पुरानी दिल्ली की गलियों में बनी हवेलियां, इनमें पकाए जाने वाले लजीज जायके तो हमेशा से ही सैलानियों के बीच लोकप्रिय रहे हैं, लेकिन यहां के बाजारों की खूबसूरती की रौनक भी किसी से कम नहीं हैं। फिर बात चाहे मिर्च मसालों की तेज गंध लिए ऐतिहासिक बाजार की हो, या फिर खुशबू से लबरेज दरीबे की मुगलकालीन दुकानों की जहां से गुजरते वक्त कदम भी रुक जाते हैं। इन बाजारों के रास्तों से गुजरने वाले सैलानियों के लिए ये नजारे अद्भुत हैं।

खारी बावली के रास्तों में काजू, बादाम और कुछ मसालों की दुकानों के बीच से होकर एक संकरा रास्ता एशिया की सबसे बड़ी मसाले मार्केट (masala market) की तरफ ले जाता है। लोग इस मार्केट की खूबसूरती से पहले इसे महसूस भी करने लगते हैं। गलियों में स्थित छोटी-छोटी दुकानों में रखी लाल मिर्च, हल्दी और दूसरे मसालों से आती गंध से लोग थोड़ा असहज जरूर होते हैं, लेकिन थोड़ी देर बाद आंखें खुद मसालों की दुनिया में खो जाती हैं। दुकानों पर रखे ऐसे मसाले जो शायद रोजमर्रा के जीवन में कभी इस्तेमाल ही नहीं किए गए हों, उन्हें देखना एक सुंदर अनुभव होता है। इन सबके बीच गड़ोदिया मार्केट की पुरानी दरों दीवारें, बुर्ज और टूटते झरोखों से इसके कभी भव्य दिखने के इतिहास में भी लोग गुम हो जाते हैं।

दुकानों पर खुली बोरियों में रखे लाल मिर्च की कई किस्में, काली मिर्च, पीली मिर्च, दाल चीनी, बड़ी इलाइची,लौंग, पुदीना, हल्दी, तेज पत्ता, अनार दाना, जायफल, सुपारी और न जाने कितने ही तरह के मसालों को देखने का मौका मिलता है। यहां के व्यापारी रवि अग्रवाल बताते हैं कि यहां आने वाले विदेशी यहां से उन मसालों को खरीद कर ले जाते हैं जिनका औषधीय गुण होता है या फिर जिनके बारे में सुन रखा होता है। ज्यादातर पिपरमिंट के च्यूंगम खाने वाले पर्यटक सूखे हुए पुदीने को देख कर काफी खुश होते हैं। इस मार्केट में मसालों की इतनी तेज गंध होती है कि कभी-कभी लोगों की छींके, खांसी तक नहीं रुकती, लेकिन फिर भी इसे देखने दूर दूर से लोग आते हैं।

भीनी-भीनी खुशबू से महकता दरीबा

चांदनी चौक या फिर किनारी बाजार (kinari bazaar) की रंगीन गलियों से दरीबे में प्रवेश करते ही खुशबू के ऐसे संसार से मिलने का मौका मिलता है जो मुगल बादशाह के जमाने से ही महक रहा है। यहां इत्र बनाने वाली गुलाब सिंह जोहरीमल की दुकान के साथ कुछ छोटी दुकानें भी हैं, जिसमें सब तरह के इत्र और सेंट बनाए जाते हैं। यहां से रूस के लोग खासतौर पर इत्र लेकर जाते हैं। यह दुकान सन 1816 में स्थापित की गई थी, आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर भी इस दुकान के इत्र के मुरीद हुआ करते थे। करीब 200 साल पुरानी इत्र की दुकान में अब अगरबत्तियां और कमरों को महकाने वाले खुशबू भी तैयार किए जा रहे हैं।

