आप का व्यवहार देख सीखते हैं बच्चे, कहीं जाने-अनजाने आप ही तो नहीं बढ़ा रहे हैं अपने बच्चे का खतरा?
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
यह बिग ब्रेकिंग खबर हर उस माता-पिता के लिए एक वेक-अप कॉल है, जो यह सोचकर निश्चिंत हैं कि उनका बच्चा स्कूल जा रहा है। बच्चों की ट्रैफिक सुरक्षा को लेकर आई एक fresh report ने एक ऐसे सच का चौंकाने वाला खुलासा किया है, जिस पर कोई बात नहीं करना चाहता। भारत में हर साल हज़ारों मासूमों की मौत सड़क हादसों में होती है (एन.सी.आर.बी. 2022 के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के 16,000 से ज़्यादा बच्चे)। और अब केरल महाराष्ट्र स्टडी के एक्सक्लूसिव नए निष्कर्ष बताते हैं कि 50% से ज़्यादा खतरों की सीधी ज़िम्मेदारी माता-पिता समेत बड़ों की लापरवाही है।
केरल और महाराष्ट्र राज्यों में किए गए इस अध्ययन में कुल 925 छात्रों को शामिल किया गया था। जिसमें आयु वर्ग: 12 से 18 वर्ष और 7वीं से 12वीं तक की कक्षा के छात्र शामिल किए गए थे। रिसर्चरों ने प्रश्नावली (structured questionnaire) का उपयोग करके ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से इन छात्रों से डेटा एकत्र किया।
रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए। रिपोर्ट से यह पता चलता है कि सड़क पर बच्चे के असुरक्षित व्यवहार के पीछे क्या कारण हैं? बच्चा इसलिए नहीं असुरक्षित व्यवहार करता कि उसे ट्रैफिक नियमों की जानकारी नहीं है, बल्कि इसलिए क्योंकि वह अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहनों या ऑटो/बस ड्राइवरों को नियम तोड़ते देखता है। यह वयस्क लापरवाही बच्चों के व्यवहार को सीधे प्रभावित करती है। रोड सेफ्टी इंडिया में यह सबसे बड़ी विडंबना है—हम ज्ञान तो देते हैं, पर उदाहरण गलत पेश करते हैं।
स्कूली बच्चे जोखिम में हैं, क्योंकि हमने उन्हें सुरक्षित आवागमन का सही रोल मॉडल नहीं दिया। यह आर्टिकल विस्तार से बताता है कि कैसे आपके द्वारा हेलमेट या सीट बेल्ट न लगाना, ओवर-स्पीडिंग करना या ओवरलोडेड ऑटो में बच्चों को बिठाना — ये सब मिलकर आपके बच्चे को मौत के मुहाने पर धकेल रहे हैं।
50% ख़तरे की चाबी आपके हाथ में
शोधकर्ताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि बच्चों की ट्रैफिक सुरक्षा में सबसे बड़ी बाधा वयस्क लापरवाही है। यह सीधे तौर पर जोखिम बोध (Risk Perception) के सिद्धांत से जुड़ा है। बच्चे, विशेष रूप से 12 से 18 वर्ष की आयु के, अपने आसपास के व्यवहार को देखकर सीखते हैं – जिसे मनोवैज्ञानिक ‘ऑब्जर्वेशनल लर्निंग’ कहते हैं।
जब एक बच्चा अपने पिता को बिना हेलमेट या सीट बेल्ट के गाड़ी चलाते देखता है, या स्कूल बस ड्राइवर को मोबाइल पर बात करते देखता है, तो यह व्यवहार उसके लिए ‘सामान्य’ बन जाता है। रिपोर्ट बताती है कि बड़ों के नियमों का उल्लंघन बच्चों के असुरक्षित व्यवहार को 50% तक प्रभावित कर सकता है।
उदाहरण के लिए, 97% से अधिक छात्रों को ‘पैदल यात्री क्रॉसिंग’ का नियम पता था। इसके बावजूद, उनका वास्तविक सड़क व्यवहार असुरक्षित पाया गया। यह विरोधाभास साफ करता है कि बच्चों को ‘क्या करना चाहिए’ यह पता है, लेकिन वे ‘क्या होते हुए देखते हैं’ उसी का अनुसरण करते हैं। माता-पिता की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ बच्चों को स्कूल भेजना नहीं, बल्कि उन्हें सुरक्षित व्यवहार का रोल मॉडल बनना भी है।
कहां कितनी लापरवाही?
