आपको विस्तार से बताते हैं इस मुहावरे का राजनीतिक अर्थ और क्यों यह बना संसद में चर्चा का विषय
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
New Normal: संसद के मौजूदा मानसून सत्र में एक खास वाक्यांश ने सबका ध्यान खींचा है – new Normal (न्यू नॉर्मल)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी तक, देश के शीर्ष राजनेता अपने संबोधनों में इस शब्द का बार-बार इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन क्या यह सिर्फ़ एक नया जुमला है, या इसके पीछे कुछ गहरा अर्थ छिपा है? क्यों अचानक भारतीय राजनीति में ‘न्यू नॉर्मल’ इतना प्रासंगिक हो गया है और राजनेता इसका प्रयोग किस संदर्भ में कर रहे हैं?
आइए समझते हैं कि ‘न्यू नॉर्मल‘ क्या है और कैसे यह हमारी बदलती दुनिया की हकीकत को बयां करता है।
‘न्यू नॉर्मल’ की अवधारणा
‘न्यू नॉर्मल’ (New Normal) एक ऐसा शब्द है जो किसी बड़ी वैश्विक घटना, संकट या व्यापक परिवर्तन के बाद की उस स्थिति को दर्शाता है जहां जीवन जीने के पुराने तरीके, स्थापित प्रणालियाँ और सामान्य व्यवहार स्थायी रूप से बदल जाते हैं। यह उस ‘पुराने नॉर्मल’ से बिल्कुल भिन्न होता है जो उस घटना से पहले अस्तित्व में था।
इसे सरल शब्दों में कहें तो, ‘न्यू नॉर्मल’ इस बात की स्वीकृति है कि अब चीजें पहले जैसी नहीं होंगी। जिस तरह से हम काम करते हैं, सीखते हैं, यात्रा करते हैं, और यहाँ तक कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को देखते हैं, उन सभी में कुछ ऐसे बदलाव आ चुके हैं जो अब स्थायी प्रकृति के हैं। यह बदलाव अचानक आए, लेकिन अब हमें इन्हीं के साथ जीना और आगे बढ़ना सीखना होगा।
राजनीतिक गलियारों में ‘न्यू नॉर्मल’
यह दिलचस्प है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों ‘न्यू नॉर्मल’ का प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन उनके प्रयोग के निहितार्थ और संदर्भ अक्सर भिन्न होते हैं:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘न्यू नॉर्मल‘: जब प्रधानमंत्री मोदी ‘न्यू नॉर्मल’ का उल्लेख करते हैं, तो उनका इशारा अक्सर बदलती वैश्विक भू-राजनीति और भारत की बढ़ती भूमिका की ओर होता है। वे शायद यह दर्शाना चाहते हैं कि सुरक्षा, कूटनीति और राष्ट्रीय नीति के मामलों में अब एक अधिक दृढ़, सक्रिय और आत्मविश्वासी दृष्टिकोण ही ‘न्यू नॉर्मल’ है। यह देश को नई चुनौतियों के प्रति लचीला और अनुकूलनीय बनाने की दिशा में सरकार के प्रयासों को भी दर्शाता है। उनका उद्देश्य अक्सर राष्ट्र की प्रगति, भविष्य की तैयारी और नई वैश्विक व्यवस्था में भारत के सशक्त स्थान को रेखांकित करना होता है।
प्रधानमंत्री ने न्यू नॉर्मल मुहावरे के प्रयोग के जरिए भारत की आतंकवाद के प्रति बदली रणनीति से पूरी दुनिया को परिचित करा दिया। उन्हेांने बता दिया कि अब भारत न्यूक्लियर ब्लैकमेलिंग नहीं सहेगा, आतंकवाद के खिलाफ कड़े रुख अपनाएगा।
वहीं राहुल गांधी का ‘न्यू नॉर्मल‘ बीजेपी पर तंज था। राहुल गांधी न्यू नॉर्मल शब्द का प्रयोग कर देश की विदेश नीति में आए बदलावों को रेखांकित करना चाहते थे। इसी संदर्भ में, राहुल गांधी का एक हालिया बयान बेहद सुर्खियां बटोर रहा है।

