लालकिले परिसर में मोती मस्जिद के पास एक अनूठा बाग भी है जिसे हयात बख्श बाग कहा जाता है। हयात बख्श का अर्थ होता है जिंदगी बख्शने वाला। इसको यूं ही नहीं यह नाम मिला। दरअसल, इस बाग के बीच में कई नालियों बनाई गई, जिससे यमुना नदी का पानी नहरे बहिश्त को पहुंचाया जाता था। इसके लिए बाग के उत्तर -पूर्वी कोने पर स्थित शाह बुर्ज बनाया गया जहां से यमुना का पानी को सभी नालियों में भेजा जाता था और फिर वो पानी नहरे बहिश्त तक जाती थी। यहां से पूरे लालकिले में पानी की सप्लाई होती थी। यहां तक की कई बागों में लगे हुए फव्वारे भी चलते थे। उत्तरी दीवार के मध्य में एक संगमरमर का जलप्रपात है जिससे जल एक शंखनुमा हौज से छलकता रहता था।
1857 के विद्रोह के दौरान शाह बुर्ज को काफी नुकसान पहुंचा। पुरातत्वविद राजदान बताते हैं कि इस बाग के दक्षिणी और उत्तरी किनारों के मध्य में दो संगमरमर के मंडप हैं जो बरसात के दो प्रमुख महीने सावन भादो के नाम से विख्यात है। इस बाग के पूर्वी दीवार के साथ साथ जमीन के ऊंचे उठे भाग पर दो संगमरमर के छोटे मंडप थे जिन्हें बहादुर शाह द्वितीय ने बनवाया था। इनमें से उत्तरी मंडप मोती महल और दक्षिणी मंडप हीरा महल के नाम से विख्यात था। लेकिन 1857 के विद्रोह में यह मंडप हटा दिए गए। इस बाग के बीच एक बड़ा तालाब है जिसके बीच लालबलुआ पत्थर का महल है जो इस बाग के मार्ग के बीच में स्थित है इसे जफर महल कहा जाता है।