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एबीवीपी का 77वां स्थापना दिवस: पूर्वोत्तर भारत में एबीवीपी

ashutosh singh
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लेखक-आशुतोष सिंह

देश का सबसे बड़ा छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) 9 जुलाई को अपने स्थापना के 77 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। 09 जुलाई 1949 को विद्यार्थी परिषद का विधिवत पंजीयन हुआ, एबीवीपी 76 वर्ष की अपनी यात्रा में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के स्पष्ट लक्ष्य के साथ देश की कई पीढ़ियों को संस्कारित करने, उनके एक स्पष्ट लक्ष्य देने, विद्यार्थियों को राष्ट्र के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में तैयार करने में सफल‌ रही है तथा यह कार्य सतत चल रहा है।

यह लेख एबीवीपी के पूर्वोत्तर राज्यों में कार्य के विशेष संदर्भ में है। वैसे तो आज देश में छोटे-बड़े सैकड़ों छात्र संगठन हैं लेकिन विद्यार्थी परिषद जैसी देशव्यापी व्यापकता, विद्यार्थी-युवा केन्द्रित स्पष्ट विजन तथा संगठन शक्ति आदि तत्व किसी संगठन के पास नहीं हैं। पूर्वोत्तर भारत देश का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। अपनी भौगोलिक संरचना की विशिष्टता, प्राकृतिक वैविध्य के सौंदर्य तथा भाषाई-रहन सहन की विविधता इस पूरे क्षेत्र के विशिष्ट बनाती है। बांग्लादेश, चीन, म्यांमार, भूटान आदि देशों से पूर्वोत्तर के पांच राज्य की सीमाएं मिलती हैं, इस कारण इन राज्यों में चुनौतियां भी लगातार बनी रहती हैं। पूर्वोत्तर के अलग-अलग राज्यों में जातीय संघर्ष की समस्या तथा देश के शेष भाग से कम संपर्क के कारण चुनौती और भी बड़ा रूप धारण कर लेती है। ऐसे में पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के शेष भारत के साथ संपर्क-संबंध तथा पूर्वोत्तरीय राज्यों के युवाओं में आपसी समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता देश की स्वतंत्रता के बाद से ही थी।

tiranga rally
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विद्यार्थी परिषद ने इस दिशा में बहुत पहले सोचा और इस पर कार्य शुरू किया, उसका परिणाम यह है कि आज न केवल गुवाहाटी, शिलांग, अगरतला, ईटानगर, इम्फाल जैसे पूर्वोत्तरीय राज्यों की राजधानियों में बल्कि कस्बाई इलाकों तथा जिला केन्द्रों पर ऐसे युवाओं की एक अच्छी संख्या मिलेगी जिनका एक अखिल भारतीय विजन तथा समझ है, यहां देशव्यापी समझ का उल्लेख इसलिए किया गया क्योंकि विभिन्न जनजातियों के बीच संघर्ष तथा आपसी समन्वय की कमजोर कड़ी प्रायः इन राज्यों में एक समस्या के रूप में सामने आ जाती है।

एबीवीपी द्वारा वर्ष 1966 में शुरू किया गया अंतर-राज्य छात्र जीवन दर्शन ( Students’ Experience in Inter-state living) एक ऐसा प्रयास है जिसने अपनी निरन्तरता से पूर्वोत्तर राज्यों के सैकड़ों युवाओं में राष्ट्रीय एकात्मता की भावना को सुदृढ़ करने तथा राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। SEIL के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम की अलग-अलग जनजातियों के विद्यार्थियों को शेष भारत की यात्रा आयोजित की जाती है, इस दौरान ये युवा देश के विभिन्न राज्यों में अपनी यात्रा के दौरान स्थानीय परिवारों के बीच निवास करते हैं, वहां के रहन-सहन से परिचित होते हैं तथा अपनी विशिष्टता से इन परिवारों को भी अवगत कराते हैं, समाज के विशिष्ट तथा गणमान्य नागरिकों से इनके संवाद कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इसी प्रकार भारत के अन्य राज्यों से पूर्वोत्तर भारत से परिचय निमित्त एक वर्ष के अन्तराल पर पूर्वोत्तर राज्यों की यात्रा आयोजित होती है।‌ इस प्रकार यह प्रयास पूरे देश में राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने की दिशा में उल्लेखनीय प्रयास है, जिसका योगदान अतुलनीय है।

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वर्तमान में गौहाटी विश्वविद्यालय, असम सहित पूर्वोत्तर के विभिन्न महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों के छात्रसंघ चुनावों में एबीवीपी के कार्यकर्ताओं की जीत ने क्षेत्रीय संकुचित मानसिकता वाले तत्वों के हौसले को पस्त करते हुए राष्ट्रीय विचारों के प्रति पूर्वोत्तर के युवाओं भाव को रेखांकित किया है।

विद्यार्थी परिषद आज अपने विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रमों तथा प्रकल्पों द्वारा पूर्वोत्तर में राष्ट्र प्रथम के भाव को विद्यार्थियों तथा युवाओं के बीच विस्तारित कर रही है। मणिपुर में बाढ़ के दौरान सेवा कार्य, स्कूली बच्चों को निशुल्क पढ़ाने, कौशल विकास के विभिन्न कार्यक्रमों से एबीवीपी पूर्वोत्तर के युवाओं को एक नई दिशा दे रही है, ये प्रयास पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में राष्ट्र को मजबूती देने वाले तथा विभिन्न समस्याओं का अंत करने वाले होंगे।(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं तथा पूर्व में एबीवीपी के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक रह चुके हैं)

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