संसद के मानसून सत्र में आपरेशन सिंदूर पर बोलते हुए नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने पाकिस्तान सैन्य प्रमुख के अमेरिकी राष्ट्रपति संग लंच पर आपत्ति जताई। उन्हेांने कहा कि हम कह रहे हैं कि पूरी दुनिया ने हमारा साथ, दुनिया के किसी देश ने भारत को कार्रवाई करने से नहीं रोका। “न्यू नॉर्मल यह है कि पहलगाम हमले का मुख्य साजिशकर्ता अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ लंच करता है।” इस बयान के ज़रिए राहुल गांधी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में आए परिवर्तनों और आतंकवाद के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं, जिसे वे भारत की सुरक्षा के लिए एक चिंताजनक ‘न्यू नॉर्मल’ के रूप में देखते हैं। उनका उद्देश्य इन गंभीर मुद्दों पर बहस छेड़ना और सरकार से जवाबदेही की मांग करना होता है।
इस प्रकार, ‘न्यू नॉर्मल’ का इस्तेमाल दोनों खेमे अपने-अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने, या तो देश की बदलती स्थिति को स्वीकार करते हुए नई नीतियों का औचित्य साबित करने के लिए, या फिर मौजूदा चुनौतियों की गंभीरता को उजागर करने के लिए करते हैं।
COVID-19 महामारी: ‘न्यू नॉर्मल‘ को वैश्विक पहचान देने वाला पल
‘न्यू नॉर्मल’ वाक्यांश का जन्म वास्तव में 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी के बाद हुआ था, जब यह स्पष्ट हो गया कि अर्थव्यवस्था पहले जैसी नहीं रहेगी। हालांकि, इसे वैश्विक स्वीकार्यता और आम बोलचाल का हिस्सा बनाने में सबसे बड़ी भूमिका COVID-19 महामारी ने निभाई।

अभूतपूर्व व्यवधान: महामारी ने दुनिया भर में स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, सामाजिक मेलजोल और कार्यप्रणाली के हर पहलू को गहराई से प्रभावित किया। लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क का अनिवार्य उपयोग और रिमोट वर्क रातोंरात आम हो गए।
अस्थायी से स्थायी बदलाव: शुरुआत में लगा कि ये बदलाव अस्थायी होंगे, लेकिन जैसे-जैसे महामारी खिंचती गई, यह स्पष्ट हो गया कि इनमें से कई आदतें और प्रणालियाँ स्थायी रूप से बदल चुकी हैं। डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन शिक्षा, टेलीमेडिसिन और हाइब्रिड वर्क मॉडल अब केवल आपातकालीन उपाय नहीं, बल्कि जीवन और व्यवसाय करने के नए तरीके बन गए हैं।
अनुकूलन की अनिवार्यता: महामारी ने हमें सिखाया कि अप्रत्याशित संकटों का सामना करने के लिए हमें कितने लचीले और अनुकूलनीय होना होगा। ‘न्यू नॉर्मल’ इस अनुकूलन की आवश्यकता पर जोर देता है।
सार्वजनिक विमर्श में प्रवेश: अर्थशास्त्रियों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों, राजनेताओं और मीडिया ने इस शब्द का लगातार प्रयोग किया, जिससे यह जटिल वैश्विक बदलावों को सरल तरीके से समझाने का एक प्रभावी तरीका बन गया।
संसद में ‘न्यू नॉर्मल’ का प्रयोग यह दर्शाता है कि हमारे देश के नेता भी इन वैश्विक और राष्ट्रीय परिवर्तनों को स्वीकार कर रहे हैं। यह एक संकेत है कि हम एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर चुके हैं जहाँ लगातार बदलाव आ रहे हैं, और इन्हीं बदली हुई वास्तविकताओं के अनुरूप नीतियां और रणनीतियां बनाना समय की मांग है।
- Dharmendra death news: जानिए ‘ही-मैन’ के बारे में 5 अनसुनी बातें, जो बताती हैं क्यों थे वो ‘लीजेंड’
- 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही खास ‘टॉप 10 क्लब’ में शामिल हुए नीतीश कुमार! जानिए बाकि नौ दिग्गजों के बारे में
- Realme GT 8 Pro Dream Edition Launch: भारत में एंट्री, 200MP कैमरा और F1 रेसिंग डिजाइन ने उड़ाए होश!
- How to Make Money on Facebook: हिंदी में पढ़िए A to Z Guide for Facebook Page Monetization
- 2026 में मालामाल करेंगे ये 9 AI टूल्स, 9 AI Tools That Will Make You Rich In 2026






