी मृग अपनी ही नाभि की सुगंध को पूरे जंगल में ढूंढता फिरता है।

स्वामी जी कहते हैं, अगर आप उस कार या पार्टनर के साथ रोज रहेंगे, तो मन फिर से बोलना शुरू कर देगा और वह खुशी गायब हो जाएगी। क्योंकि खुशी वस्तु में नहीं, आपके निर्विचार‘ (Thoughtless) होने में थी।”

ध्यान कैसे करें: स्टेप-बाय-स्टेप गाइड

युवाओं के लिए स्वामी जी ने ध्यान की प्रक्रिया को बहुत सरल बना दिया है। यहाँ ध्यान कैसे करें, इसकी व्यावहारिक विधि दी गई है:

नॉन-जजमेंटल बनें (Be Non-Judgmental)

ध्यान की शुरुआत आसन से नहीं, एटीट्यूड से होती है। अगर आप ध्यान करते समय कार के हॉर्न, कुत्ते के भौंकने या बच्चों के शोर से चिढ़ेंगे, तो आप कभी शांत नहीं हो पाएंगे।

  • उदाहरण: ओशो का किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक नेताजी कुत्तों के भौंकने से परेशान थे। ओशो ने उन्हें सलाह दी कि कुत्तों का काम है भौंकना, उन्हें स्वीकार कर लो। जैसे ही उन्होंने विरोध बंद किया, उन्हें नींद आ गई।
  • सीख: जो जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार करें (Acceptance).

सुखद आसन (Comfortable Posture)

महर्षि पतंजलि के अनुसार, ‘स्थिर सुखम आसनम’। आपको जबरदस्ती पद्मासन लगाने की जरूरत नहीं है। कुर्सी, सोफा या बिस्तर—जहाँ भी आपका शरीर लंबे समय तक बिना हिले-डुले और बिना दर्द के रह सके, वही सबसे अच्छा आसन है।

साक्षी भाव (Witnessing)

आंखें बंद करें और अपनी सांसों को देखें। सांस आ रही है, जा रही है—इसमें कोई छेड़छाड़ न करें। जैसे-जैसे आप सांसों के प्रति सजग (Aware) होंगे, मानसिक शांति बढ़ने लगेगी और सांसें धीमी होती जाएंगी।

विचारों का ट्रैफिक (Watching Thoughts)

सांसों के बाद अपने विचारों को देखें। विचार आएंगे—अतीत के या भविष्य के। उनसे दोस्ती या दुश्मनी न करें। उन्हें बस ऐसे देखें जैसे सड़क पर ट्रैफिक चल रहा हो। जब आप विचारों के प्रति ‘उदासीन’ (Indifferent) हो जाते हैं, तो विचारों की गति थम जाती है और आप ‘नो-माइंड’ (No-Mind) स्टेट में प्रवेश करते हैं।

स्पिरिचुअल अवेकनिंग: आंतरिक शत्रुओं का अंत

स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने स्पिरिचुअल अवेकनिंग के पहलू पर बात करते हुए कहा कि ध्यान का मतलब काम, क्रोध, लोभ जैसे शत्रुओं से लड़ना नहीं है। लड़ना तो तब पड़ता है जब वे मौजूद हों।

उन्होंने एक बेहतरीन रूपक (Metaphor) इस्तेमाल किया:

“जैसे सूरज कभी अंधेरे को नहीं देख सकता, क्योंकि सूरज के आते ही अंधेरा गायब हो जाता है। वैसे ही, जब आपके भीतर जागरूकता (Awareness) का दीया जलता है, तो क्रोध और तनाव रूपी अंधेरा टिक ही नहीं सकता।”

ध्यान करने वाला व्यक्ति पाप या गलत काम कर ही नहीं सकता, क्योंकि वह बेहोशी में नहीं है। जागरूकता में केवल पुण्य फलित होता है।

भविष्य की ओर एक कदम

आज के दौर में जब मेंटल हेल्थ एक बड़ी चुनौती है, स्वामी जी का यह संदेश एक संजीवनी समान है। ध्यान कैसे करें, यह केवल एक तकनीक नहीं, बल्कि जीने का एक तरीका है। जब हम वर्तमान क्षण (Present Moment) में बिना किसी निर्णय (Judgment) के जीना सीख लेते हैं, तो जीवन उत्सव बन जाता है।

चाहे आप स्टूडेंट हों या प्रोफेशनल, दिन में कम से कम 20 मिनट इस ‘रिलैक्स्ड अवेयरनेस’ का अभ्यास जरूर करें। याद रखें, आप स्वयं ही आनंद के स्रोत हैं।

Q&A Section

Q1: ध्यान करने का सबसे सही समय कौन सा है?

Ans: वैसे तो ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-5 बजे) सबसे उत्तम माना जाता है क्योंकि तब वातावरण शांत होता है, लेकिन आप अपनी सुविधानुसार किसी भी समय ध्यान कर सकते हैं जब आप रिलैक्स्ड हों।

Q2: अगर ध्यान करते समय बहुत विचार आएं तो क्या करें?

Ans: विचारों को रोकने की कोशिश न करें। उन्हें बस देखें (Witness)। जैसे ही आप उन्हें बिना जज किए देखेंगे, वे धीरे-धीरे अपने आप कम हो जाएंगे।

Q3: क्या कुर्सी पर बैठकर ध्यान किया जा सकता है?

Ans: बिल्कुल। ध्यान कैसे करें में शरीर के आराम का बहुत महत्व है। अगर जमीन पर बैठने में कष्ट हो, तो कुर्सी या सोफे पर बैठकर ध्यान करना पूरी तरह सही है।

Q4: ध्यान के परिणाम कितने दिनों में मिलते हैं?

Ans: यह व्यक्ति की जागरूकता पर निर्भर करता है। नियमित अभ्यास से कुछ ही दिनों में आप तनाव में कमी और फोकस में वृद्धि महसूस करेंगे।

Q5: क्या संगीत सुनकर ध्यान करना सही है?

Ans: शुरुआत में इंस्ट्रूमेंटल संगीत मदद कर सकता है, लेकिन असली ध्यान ‘सन्नाटे’ को सुनने में है। धीरे-धीरे बाहरी आलंबन छोड़कर आंतरिक मौन की ओर बढ़ें।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here