सोशल मीडिया पर E20 Petrol को लेकर छिड़ी हुई है बहस
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
E20 Petrol, इथेनॉल ब्लेंडिंग: सोशल मीडिया पर अगर आप सक्रिय हैं तो इस समय E20 Petrol को लेकर छिड़ी बहस से जरूर दो चार हुए होंगे। आप भी जब कार या बाइक में पेट्रोल भरवाने जाते हैं और डिस्पेंसर पर लिखा देखते हैं ‘E20’। तो क्या आपने कभी सोचा है कि यह सामान्य पेट्रोल से कितना अलग है और आपकी गाड़ी पर इसका क्या असर पड़ रहा है?
सरकार द्वारा पूरे देश में तेजी से लागू किया गया E20 पेट्रोल आज ऑटो सेक्टर की सबसे बड़ी चर्चाओं में से एक है। कुछ लोग इसे पर्यावरण के लिए क्रांति बता रहे हैं, तो कई लोग अपनी गाड़ी के माइलेज और इंजन की सेहत को लेकर चिंतित हैं।
आइए, आज E20 पेट्रोल से जुड़े हर पहलू, हर भ्रम और हर सच्चाई को सरल शब्दों में समझते हैं।
क्या है E20 पेट्रोल और सरकार क्यों दे रही इसे बढ़ावा?
E20 का सीधा सा मतलब है- एक ऐसा ईंधन जिसमें 80% पेट्रोल और 20% इथेनॉल का मिश्रण हो। इथेनॉल, जिसे एथिल अल्कोहल भी कहते हैं, मुख्य रूप से गन्ने, मक्का और अन्य कृषि उत्पादों से बनाया जाता है। सरकार के इस ‘मिशन इथेनॉल’ के पीछे तीन बड़े और ठोस कारण हैं:
- आयात पर घटती निर्भरता: भारत अपनी जरूरत का 85% से ज्यादा कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है, जिस पर भारी विदेशी मुद्रा खर्च होती है। पेट्रोल में देश में बने इथेनॉल को मिलाने से यह निर्भरता कम होती है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है।
- पर्यावरण का रक्षक: सामान्य पेट्रोल की तुलना में E20 पेट्रोल 35% तक कम कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करता है। यह दिल्ली-एनसीआर जैसे प्रदूषित शहरों के लिए एक बड़ी राहत है।
- किसानों को सीधा लाभ: इथेनॉल का उत्पादन सीधे तौर पर कृषि क्षेत्र से जुड़ा है। इससे गन्ना किसानों की आय बढ़ती है और कृषि अर्थव्यवस्था को बल मिलता है।
E20 का असर: फायदे और सबसे बड़े नुकसान
E20 पेट्रोल एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह है। इसके फायदे हैं तो कुछ व्यावहारिक नुकसान भी हैं, जिन्हें जानना आपके लिए बेहद जरूरी है।
फायदे:
कम प्रदूषण: यह एक स्वच्छ ईंधन है, जो आपकी गाड़ी से होने वाले प्रदूषण को कम करता है।
बेहतर परफॉर्मेंस: इथेनॉल का ऑक्टेन नंबर पेट्रोल से ज्यादा होता है, जो इंजन की नॉकिंग (खट-खट की आवाज) को कम कर परफॉर्मेंस को स्मूथ बना सकता है।
नुकसान:
माइलेज में गिरावट: यह E20 की सबसे बड़ी और प्रमाणित कमी है। इथेनॉल की ऊर्जा घनत्व (Energy Density) पेट्रोल से कम होती है। इस कारण, E20 इस्तेमाल करने पर आपकी गाड़ी के माइलेज में 5% से 10% तक की गिरावट आ सकती है। यानी अगर आपकी कार 20 किमी/लीटर का माइलेज देती है, तो वह अब 18-19 किमी/लीटर पर आ सकती है।
पुरानी गाड़ियों के लिए खतरा: अगर आपकी गाड़ी अप्रैल 2023 से पहले (BS4 या पुरानी BS6) की है, तो सावधान हो जाएं! इन गाड़ियों के इंजन, फ्यूल लाइन और रबर के पार्ट्स E20 के हिसाब से डिजाइन नहीं किए गए हैं। इथेनॉल एक प्रभावी क्लींजिंग एजेंट है जो पुराने इंजन में जमा गंदगी को साफ कर फ्यूल फिल्टर को चोक कर सकता है और रबर सील को खराब भी कर सकता है।
भारत अकेला नहीं, ये देश हैं इथेनॉल के खेल में पुराने खिलाड़ी
भारत इथेनॉल ब्लेंडिंग अपनाने वाला कोई पहला देश नहीं है। दुनिया के कई देश दशकों से इस तकनीक का सफलतापूर्वक इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को सीधा फायदा हुआ है।
