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AI का जासूसऔर स्मार्ट सिटी सर्विलांस: क्यों FeatClassifier मॉडल बना गेमचेंजर!

आजकल की तेज रफ़्तार वाली दुनिया में स्मार्ट सिटी सर्विलांस एक बड़ी ज़रूरत बन गया है। शहरों को सुरक्षित और स्मार्ट बनाने के लिए IIT/IIIT दिल्ली के रिसर्चर्स (Shubham Kale, Shashank Sharma, Abhilash Khuntia) ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इन्होंने एक प्रोजेक्ट पर कार्य किया, जिसका नाम “Smart City Surveillance Unveiling Indian Person Attributes in Real Time” था। यह सिर्फ एक सामान्य सर्विलांस नहीं है, बल्कि रियल-टाइम मॉनिटरिंग के लिए AI का एक ‘जासूस’ है, जो कैमरे में कैद हर शख्स की पहचान, कपड़ों का रंग, एक्सेसरीज़ और यहाँ तक कि हेडगियर तक को पहचान सकता है।

इस AI सर्विलांस सिस्टम में सबसे बड़ी चुनौती थी भारतीय शहरों की विविधता और कम ट्रेनिंग डेटासेट। लेकिन रिसर्चर्स ने डेटा ऑग्मेंटेशन जैसी एडवांस टेक्निक्स का इस्तेमाल कर इस चुनौती को पार किया। उनका लक्ष्य था एक ऐसा मॉडल तैयार करना जो भीड़ भाड़ में भी सटीक काम कर सके। इस प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी  उपलब्धि FeatClassifier मॉडल की सफलता है, जिसने पहले के BEIT मॉडल और SWIN ट्रांसफॉर्मर को पीछे छोड़ दिया है। यह नई खोज न सिर्फ सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय नागरिक विशेषताएं के आधार पर भीड़-भाड़ और ट्रैफिक पैटर्न को समझने में भी मदद करेगी।

FeatClassifier क्यों निकला सबसे आगे?

रिसर्चर्स ने पर्सन एट्रीब्यूट रिकग्निशन के लिए तीन मुख्य अप्रोच पर काम किया। इन तीनों मॉडलों को लगभग 600 इमेज वाले एक छोटे डेटासेट पर ट्रेन किया गया, जिसे डेटा ऑग्मेंटेशन तकनीक से 12 गुना बढ़ा दिया गया था।

BEIT और SWIN की कहानी

पहले प्रयास में, रिसर्चर्स ने BEIT मॉडल को इस्तेमाल किया। यह मॉडल ImageNet पर प्री-ट्रेन था। दूसरे प्रयास में, उन्होंने स्टेट-ऑफ-द-आर्ट SWIN ट्रांसफॉर्मर आर्किटेक्चर को चुना। हैरानी की बात यह है कि दोनों ही मॉडलों ने एक बड़ी समस्या का सामना किया: ओवरफिटिंग।

ओवरफिटिंग तब होती है जब मॉडल ट्रेनिंग डेटा को तो रट लेता है, लेकिन रियल-टाइम या नए डेटा पर बुरी तरह फेल हो जाता है। रिसर्च में साफ दिखा कि ट्रेनिंग लॉस बहुत कम हो रहा था, लेकिन वैलिडेशन लॉस लगातार बढ़ रहा था, जो ओवरफिटिंग का सीधा संकेत है। इसके अलावा, ये मॉडल GPU P100 जैसे हैवी रिसोर्सेज पर भी 50,000 सेकंड से ज्यादा का कंप्यूटेशन टाइम ले रहे थे, यानी ये काफी कंप्यूटेशनली इंटेंसिव थे।

FeatClassifier: कम समय, बेहतरीन रिजल्ट

इन चुनौतियों को देखते हुए, टीम ने अपने तीसरे और सबसे सफल अप्रोच, FeatClassifier मॉडल को अपनाया।

क्लास असंतुलन का समाधान: इस मॉडल में सबसे पहले ScaledBCELoss का उपयोग किया गया। यह तकनीक डेटासेट में मौजूद कम फ्रीक्वेंसी वाले एट्रीब्यूट्स और ज्यादा फ्रीक्वेंसी वाले एट्रीब्यूट्स के योगदान को बैलेंस करके क्लास असंतुलन को ठीक करती है।

बेहतर आर्किटेक्चर: FeatClassifier ने एक मजबूत ResNet50 मॉडल को बैकबोन के रूप में इस्तेमाल किया, जो ImageNet पर प्री-ट्रेन था। इसमें एक कस्टम क्लासिफायर हेड जोड़ा गया और ओवरफिटिंग को रोकने के लिए ड्रॉपआउट रेगुलराइजेशन का इस्तेमाल किया गया।