परिवहन मोड सुरक्षा का विश्लेषण यह साबित करता है कि हर मोड में बच्चों को एक खास तरह का स्कूली बच्चे जोखिम उठाना पड़ता है, जिसकी जड़ में कहीं न कहीं ड्राइवर की मनमानी या बड़ों की अनदेखी है।
ऑटो-रिक्शा: ओवरलोडिंग की जानलेवा आदत
ऑटो-रिक्शा खतरा एक राष्ट्रीय समस्या है। यह स्कूली बच्चों के लिए सबसे लोकप्रिय, लेकिन सबसे खतरनाक मोड में से एक है। केरल महाराष्ट्र स्टडी का डेटा एक चौंकाने वाला खुलासा करता है:
65% से ज़्यादा स्कूली छात्र ओवरक्राउडेड (क्षमता से अधिक भरे) ऑटो-रिक्शा में सफर करते हैं।
55% से अधिक छात्रों ने खुद माना कि वे ऑटो-रिक्शा से सफर के दौरान अपने सिर और हाथ बाहर निकालते हैं।
ड्राइवर ज़्यादा पैसा कमाने के लालच में बच्चों की जान को खतरे में डालते हैं। वे बच्चों को ओवरलोड करते हैं, और उन्हें खिड़की से बाहर निकलने या खड़े होने से भी नहीं रोकते। यह स्पष्ट वयस्क लापरवाही है।
दोपहिया वाहन: हेलमेट न पहनने की संस्कृति
निजी दोपहिया वाहन यात्री के रूप में सफर करने वाले बच्चों के साथ जोखिम सबसे ज़्यादा होता है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि माता-पिता की उपस्थिति में भी नियमों का पालन नहीं होता:
55% छात्रों ने स्वीकार किया कि उन्होंने यात्रा के दौरान हेलमेट नहीं पहना।
53% छात्रों ने हेलमेट की स्ट्रैप (पट्टी) ठीक से नहीं बांधी।
यानी, यह केवल बच्चों की गलती नहीं है, बल्कि माता-पिता उन्हें खुद लापरवाही का सबक दे रहे हैं।
स्कूल बस सुरक्षा की दोहरी तस्वीर
जहां एक ओर स्कूल बस सुरक्षा का माहौल (सुरक्षित ड्राइवर व्यवहार और स्कूल की निगरानी के कारण) बच्चों में अपेक्षाकृत सुरक्षित व्यवहार को बढ़ावा देता है, वहीं दूसरी ओर निजी बसों में स्थिति भयानक है।
निजी/राज्य बस यात्रियों के बीच जोखिम लेने की प्रवृत्ति सबसे ज़्यादा पाई गई।
सबसे खतरनाक व्यवहार यह सामने आया कि 66.9% (लगभग 67%) छात्रों ने स्वीकार किया कि वे बस के पूरी तरह रुकने से पहले ही चलती बस से उतर जाते हैं। यह आंकड़ा डराने वाला है, जो ड्राइवर का व्यवहार और बच्चों की जल्दबाजी दोनों को दर्शाता है।
यह बताता है कि स्कूल बस सुरक्षा के लिए निर्धारित एसओपी (Standard Operating Procedures) को अन्य सभी परिवहन मोड सुरक्षा में सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
सिर्फ़ चालान नहीं, जागरूकता भी जरूरी
रोड सेफ्टी इंडिया को सुधारने के लिए सिर्फ़ सख्त ट्रैफिक नियम ज्ञान और चालान काटना ही पर्याप्त नहीं है। हमें एक व्यापक, व्यवहारिक शिक्षा पर केंद्रित रणनीति की ज़रूरत है।
ड्राइवरों की ट्रेनिंग: सभी कमर्शियल वाहन ड्राइवरों (ऑटो, बस) के लिए ‘चाइल्ड सेफ्टी बिहेवियर’ की विशेष ट्रेनिंग अनिवार्य हो।
माता-पिता की काउंसलिंग: स्कूलों में पैरेंट्स-टीचर मीटिंग में बच्चों के साथ सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने के लिए माता-पिता की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया जाए।
कानूनी सख्ती: ओवरलोडिंग और बिना सुरक्षा उपकरणों के यात्रा पर ज़ीरो टॉलरेंस नीति अपनाई जाए।
यह रिपोर्ट एक वेक-अप कॉल है: बच्चों की ट्रैफिक सुरक्षा केवल नियम-कानूनों का विषय नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी और बड़ों द्वारा सही उदाहरण प्रस्तुत करने का विषय है।