ब्राजील – दुनिया का लीडर: ब्राजील इथेनॉल प्रोग्राम का सबसे सफल उदाहरण है। 1970 के दशक के तेल संकट के बाद ब्राजील ने गन्ने से इथेनॉल बनाने पर जोर दिया। आज, वहां 90% से ज़्यादा नई बिकने वाली गाड़ियां फ्लेक्स-फ्यूल (FFV) होती हैं, जो 100% इथेनॉल (E100) पर भी चल सकती हैं। इस नीति ने ब्राजील को तेल आयात में लगभग आत्मनिर्भर बना दिया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA): अमेरिका मुख्य रूप से मक्के से इथेनॉल बनाता है। वहां E10 (10% इथेनॉल) लगभग स्टैंडर्ड पेट्रोल बन चुका है और अब E15 को भी बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है। अमेरिका अपनी ईंधन ज़रूरतों का लगभग 10% इथेनॉल से पूरा करता है।
अन्य देश: इनके अलावा स्वीडन, कनाडा और थाईलैंड जैसे कई यूरोपीय और एशियाई देश भी पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण की नीति को सफलतापूर्वक अपना चुके हैं।
20% इथेनॉल से भारत हर साल बचाएगा खरबों रुपये
E20 पेट्रोल सिर्फ पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी एक गेम-चेंजर है। आइए आंकड़ों से समझते हैं कि यह कितना बड़ा बदलाव ला सकता है:
आयात बिल में भारी कटौती: भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है। सरकारी अनुमानों के अनुसार, 20% इथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य पूरी तरह से हासिल होने पर भारत को सालाना 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 33,000 करोड़ रुपये) की बचत होगी।
भू-राजनीतिक तनावों से सुरक्षा: हाल के वर्षों में रूस-यूक्रेन संकट और अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ ने तेल बाजार में अस्थिरता पैदा की है। E20 जैसी घरेलू नीति भारत को ऐसे बाहरी झटकों से सुरक्षा कवच प्रदान करती है। हम जितना अधिक इथेनॉल बनाएंगे, वैश्विक तेल की कीमतों पर हमारी निर्भरता उतनी ही कम होगी।
छोटा सा स्टिकर बचा सकता है हजारों के खर्चे से
यह जांचना बेहद आसान है। अपनी कार या बाइक के पेट्रोल टैंक का ढक्कन (Fuel Lid) खोलें। अगर उसके अंदर ‘E20 Compatible’ या ‘Ethanol E20’ का स्टिकर लगा है, तो आपकी गाड़ी पूरी तरह से सुरक्षित है। अप्रैल 2023 के बाद बनी सभी गाड़ियां (BS6 फेज-2) E20 संगत हैं। अगर ऐसा कोई स्टिकर नहीं है, तो आपको E20 पेट्रोल इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।
E20 तो बस शुरुआत है, आगे हैं फ्लेक्स फ्यूल
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार, E20 इथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम का सिर्फ एक पड़ाव है। सरकार का अगला लक्ष्य फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल्स (FFV) को बढ़ावा देना है। ये ऐसी गाड़ियां होती हैं जिनके इंजन E20 से लेकर E85 (85% इथेनॉल) तक किसी भी मिश्रण पर बिना किसी समस्या के चल सकते हैं। टोयोटा और मारुति सुजुकी जैसी कंपनियां भारत में अपनी फ्लेक्स-फ्यूल गाड़ियां लॉन्च भी कर चुकी हैं।
Q&A
Q1: E20 पेट्रोल से माइलेज कितना कम होता है?
A: एक्सपर्ट्स और यूजर्स के अनुभव के अनुसार, E20 पेट्रोल के इस्तेमाल से गाड़ी के माइलेज में 5% से 10% तक की कमी आ सकती है।
Q2: क्या मैं अपनी 10 साल पुरानी कार में E20 पेट्रोल डाल सकता हूँ?
A: नहीं, बिल्कुल नहीं। 2022 से पुरानी BS4 गाड़ियों में E20 का इस्तेमाल इंजन के रबर पार्ट्स और फ्यूल लाइन को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। आपको सामान्य (E10) पेट्रोल ही इस्तेमाल करना चाहिए।
Q3: अगर मेरी गाड़ी E20 संगत नहीं है, तो मेरे पास क्या विकल्प है?
A: आप हाई-ऑक्टेन या ‘प्रीमियम फ्यूल’ का उपयोग कर सकते हैं, जिसमें आमतौर पर इथेनॉल की मात्रा कम या शून्य होती है।
Q4: E20 से भारत को सालाना कितने पैसे की बचत होगी?
A: सरकार का अनुमान है कि 20% इथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य पूरी तरह हासिल होने पर देश को सालाना लगभग 33,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
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