sawan 2025
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सावन में मूड फ्रेश क्यों होता है? कारण जानकर हैरान रह जाएंगे!

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Sawan 2025: 11 जुलाई से 9 अगस्त तक सावन का पवित्र महीना भक्ति की धारा से भक्तों को सराबोर करेगा।सावन केवल एक मौसम नहीं, बल्कि भारतीय मानस की सामूहिक चेतना में रचा-बसा एक अनुभव है। जब धरती हरियाली से ढक जाती है, जब आकाश से शीतल बूंदें गिरती हैं, जब स्त्रियों की कलाई पर हरी चूड़ियां खनकती हैं और जब मंदिरों में शिव स्तुति गूंजती है — तब सावन केवल बाहर नहीं, मन के भीतर भी उमड़ने-घुमड़ने लगता है।

लेकिन क्या यह ऋतु केवल सौंदर्य और भक्ति की अनुभूति तक सीमित है? या इसका संबंध हमारे मनोविज्ञान, सामाजिक व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य से भी है? क्या इस महीने का प्रभाव मन के गहरे तल तक जाता है?आइए इन पहलुओं पर गहराई से विचार करें।

हरियाली का प्रभाव और ‘प्राकृतिक चिकित्सा’

प्राकृतिक मनोविज्ञान कहता है कि जब हम हरियाली, जलधाराओं और खुले आकाश के नीचे समय बिताते हैं, तो हमारे मस्तिष्क में डोपामिन और सेरोटोनिन जैसे हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं। यही कारण है कि गांव-देहात में रहने वाले लोग सावन को ऊर्जा और प्रसन्नता का मौसम मानते हैं।

American Psychological Association के शोधों में यह स्पष्ट हुआ है कि रोज़ाना 20 मिनट की प्राकृतिक हरियाली में सैर करने से तनाव का स्तर 40% तक घटता है।

मानसून और अवसाद: सावन सबके लिए उत्सव नहीं

शहरों में सावन अक्सर ट्रैफिक जाम, जलभराव और अकेलेपन से जुड़ जाता है। कई लोगों के लिए यह मौसम सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) जैसी स्थिति लेकर आता है, जिसमें व्यक्ति का मूड बार-बार बदलता है, उनींदापन और निराशा बढ़ती है।

वरिष्ठ मनोचिकित्सक भी यह मानते हैं कि
बारिश का मौसम, विशेषकर सावन, लोगों में अतीत की यादों और अकेलेपन को उभारता है। अविवाहित या अकेले रहने वाले लोगों में इसका असर अधिक गहरा होता है।”

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आयुर्वेद में सावन: वात दोष और मन

भारतीय आयुर्वेद में ऋतुचर्या (ऋतु अनुसार जीवनचर्या) का विशेष महत्व है। वर्षा ऋतु यानी सावन में वात दोष का प्रकोप अधिक होता है, जिससे बेचैनी, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, और अस्थिर मानसिकता जन्म ले सकती है।

आयुर्वेदाचार्यों की मानें तो—
इस ऋतु में हल्का, सुपाच्य भोजन, त्रिफला या पंचकर्म चिकित्सा, और नियमित योग-प्राणायाम मन और शरीर को संतुलित रखते हैं।”

धार्मिक और आध्यात्मिक संबल

श्रावण सोमवार, कांवड़ यात्रा, शिव पूजा और व्रत—इन सभी धार्मिक क्रियाओं का गहरा मनोवैज्ञानिक महत्व है।
व्रत केवल शरीर को नियंत्रित करने की क्रिया नहीं, बल्कि मन की अनुशासनात्मक साधना भी है। मंदिरों में शिवाभिषेक, शिव महिमा के भजन और मंत्र जाप व्यक्ति के अंदर की हलचल को शमन करते हैं।

WHO और Harvard Divinity School की रिपोर्ट्स बताती हैं कि धार्मिक प्रथाएं व्यक्ति को मानसिक सहारा देती हैं, उसे किसी बड़े उद्देश्य से जोड़ती हैं।