RAPv2 का फायदा: FeatClassifier की बड़ी खासियत यह थी कि इसे विशेष रूप से पैदल यात्री (pedestrian) की इमेज वाले RAPv2 डेटासेट पर प्री-ट्रेन किया गया था। यही कारण है कि यह लोगों की पहचान करने में ImageNet पर प्री-ट्रेन हुए बाकी मॉडलों से कहीं बेहतर साबित हुआ।

परिणाम (Experimental Results):

तीसरे मॉडल ने सिर्फ 1020.65 सेकंड (लगभग 17 मिनट) का कंप्यूटेशन टाइम लिया, जो BEIT और SWIN के मुकाबले 50 गुना कम है। जबकि इसका वैलिडेशन लॉस (0.17) सबसे कम रहा, जो यह बताता है कि इसने ओवरफिटिंग को प्रभावी ढंग से कम कर दिया।

भारतीय शहरों के लिए बड़ी उम्मीद

यह प्रोजेक्ट दिखाता है कि कैसे AI टेक्नोलॉजी स्मार्ट सिटी सर्विलांस के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। हालांकि, रियल-टाइम में बदलती लाइटिंग, चीजों का दिखाई न देना, और तेज मूवमेंट जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।

आगे के काम में डेटासेट का विस्तार, ट्रांसफर लर्निंग, और मॉडल की रियल-टाइम अनुकूलन क्षमता को बढ़ाना शामिल होगा। भविष्य में, इस AI सर्विलांस को पब्लिक हेल्थ मॉनिटरिंग, क्राइसिस रिस्पॉन्स (जैसे भीड़ घनत्व और व्यवहार विश्लेषण) में भी उपयोग किया जा सकता है। स्मार्ट सिटी सर्विलांस सिर्फ सुरक्षा तक सीमित नहीं है, यह एक ऐसा टूल है जो हमारे शहरों को वास्तव में सुरक्षित, स्मार्ट और समावेशी बना सकता है।

Q&A सेक्शन

Q1: पर्सन एट्रीब्यूट रिकग्निशन क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?

A1: पर्सन एट्रीब्यूट रिकग्निशन एक कंप्यूटर विजन तकनीक है जो किसी व्यक्ति की दृश्य विशेषताओं (जैसे ऊपरी शरीर का रंग, स्लीव्स की लंबाई, हेडगियर, जूते, आदि) को पहचानती है। स्मार्ट सिटी सर्विलांस में यह संदिग्ध व्यवहार को पहचानने, लोगों को ट्रैक करने और शहरी भीड़ गतिशीलता को समझने में महत्वपूर्ण है।

Q2: FeatClassifier मॉडल BEIT और SWIN मॉडल से बेहतर क्यों है?

A2: FeatClassifier ने ओवरफिटिंग को कम करने के लिए ड्रापआउट का उपयोग किया और क्लास असंतुलन को ठीक करने के लिए ScaledBCELoss का इस्तेमाल किया। सबसे महत्वपूर्ण, यह विशेष रूप से पैदल यात्री की इमेज वाले RAPv2 डेटासेट पर प्री-ट्रेन था, जबकि अन्य मॉडल सामान्य ImageNet पर थे। इस विशेषज्ञता ने इसे बेहतर और तेज प्रदर्शन दिया।

Q3: डेटा ऑग्मेंटेशन का इस्तेमाल क्यों किया गया?

A3: इस प्रोजेक्ट में ट्रेनिंग के लिए केवल 600 इमेज का एक छोटा डेटासेट था। डेटा ऑग्मेंटेशन, जैसे कि इमेज को घुमाना, काटना, या पलटना करके, ओरिजिनल इमेज से कई नई इमेज बनाई गईं। इससे मॉडल को ज्यादा विविधता मिली और वह ज्यादा मजबूत बना।

Q4: ओवरफिटिंग का मतलब क्या है?

A4: ओवरफिटिंग तब होती है जब एक मशीन लर्निंग मॉडल ट्रेनिंग डेटा को इतनी अच्छी तरह से याद कर लेता है कि वह नए या अनजाने डेटा पर खराब प्रदर्शन करता है। ट्रेनिंग लॉस कम होने और वैलिडेशन लॉस बढ़ने पर ओवरफिटिंग की पहचान होती है। FeatClassifier में ड्रापआउट जैसे उपायों से इसे कम किया गया।

Q5: इस AI सर्विलांस सिस्टम का भविष्य में क्या स्कोप है?

A5: भविष्य में, यह सिस्टम सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी, संकट प्रतिक्रिया और प्रबंधन, और अन्य सेंसर के साथ मल्टी-मॉडल डेटा इंटीग्रेशन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे सटीकता और बढ़ जाएगी।

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