हर अंक का संबंध एक ग्रह से, और हर ग्रह आपके व्यक्तित्व, करियर, रिश्तों और भाग्य को करता है प्रभावित—अंक ज्योतिष का रहस्य अब खुलेगा आपके सामने
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
Numerology: अंक ज्योतिष अपने-आप में एक नवीन विकसित विज्ञान है, जिसका पूरा आधार गणित और उससे निसूत फल है। इसका मूल बाधार किसी भी व्यक्ति को जन्म तारीख आदि से है।
इससे पूर्व भारतीय ज्योतिष विज्ञान में दो पद्धतियाँ विशेप रूप से प्रचलित थी जिनमें एक जन्म कुण्डली से भविष्य-विवेचन तथा दूसरा हाथ की रेखाओं से भविष्य को स्पष्ट करना था।
परन्तु पाश्चात्य देशों में इसके अतिरिक्त एक और पद्धति प्रचलित हुई जिसका मुख्य आधार जन्म तारीख हो रहा। उन्होंने जन्म तारीख के माध्यम से ही पूरे भविष्य को स्पष्ट करने का तरीका स्पष्ट किया ।
परन्तु सही रूप में देखा जाए तो यह पाश्चात्य ज्योतिष नहीं है अपितु इसका मूल उद्गम भारतीय ज्योतिष हो रहा है क्योंकि भारतीय ज्योतिष में अष्टक वर्ग एक प्रामाणिक विवेचन रहा है और ज्योतिष सिद्धांतों में यह कहा गया है कि जो अष्टक वर्ग का बिना अध्ययन किए ही भविष्य स्पष्ट करता है वह अपूर्ण ज्योतिषी होता है बौर उसका भविष्य पूर्ण रूप से प्रामाणिक नहीं हो सकता।
इसका मूल कारण यही है कि भारतीय ज्योतिष में अष्टक वर्ग को सबसे अधिक मान्यता दी गई है और इस ज्योतिष अष्टक वर्ग से ही ग्रहों का बल निकालकर उसका स्पष्ट विवेचन किया गया है।
वास्तव में हो ज्योतिष अष्टक वर्ग अपने-आप में प्रामाणिक विवेचन हैं। इससे यह ज्ञात हो जाता है कि जन्म-कुण्डली में जो ग्रह स्थित हैं वे कितने बलवान हैं, दो ग्रहों का परस्पर सम्बन्ध कितना सुदृढ़ है तथा किस ग्रह को कितनी रेखाएं प्राप्त हुई।
इन रेखाओं के अध्ययन से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि जो दो पह एक ही भाव में बैठे हैं उनमें कौन-सा ग्रह ज्यादा बलवान है बौर उसका प्रभाव दूसरे ग्रह पर कितना है। यही नहीं, अपितु इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिशत के हिसाब से भी दोनों ग्रहों का बल कितना है बोर मानव के भविष्य-निर्माण में किस ग्रह का योगदान ज्यादा है।

परन्तु आधुनिक रूप में इम जिसे अंक ज्योतिष कहते हैं, वह सर्वथा इससे भिन्न है। अंक ज्योतिष मूलतः भारतीय धरातल पर उत्पन्न हुआ है परन्तु यह फला-फूला विदेशी धरती है। वहीं पर इसपर शोध हुई और इस सम्बन्ध में कई नये प्रयोग हुए और इस प्रकार एक नवीन ज्योतिष का जन्म हुआ जिसे आजकल की भाषा में अंक ज्योतिष कहते हैं।
इसका मूल आधार अंक हैं और एक से नौ तक के अंक विशेष महत्त्व रखते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार भी अंक का शोध सबसे पहले भारत में ही हुआ था और शून्य की खोज करके भारत ने गणित क्षेत्र में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन ला दिया था, क्योंकि इस शून्य ने बहुत बड़ी-बड़ी संख्याओं से पिण्ड छुड़ा दिया और शून्य के माध्यम से हम बड़ी संख्याओं को भी संक्षेप में लिख सके ।
भारतीय महर्षियों के अनुसार भी एक से नौ तक के अंकों में विशेष विद्युत् प्रवाह है और इनका जब भी उपयोग किया जाता है तब एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय शक्ति पैदा होती है जो कि बासपास के वातावरण को चुम्बकीय बना देती है।
पाश्चात्य अंक ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार प्रत्येक अंक का अधिपत्ति एक ग्रह है और उस ग्रह के अनुसार ही उस अंक की शक्ति, प्रगति बौर स्वभाव है। उनके अनुसार अंक और सम्बन्धित ग्रह इस प्रकार है:
अंक———————-सम्बधित ग्रह
1———-सूर्य
2——–चन्द्रमा
3———गुरु
4————सूर्य या हर्शल
5———-बुध
6———-शुक्र
7———-वरुण या नेपच्यून
8————शनि
9————–मंगल
इस प्रकार प्रत्येक अंक का अधिपति एक ग्रह है और उस ग्रह के अनुसार ही अंक की प्रगति भी है। अतः अंक को समझने से पूर्व ग्रह तथा उसकी प्रकृति को समझना उचित रहेगा ।
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