सावन और भारतीय साहित्य

सावन का नाम आते ही एक पूरा काव्य-संसार सामने आ जाता है। हिंदी साहित्य, ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली, भोजपुरी और बंगाली लोकगीतों में सावन एक प्रतीक बन जाता है — मिलन, विरह, प्रेम और स्त्री-अंत:करण का।

संस्कृत साहित्य में:

  • कालिदास के ऋतुसंहार में वर्षा ऋतु को प्रेम के उत्कर्ष की ऋतु कहा गया है।
  • मेघदूत में यक्ष मेघ से अनुरोध करता है कि वह उसकी विरहिणी पत्नी को उसका संदेश सावन की बारिश के साथ पहुंचाए।

हिंदी लोक साहित्य में:

  • “काहे को सावन आयो, जी दुखाये…” — यह गीत विरहिणी की वेदना व्यक्त करता है।
  • “झूला पड़े अमवा की डार, सावन आयो रे…” — यह गीत सामाजिक मेलजोल और स्त्री उत्सव का चित्रण करता है।

आधुनिक साहित्य में

  • महादेवी वर्मा और निराला की कविताओं में सावन एक मानसिक स्थिति है — कभी विरह, कभी आत्मान्वेषण।
  • फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ और राही मासूम रज़ा के उपन्यासों में सावन गाँव की संस्कृति और स्त्री चेतना से जुड़ा मिलता है।

सावन और स्त्री मन

सावन का महीना भारतीय स्त्री के मन में एक विशेष स्थान रखता है। शादीशुदा महिलाओं के लिए यह सुहाग और समर्पण का मौसम है, तो कुंवारी युवतियों के लिए आकांक्षा और अभिलाषा का।

हाथों में मेहंदी, हरे वस्त्र, हरियाली तीज, झूले और गीत—ये सब न केवल सामाजिक परंपराएं हैं, बल्कि मानसिक अभिव्यक्ति के प्राकृतिक रूप हैं।

सोशल मीडिया और FOMO

आजकल सावन की अनुभूति केवल गीत और झूले तक नहीं, बल्कि इंस्टाग्राम स्टोरी, फेसबुक पोस्ट और रील्स तक फैली है।
हर कोई चाहता है कि उसकी ‘सावन लुक’, ‘श्रावण सोमवारी व्रत थाली’ या ‘सावन भक्ति भजन’ वायरल हो जाए। लेकिन जो इससे जुड़ नहीं पाते, उनमें FOMO (Fear of Missing Out) की भावना गहराती है।

डिजिटल मनोचिकित्सक रिया ठाकुर कहती हैं—
अब सावन मानसिक राहत नहीं, डिजिटल प्रदर्शन का मौसम बनता जा रहा है। यह कई बार आत्म-मूल्यांकन को नकारात्मक दिशा में ले जाता है।”

मानसिक स्वास्थ्य को संवारने वाले सावन के उपाय

उपायलाभ
सुबह की सैरडोपामिन-स्राव, मूड बेहतर
ध्यान और योगमानसिक स्थिरता
धार्मिक अनुष्ठानआत्मिक ऊर्जा
डिजिटल डिटॉक्ससोशल तनाव से मुक्ति
हल्का आयुर्वेदिक भोजनवात दोष संतुलन

सावन — एक ऋतु, एक मनस्थिति

सावन केवल बादल, बारिश और भक्ति का मौसम नहीं है — यह एक अवसर है अपने भीतर झांकने का।
यह ऋतु हमें बताती है कि जैसे धरती पर हरियाली लौट सकती है, वैसे ही मन के सूखेपन में भी कोपलें फूट सकती हैं। सावन को केवल उत्सव न बनाएं, इसे आत्मनिरीक्षण और मानसिक स्वास्थ्य की साधना बनाएं।

सावन की फुहारें मन के बंजरपन को सींचती हैं — बस, थोड़ा ठहर कर उसे महसूस करने की जरूरत है।”

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