महज तीन साल की उम्र में संगीत की दीक्षा लेनी की शुरू

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

शाहिद परवेज खां को उनके शिष्य प्यार से ‘उस्तादजी’ कहते हैं। वे अपने वंश की छठी पीढ़ी के एक प्रख्यात सितार वादक हैं। शाहिद परवेज ‘एटा घराने’ के चिराग हैं, जो भारत का एक मशहूर संगीत घराना है। उनकी तालीम उनके पिता और गुरु उस्ताद अजीज खाँ के मार्गदर्शन में हुई।

छद्म  नाम से संगीत कंपोज

उस्ताद अजीज खाँ की एक रोचक कहानी है। वे अच्छे सितार वादक होने के बावजूद मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन नहीं कर सके, बल्कि ‘अजीज हिंदी’ नाम से स्टेज के नीचे फिल्म संगीत कंपोज करते थे। इससे उनके दादा सदाबहार वादक उस्ताद वहीद खाँ बड़े नाराज रहते थे।

फिल्म में संगीत से तौबा

उन्होंने उस्ताद अजीज खाँ से कह दिया कि जब तक वे अपने उत्तराधिकारी के रूप में शाहिद परवेज खां को दीक्षित नहीं करेंगे, वे उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे। इससे आहत होकर अजीज खाँ ने फिल्म संगीत से हमेशा के लिए तौबा कर ली और संकल्प किया कि वे अपने इकलौते पुत्र और वारिस को अपने खानदानी संगीत में प्रशिक्षित करेंगे। इसके बाद अजीज खां शहर की चकाचौंध छोड़कर एक छोटे से गाँव में आकर अपने बेटे शाहिद परवेज को संगीत की तालीम देने लगे।

तीन साल की उम्र से संगीत की दीक्षा

तीन साल की उम्र में शाहिद परवेज को संगीतपूर्ण वातावरण में संगीत की शिक्षा मिलनी आरंभ हो गई। सितार पकड़ने से पहले उन्हें गायन की शिक्षा दी गई, जो किसी भी वाद्य यंत्र को बजाने से पूर्व की आधारभूत शिक्षा होती है। इससे वादक अपनी एक गायकी शैली विकसित कर लेते हैं। फिर वही शैली उनके वाद्य यंत्र से भी भावनात्मक ढंग से मुखर होती है।

उस्ताद के पहले गुरु थे दादा

उस्ताद शाहिद परवेज खां के पहले वादक गुरु उनके दादा बने। बाद में उन्हें उनके चाचा बॉलीवुड फिल्म संगीतकार हफीज खां के साथ रहकर सीखने का मौका मिला। उन्हें बाल्यावस्था में उस्ताद मुन्ने खाँ के सान्निध्य में रिदम और तबला वादन की तालीम मिली। इस प्रकार उस्ताद शाहिद संगीत और रिदम के एक अच्छे जानकार के रूप में उभरे। उन्होंने अपने पिता अजीज खाँ के संरक्षण में सितार वादन का भी व्यापक अभ्यास किया। इस प्रकार एटा घराने की मशाल उनके हाथों में सुरक्षित रही।

सितारवादन में नए प्रयोग

उस्ताद शाहिद परवेज ने सितार वादन में नए-नए प्रयोग करके उन्हें अपने नाम दर्ज करा लिया है। उनका संगीत नया और अनूठा होता है, लेकिन सुधी श्रोतागण उसे सरलता से पहचान व ग्रहण कर लेते हैं। शाहिद परवेज पारंपरिक और नए संगीत का अद्भुत मिश्रण करके अपने सितार वादन को स्वर्गिक ऊँचाइयों तक ले जाते हैं।

विश्व में सराहा गया देवी संगीत

उस्ताद शाहिद ने विदेशों के व्यापक दौरे किए हैं। वे अपने संगीत की ऊँचाइयों पर रहे हैं। अपने संगीत कार्यक्रम के अंत में वे अपने श्रोताओं को विस्मित-सा कर देते हैं। उनका दैवी संगीत आज पूरे विश्व में सराहा जाता है, जो उनके पारंपरिक संगीत को विहंगमता का कराता है।

परिवार ने दिए एक से बढ़कर एक नगीने

उस्ताद शाहिद के परिवार ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से एक नगीने दिए हैं, जिनमें साहबदाद खाँ साहेब, इमदाद खाँ साहेब, इनायत खाँ साहेब, वहीद खाँ साहेब और विलायत खाँ साहेब के नाम शामिल हैं।

उस्ताद शाहिद ने ८ साल की उम्र से ही मंच पर अपनी सितार वादकी के जौहर दिखाने शुरू कर दिए थे। अपनी कठोर अभ्यास शैली और समर्पण भावना से शाहिद ने ‘लयकारी’ में महारत हासिल कर ली थी। गायन और वादन का जोड़ उनका गजब का था, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था।

उस्ताद शाहिद परवेज को मिले पुरस्कार

उस्ताद शाहिद परवेज खाँ आकाशवाणी के टॉप ग्रेड कलाकार थे। अपनी गायकी और वादकी में किए उन्हें अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले, जिनमें ‘सुर शृंगार’, ‘कुमार गंधर्व सम्मान’, ‘एम.एल. कौसर अवार्ड’ आदि शामिल हैं। सन् २००६ में उन्हें प्रतिष्ठित ‘संगीत नाटक अकादमी अवार्ड’ मिला।

उन्होंने भारत में तथा विदेशों में सभी बड़े और प्रमुख संगीत महोत्सवों में प्रदर्शन किया है और अपनी कला से सभी को रोमांचित किया है। उनके संगीत के अनेक एल.पी. रिकॉर्ड्स, ऑडियो एवं वीडियो कैसेट, सी.डी. और डी.वी.डी. बनी हैं। वे आज एक महान् सितार वादक के रूप में देश-विदेश में जाने जाते हैं।

उस्ताद शाहिद परवेज खाँ के लिए सितार उनके अस्तित्व की पहचान है। संगीत उनके लिए मात्र अनुशासन नहीं है, बल्कि स्वयं जीवन है— जिसमें धड़कन है, भावना है, संवेदना है और इंद्रधनुषी रंग हैं।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here