पंचरत्न का प्रतिदिन पाठ करने वाला भक्त सदैव रहता है खुश

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

जो भी व्यक्ति प्रतिदिन भक्ति के साथ श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचित इस श्रीगणेशजी की स्तुति गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ करता है, उसे उत्तम स्वास्थ्य, दोष रहित जीवन, उत्तम कौशल और शिक्षा, स्थिर धन के साथ एक पूर्ण जीवन, संस्कारी बच्चे प्राप्त होते हैं।

मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं

कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्।

अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं

नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥1॥

जिन्होंने बड़े आनन्दसे अपने हाथमें मोदक ले रखे हैं; जो सदा हीं मुमुक्षुजनोंकी मोक्षाभिलाषाको सिद्ध करनेवाले हैं; चन्द्रमा जिनके भालदेशके भूषण हैं; जो भक्तिभावमें निमग्न लोगोंके मनको आनन्दित करते हैं; जिनका कोई नायक या स्वामी नहीं है; जो एकमात्र स्वयं ही सबके नायक हैं; जिन्होंने गजासुरका संहार किया है तथा जो नतमस्तक पुरुषोंके अशुभका तत्काल नाश करनेवाले हैं, उन भगवान् विनायकको मैं प्रणाम करता हूं ॥ 1॥

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं

नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम्।

सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं

महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ 2 ॥

जो प्रणत न होनेवाले- उद्दण्ड मनुष्योंके लिये अत्यन्त भयंकर हैं; नवोदित सूर्यके समान अरुण प्रभासे उद्भासित हैं; दैत्य और देवता – सभी जिनके चरणोंमें शीश झुकाते हैं; जो प्रणत भक्तोंका भीषण आपत्तियोंसे उद्धार करनेवाले हैं, उन सुरेश्वर, निधियोंके अधिपति, गजेन्द्रशासक, महेश्वर, परात्पर गणेश्वरका में निरन्तर आश्रय ग्रहण करता हूँ ॥ २॥

समस्तलोकशङ्करं निरस्तदैत्यकुञ्जरं

दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम्।

कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं

मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ 3 ॥

जो समस्त लोकोंका कल्याण करनेवाले हैं; जिन्होंने गजाकार दैत्यका विनाश किया है; जो लम्बोदर, श्रेष्ठ, अविनाशी एवं गजराजवदन हैं; कृपा, क्षमा और आनन्दकी निधि हैं; जो यश प्रदान करनेवाले तथा नमनशीलोंको मनसे सहयोग देनेवाले हैं, उन प्रकाशमान देवता गणेशको मैं प्रणाम करता हूं ॥3॥

अकिञ्चनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभ्पुजनं

पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम्।

प्रपञ्चनाशभीषणं धनञ्जयादिभूषणं

कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥ 4॥

जो अकिंचन-जनोंकी पीड़ा दूर करनेवाले तथा चिरंतन उक्ति (वेदवाणी) के भाजन (वर्ण्य-विषय) हैं; जिन्हें त्रिपुरारि शिवके ज्येष्ठ पुत्र होनेका गौरव प्राप्त है; जो देव-शत्रुओंके गर्वको चूर्ण कर देनेवाले हैं, दृश्य-प्रपंचका संहार करते समय जिनका रूप भीषण हो जाता है; धनंजय आदि नाग जिनके भूषण हैं तथा जो गण्डस्थलसे दानकी धारा बहानेवाले गजेन्द्ररूप हैं, उन पुरातन गजराज गणेशका मैं भजन करता हूं ॥4॥

नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मज-

मचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।

हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां

तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥ 5 ॥

जिनकी दन्तकान्ति नितान्त कमनीय है; जो अन्तकके अन्तक (मृत्युंजय) शिवके पुत्र हैं; जिनका रूप अचिन्त्य एवं अनन्त है; जो समस्त विघ्नोंका उच्छेद करनेवाले हैं तथा योगियोंके हृदयके भीतर जिनका निरन्तर निवास है, उन एकदन्त गणेशका मैं सदा चिन्तन करता हूँ ॥ ५ ॥

महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं

प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम्।

अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां

समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात्॥ 6॥

जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल मन-ही-मन गणेशका स्मरण करते हुए इस ‘महागणेश-पंचरत्न’ का आदरपूर्वक उच्चस्वरसे गान करता है, वह शीघ्र ही आरोग्य, निर्दोषता, उत्तम ग्रन्थों एवं सत्पुरुषोंका संग, उत्तम पुत्र, दीर्घ आयु एवं अष्ट सिद्धियोंको प्राप्त कर लेता है॥ 6 ॥ # इस प्रकार श्रीशंकराचार्यरचित श्रीगणेशपंचरत्नस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥

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