मिर्जापुर के चौथे सीजन में मुन्ना भैया की वापसी की गुजारिश कर रहे दर्शक
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
Life Hill Gayi: मिर्जापुर के मुन्ना भैया को सीजन 3 में फैंस ने खूब मिस किया। अब वह नए अंदाज में लाइफ हिल गई सीरीज में नजर आए हैं। ‘मिर्जापुर’ में बात-बात पर गोली दागने और सिर कलम करने को तैयार मु्न्ना भैया इस सीरीज में कॉमेडी करते नजर आ रहे हैं। हालाकि इस रोल में वो कुछ खास प्रभाव नहीं डाल पाए। सीरीज पूरी तरह से बोरिंग करने वाली लग रही है। आइए जानते हैं इस सीरीज का रिव्यू….
कैसी है ‘लाइफ हिल गई’ की कहानी?
कहानी में दो भाई-बहन देव (दिव्येंदु शर्मा) और कल्कि (कुशा कपिला) हैं। दोनों उत्तराखंड में अपने पुश्तैनी होटल की किस्मत बदलने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। उनके दादा (कबीर बेदी) उन्हें संपत्ति विरासत में पाने के लिए यह चुनौती देते हैं। यह होटल नीरस, बेहद लचर कर्मचारियों और गांव के बिगड़ते बुनियादी ढांचे से ग्रस्त है। भाई-बहन भी इसको लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं, लेकिन विरासत पाने की भूख में वो इस चुनौती को स्वीकार करते हैं। उम्मीद करते हैं कि जीत उन्हें अपने भविष्य के सपनों को पूरा करने में मदद करेगी।
सीरीज की शुरुआत से ही बतौर दर्शक आप किरदारों और उनके काम से जुड़ने की चुनौती का सामना करते हैं। निर्देशक प्रेम मिस्त्री ने पहाड़ियों में एक साधारण प्लॉट को छह एपिसोड में फैलाया है, लेकिन यह कभी अपने चरम पर नहीं पहुंचता। हर एपिसोड आधे घंटे से थोड़ा अधिक लंबा है, लेकिन उनमें से कोई भी दर्शकों को पूरी तरह से जोड़ने या उनका मनोरंजन करने में कामयाब नहीं होता है। सभी छह एपिसोड आपस में जुड़े हुए हैं, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट इसे पर्दे पर आगे बढ़ाने में विफल रहते हैं।
कैसी हैं फिल्म में कलाकारों की एक्टिंग
‘मिर्जापुर’ में मुन्नाभाई के रूप में दिव्येंदु शर्मा ने प्रसिद्धि पाई है। लेकिन इस बार उन्हें जो रोल मिला है उसमें वो उतरी गहराई से नहीं उतर पाते। उनके अलावा बाकी के कलाकारों जैसे कुशा कपिला और विनय पाठक का भी यही हाल है। विनय पाठक ने देव और कल्कि के सहज, लेकिन असफल पिता की भूमिका निभाई है। मुक्ति मोहन एक छोटे शहर की लड़की के किरदार में है, जिसकी सोच में मार्डन तो है, लेकिन वह सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ी हुई है।
डायरेक्शन और स्क्रीन प्ले शो की कुछ बेहतरीन खूबियों में से एक है पहाड़ों में जीवन का ताजा और हवादार माहौल। इसे पर्दे पर बहुत ही खूबसूरती से उकेरा गया है। कमजोर स्क्रीनप्ले के बावजूद यह एक मुख्य आकर्षण है। इस तरह की कहानियों को कॉमेडी पंच और मजेदार स्थितियों या एक मजबूत भावनात्मक जुड़ाव और विचित्र पात्रों से बहुत लाभ मिल सकता था। लेकिन अफसोस कि ‘लाइफ हिल गई’ इनमें से किसी भी मोर्चे पर खरी नहीं उतरती है। सीरीज में गिनती के कुछ सीन्स और एक-दो डायलॉग्स को छोड़कर, ऐसा कुछ भी नहीं है जो दर्शकों को हंसा सके या भावनात्मक रूप से जोड़ सके।
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