सात समुंदर पार से खीचें चलें आते हैं जायका पसंद करने वाले
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
sita ram bazar famous for: हिन्दुओं की घनी बस्ती होने के अलावा, आज भी बाज़ार सीताराम दिल्ली की दावतों के विशेषज्ञ हलवाइयों के लिए मशहूर है। दिल्ली के महानगरीय विस्तार और सैकड़ों की संख्या में फैले तथाकथित ‘केटरर्स’ के हाथ में ठेठ दिल्ली की चाट, पकवानों और विशिष्ट खाद्य सामग्री तैयार करने का वह हुनर है ही नहीं जो सीताराम बाज़ार के पुश्त-दर-पुश्त चले आते इन हलवाई परिवारों के पास है।
समय के साथ बाज़ारवाद का प्रभाव क़ीमतों और व्यवहार दोनों पर पड़ा है, पर आश्वस्त करनेवाली बात यह है कि गुणात्मकता में कोई कमी नहीं आई है। अलबत्ता मिज़ाज़ में व्यावसायिकता और नखरा ज़रूर बढ़ गया है। सीताराम बाज़ार दो चीज़ों के लिए बहुत मशहूर था, आज भी है।
एक चाट और दूसरी कुल्फ़ी। बरसों तक शहर के बाहर के केटरर्स ने इस विशेषता का फ़ायदा उठाया। वे बड़ी दावतों में इन्हें सीताराम बाज़ार से मँगाकर, दुगुने-तिगुने दामों पर परोसते रहे। सूचना-तन्त्र के विज्ञापनधर्मी माहौल में बात देर-सवेर उजागर हो गई। अब स्थिति यह है कि वहाँ के मशहूर ‘कूड़ेमल मोहनलाल कुल्फ़ी वाले’ का विज्ञापन बड़े ठसके से अंग्रेज़ी के दैनिक अखबार में इस सुर्खी के साथ छपता है कि उन्होंने ही ऐश्वर्या-अभिषेक की शादी में कुल्फ़ी सप्लाई की थी।
यह पूछने पर कि वहाँ किसने कौन-सी कुल्फ़ी पसन्द की ? उनका जवाब था कि इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। उनसे तो बस ‘इवेंट’ वाले सज्जन ने मुम्बई आकर कुल्फ़ी सप्लाई करने के लिए कहा, और उन्होंने कर दी।
अब इस एक सदी पुरानी दुकान को जो अनिल शर्मा नाम के सज्जन चलाते हैं, उन्होंने पूरी प्रयोगवादी पद्धति से कुल्फ़ी के साठ से अधिक प्रकार ईजाद कर लिए हैं। कीमत है 20-25 रुपए। पर अब वे रिटेल में नहीं, केवल पहले से ऑर्डर मिलने पर ही कुल्फ़ी बेचते हैं- थोक में। चाहें तो उनका पता और मोबाइल नम्बर दोनों बाकायदा उपलब्ध हैं।
सीताराम बाज़ार एक और बात के लिए मशहूर है। वहाँ तमाम पुरानी दिल्ली के जमे हुए परिवारों के अलावा अच्छी-खासी संख्या में कश्मीरी पंडितों के परिवार हैं जो किसी समय विस्थापित होकर यहाँ आ बसे थे। कमला नेहरू का परिवार भी उन्हीं में था, जिन्हें ब्याहने के लिए जवाहरलाल नेहरू की बारात इसी सीताराम बाज़ार में आई थी। इस दृष्टि से इस बाज़ार का ऐतिहासिक महत्त्व है।