जेवरातों की चमकीली अदा पर फिदा पर्यटक

खुशबू के साथ अगर नजरें चमचमाते हुए खूबसूरत जेवरात पर भी पड़ जाएं तो इनके कद्रदानों की हर चाहत एक ही रास्ते में पूरी होती दिखाई देती है। कुछ ऐसी ही अदा है दरीबे की जहां मुगलकालीन डिजाइन से लेकर आधुनिक डिजाइन वाले ज्वेलरी मन मोह लेती है। रतन चंद ज्वाला नाथ ज्वेलर्स के तरुण गुप्ता बताते हैं कि ज्यादातर विदेशी पर्यटकों को जवाहरातों वाले जेवरात पसंद आते हैं। वे पन्ना, माणिक और अन्य कीमती पत्थरों वाले जेवरात पसंद करते हैं। इसके साथ ही यहां चांदी के पुराने लुक वाले जेवरात भी काफी पसंद किए जाते हैं। वे बताते हैं कि कई पर्यटकों को सिर्फ एंटीक ज्वेलरी की दुकानें देखनी होती है क्योंकि विदेश में इस तरह की दुकानें नहीं देखने को मिलती। कुछ लोग फोटो खिंचवाते हैं और अपने संग दरीबे की यादों को सहेज कर साथ अपने वतन ले जाते हैं।

चितली कब्र की सड़क की रौनक

जामा मस्जिद के दक्षिणी गेट के सामने की सड़क हेरिटेज बाजार मटिया महल और चितली कब्र की ओर ले जाती है। इस सड़क पर कबाब और मांसाहारी लजीज व्यंजनों के लिए मशहूर दुकान करीम है। इसी सड़क पर कुछ पुरानी हवेलियां और झरोखे हैं जिसकी खूबसूरती रात को भी निखर कर आती हैं। इस बाजार में लजीज जायकों का लुत्फ देर रात तक भी लिया जा सकता है। हालांकि तीज त्योहारों में तो यहां रात को ही चहलल पहल देखने को मिलती है। इस स्थान के आसपास रहने वाले लोग देर रात तक जागते हैं। स्पेशल बिरयानी के लिए लोकप्रिय शबराती कैटर्स के मोहम्मद शोहेब इल्यासी बताते हैं कि यहां बड़े बड़े देग और भट्टी के साथ भी लोग फोटों खिंचवाते हैं। लोग इसके इतिहास के बारे में भी पूछते हैं। चितली कब्र की दरगाह को भी देखते हैं।


एशिया की सबसे बड़ी और पुरानी मार्केट

रामविलास शर्मा, मसाला व्यापारी

मसाला बाजार यूं ही नहीं एशिया की सबसे बड़ी और पुरानी मार्केट बनी है। इसका इतिहास मुगलों के जमाने से जुड़ा है। मुगलों के जमाने में भी यहां मसालों का कारोबार हुआ करता था। जिस स्थान पर आज मसाला बाजार है वहां व्यापारियों के लिए सराय हुआ करती थी। यहां उनके घोड़े गाड़ी खड़ी हुआ करती थी। इसे बंगस की सराय भी कहा जाता था। लेकिन बाद में गड़ोदिया नामक व्यापारी ने इस क्षेत्र को भव्य रूप से विकसित करवाया। इसमें चार बुर्ज लगवाएं। इसमें बड़े बड़े पानी के टैंक भी बनवाएं। अंग्रेजों के जमाने में इस पर केस भी चला था। मौजूदा समय में यहां 22 हजार से ज्यादा दुकानदार हैं। टूरिस्ट लोग भी यहां मिर्च, काला नमक, पुदीना, लौंग, इलाइची, दालचीनी, जावित्री जैसे मसालों को देखने और खरीदने आते हैं। दिन में यहां खरीदार आते हैं और रात में यहां जयपुर, गोवा, केरल, महाराष्ट्र से मसाले भरे हुए ट्रकों से सामान की ढुलाई होती है। यह नजारा भी लोगों विदेशी पर्यटकों को बेहद भांता है।

Know the specialty of the markets of Old Delhi, which markets are famous for which goods
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