निजामुद्दीन की दरगाह के दक्षिण-पूर्व में शम्सुद्दीन मोहम्मद का मकबरा है, जिसे अतगा खां भी कहते थे। जब इसने जालंधर के पास बहराम स्त्री पर विजय पाई थी तो अकबर ने इसे आजम खां का खिताब दिया था। यह उस वक्त मुगल सेना में मौजूद था, जब पठानों ने कन्नौज के पास 1540 ई. में हुमायूं को पराजित किया था और इसने बादशाह को मैदान से भागने में सहायता की थी। हुमायूं ने शम्सुद्दीन को इनाम दिया और उसकी बीवी को अकबर की धाय नियत कर दिया।

जब मुगलों ने सूरियों से दिल्ली वापस ली तो शम्सुद्दीन को अतगा खां (धर्मपिता) का खिताब मिला। यह बाद में पंजाब का गवर्नर बना दिया गया। लाहौर में कुछ अर्से ठहरकर यह आगरा लौट आया। इसने मुहनिम खां को, जो अकबर के दरबार के उमराओं में बड़ा अनुभवी और प्रभावशाली व्यक्ति था, हटा दिया। ऊधम खां ने, जो एक बहादुर व्यक्ति था

मगर खुदसर था और अकबर कई बार उससे नाराज हो चुका था, अतगा खों को कत्ल कर डाला। रमजान (1566 ई.) की रात को जब मुहनिम खां, अतगा खां और चंद दूसरे मुसाहिब आगरा के महल में किसी काम में व्यस्त थे, ऊधम खां मय अपने चंद साथियों के, अचानक कमरे में घुस आया । सब उसका स्वागत करने खड़े हो गए। उसी वक्त ऊधम खां ने अंतगा खां पर खंजर से वार किया और अपने एक साथी से उसे तलवार से खत्म कर देने को कहा।

ऊधम खां अकबर बादशाह के हुक्म से उसके धर्मपिता के कत्ल के अपराध में मार डाला गया। अतगा खां का शव आगरा से दिल्ली लाया गया और निजामुद्दीन गांव में औलिया के मकबरे से बीस गज के अंतर पर उसे दफन किया गया। 1566 ई. में अतगा खां के दूसरे लड़के मिर्जा अजीज कुतल तारा खां ने अपने पिता की कब्र पर मकबरा बनवा दिया। यह इमारत उस्ताद अहमद कुली की देखभाल में बनकर तैयार हुई।

मकबरा यद्यपि छोटा-सा है, लेकिन इसमें जो रंगामेजी की गई है उसके लिहाज से यह दिल्ली के सब मकबरों से सुंदरता में बढ़-चढ़कर है। मकबरा करीब 30 फुट मुरब्बा है। फर्श से छत तक की ऊंचाई 30 फुट है और छत से गुंबद की ऊंचाई 24 फुट और है। कुल ऊंचाई 54 फुट है। मकबरे के चारों कोण यकसी हैं।

दीवार के बीच में एक दो फुट गहरी महराब है, जो 30 फुट ऊंची और 11 फुट चौड़ी है। महराब की दीवार में मकबरे का दरवाजा है, जो सात फुट ऊंचा और चार फुट चौड़ा है। दीवार पर नक्काशी की हुई है, जो सफेद और पीले संगमरमर में लाल और नीले पत्थर की है। मकबरे के बीच का भाग संगमरमर के बने गुंबद से घिरा हुआ है। मकबरे का कलस तूफान में गिर गया था। छत पर बहुत सुंदर पच्चीकारी के काम का कंगूरा है। गुंबद के चारों ओर दीवार वाली महराबें हैं, जिनके इधर-उधर दो पतले और सलेट के पत्थर की काली पट्टियां पड़ी हुई हैं।

मकबरे के सामने का फर्श छह गज तक लाल पत्थर का है, जिसमें संगमरमर की पट्टियां पड़ी हुई हैं और अठपहलू कटाव का काम है। मकबरे की वर्तमान हालत अच्छी नहीं है। बीच की कब्र अतगा खां की है। बाएं हाथ की उनकी धर्मपत्नी की और दाहिनी ओर किसी और की।

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