अब बदलाव की ज़िम्मेदारी हमारी
यह exclusive और ताज़ा रिपोर्ट साफ कर देती है कि भारत में बच्चों की ट्रैफिक सुरक्षा के समक्ष सबसे बड़ा संकट बच्चों का ज्ञान नहीं, बल्कि हमारी वयस्क लापरवाही और गलत उदाहरण हैं। 50% से अधिक जोखिम सीधे तौर पर बड़ों की गलतियों से जुड़े हैं। ट्रैफिक नियम ज्ञान ज़रूरी है, लेकिन जोखिम बोध को बढ़ाना और व्यवहारिक शिक्षा देना उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
हमें तत्काल प्रभाव से एक बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी, जिसमें अभिभावकों और कमर्शियल ड्राइवर्स पर कड़ा नियंत्रण हो। स्कूली बच्चे जोखिम को कम करने के लिए, हर मोड के लिए विशिष्ट सुरक्षा प्रोटोकॉल (Specific Safety Protocols) अनिवार्य किए जाएं। रोड सेफ्टी इंडिया में तभी सुधार संभव है जब हम अपनी गलती मानकर, एक सुरक्षित भविष्य का निर्माण करें।
Q&A Section
Q1: बच्चों की ट्रैफिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा क्या है, और यह कितना बड़ा है?
A: केरल महाराष्ट्र स्टडी के नए निष्कर्षों के अनुसार, सबसे बड़ा खतरा वयस्क लापरवाही और गलत उदाहरण हैं। शोध में पाया गया कि बड़ों के असुरक्षित व्यवहार से बच्चों में जोखिम लेने की प्रवृत्ति 50% से अधिक बढ़ जाती है।
Q2: ऑटो-रिक्शा खतरा सबसे अधिक क्यों है? बच्चे इसमें कौन से जोखिम उठाते हैं?
A: ऑटो-रिक्शा में ड्राइवर अक्सर क्षमता से ज़्यादा बच्चों को बिठाते हैं (ओवरलोडिंग)। 65% से ज़्यादा छात्रों ने ओवरलोडिंग की बात स्वीकार की। इसके अलावा, 55% से अधिक छात्र सवारी के दौरान हाथ/सिर बाहर निकालते हैं, जिससे गंभीर यातायात दुर्घटना का खतरा होता है।
Q3: स्कूल बस सुरक्षा निजी बसों की तुलना में कैसे बेहतर है?
A: स्कूल बसें आमतौर पर बेहतर निगरानी (Supervision) और सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल के तहत चलती हैं। इसके विपरीत, निजी बसों में ड्राइवर का व्यवहार कम ज़िम्मेदार होता है, जिसके कारण 66.9% छात्र चलती बस से उतरने जैसे खतरनाक कृत्य करते हैं।
Q4: बच्चों की ट्रैफिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में माता-पिता की ज़िम्मेदारी क्या है?
A: माता-पिता की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है कि वे स्वयं हर यात्रा में ट्रैफिक नियम ज्ञान का पालन करें (जैसे हेलमेट, सीट बेल्ट लगाना), ताकि बच्चे सुरक्षित व्यवहार सीखें। उन्हें बच्चों को सुरक्षित परिवहन मोड सुरक्षा का चुनाव करने और जोखिम बोध को समझने में मदद करनी चाहिए।
Q5: रोड सेफ्टी इंडिया को बेहतर बनाने के लिए सरकार को किन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए?
A: सरकार को Mode-Specific Interventions (हर परिवहन मोड के लिए अलग नियम) पर ध्यान देना चाहिए। कमर्शियल ड्राइवरों की चाइल्ड सेफ्टी ट्रेनिंग अनिवार्य करनी चाहिए और एन.सी.आर.बी. 2022 के आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए ओवरलोडिंग जैसे अपराधों पर सख़्त जुर्माना लगाना चाहिए।
(नोट-आर्टिकल तैयार करने में एआई की भी मदद ली गई है, गलती संभव है।)
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