दिल्ली-एनसीआर Delhi-NCR में सांसों पर संकट बरकरार है। Delhi Air Pollution गैस चैंबर बनी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता गंभीर श्रेणी की बनी हुई है। इंसान ही नहीं पशु-पक्षी, पेड़-पौधे भी प्रदूषण से प्रभावित हैं। सर्वोच्च अदालत ने भी दिल्ली के प्रदूषण पर तल्ख टिप्पणी की है। अदालत ने सरकार समेत सिविक एजेंसियों को फटकार भी लगाई है। लेकिन सवाल है कि प्रदूषण से निजात कैसे मिलेगी? आखिर कब दिल्लीवासी स्वच्छ हवा में सांस लेंगे?

2 नवंबर को पूरा दिल्ली-एनसीआर सीजन के पहले स्मॉग की चपेट में आया। 24 घंटे के अंदर फेफड़ों तक जाने वाले 2.5 माइक्रोन से कम आकार के पार्टिकुलेट मैटर की संख्या में 68 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। यह इस सीजन में पहली बार हुई सर्वाधिक बढ़ोतरी थी। इससे प्रदूषण के खिलाफ सिविक एजेंसियों के प्रदूषण के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई के दावों पर भी सवालिया निशान उठ खड़े हुए। इतने अल्प समय में हवा में प्रदूषण का स्तर इतनी तेजी से गंभीर श्रेणी में इसलिए भी पहुंचा क्योंकि स्थानीय और क्षेत्रीय स्रोतों से प्रदूषण पहले ही बहुत अधिक मात्रा में था।

यह मानने में कोई गुरेज नहीं कि प्रदूषण को लेकर आम आदमी में जागरूकता बढ़ी है। सरकारें भी इस दिशा में छिटपुट ही सही लेकिन लगातार प्रयास कर रही हैं। खासकर दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या से निजात दिलाने की लड़ाई बीते दो दशकों से भी अधिक समय से जारी है। सरकार लगातार कदम उठाने का दावा करती है? बावजूद इसके प्रदूषण की समस्या अनसुलझी क्यों है? दिल्ली सरकार द्वारा प्रदूषण के खात्मे के लिए शुरू की गई कई योजनाएं गिनाती आई है। इसमें सार्वजनिक और वाणिज्यिक परिवहन को डीजल से सीएनजी करना, 15 साल पुराने वाणिज्यिक वाहनों को सुनियोजित तरीके से हटाना, भारी वाहनों को बाइपास के जरिए बाहर-बाहर गंतव्य तक पहुंचाना, डीजल कारों और एसयूवी की खरीद पर प्रदूषण शुल्क लगाना, दिल्ली में बेचे जाने वाले डीजल ईंधन पर पर्यावरण सेस  लगाना आदि शामिल है।

डीजल एमिशन में कटौती के चलते 2014 के मुकाबले 2022 तक दिल्ली में डीजल ईंधन की खपत 46 प्रतिशत तक कम हो गई है। सरकार ने थर्मल पावर प्लांट बंद कर दिए हैं। अब तो औद्योगिक क्षेत्रों में भी प्राकृतिक गैस का उपयोग बढा दिया गया है। कोयले के प्रयोग पर भी पाबंदी लगा दी गई है। याद करिए, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में 10 हजार बसों का लक्ष्य निर्धारित किया था। 2020 के बाद से यहां बसों की संख्या बढकर 7,041 हो गई है। इन सभी प्रयासों का सकारात्मक सुफल भी सामने आने लगा है।

एक्सपेंडेड रीयल-टाइम एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग ग्रिड के आंकडें बताते हैं कि लॉन्ग टर्म पार्टिकुलेट ट्रेंड्स में बदलाव आया है। पीएम 2.5 स्तर स्थिर हो गए हैं और साल-दर-साल आधार पर नहीं बढ़ रहे हैं। लेकिन यह काफी नहीं है। अब आगे का रास्ता और कठिन है। जनता के साथ मिलकर ही सरकार आगे की लडाई जीत सकती है। इसके लिए जन जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।

सरकार को सड़कों पर वाहनों की संख्या कम करने पर ध्यान देना होगा। दिल्ली समेत एनसीआर में खुले में कचरा जलाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं। इन पर अंकुश लगाने की जरूरत है। ताकि कचरे के खुले में जलने और उससे हानिकारक गैस निकलने पर रोक लगाई जा सके। इसके लिए प्रत्येक विभाग की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। ताकि सुनियोजित तरीके से कार्रवाई की जा सके। दिल्ली समेत एनसीआर के प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान वाहनों से निकलने वाले धुंए का है। सार्वजनिक परिवहन प्रणाली इंटिग्रेटेड नहीं है। इसलिए लोग इसके प्रयोग से कतराते हैं। शहर की सड़कें पैदल चलने या फिर साइकिल चलाने के लिए मुफीद नहीं है। सर्वप्रथम इस पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। यह प्रदूषण के खिलाफ जंग में बेहद प्रभावी कदम साबित होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि बसों की संख्या बढी है, लेकिन सरकार को बस से सफर करने वाले यात्रियों की संख्या में कमी पर ध्यान देना होगा। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में कहा गया है कि 2017-18 के बाद से ही हर दिन प्रति बस ले जाने वाले यात्रियों में औसतन 48 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। दिल्ली के किसी भी कोने में चले जाएं सड़कों पर हर तरफ वाहनों की कतार दिखती है। वाहनों की संख्या कम करने के लिए चरणबद्ध तरीके से काम करने की आवश्यकता है। इसके लिए पार्किंग क्षेत्रों का बेहतर प्रबंधन अनिवार्य है। पार्किंग की उपलब्धता और बेहतर प्रबंधन का अभाव दिखता है।

नवंबर में धुंध की मोटी चादर को छोड भी दें तो लैंडफिल साइट आए दिन प्रदूषण का सबब बनती है। अक्सर भलस्वा, गाजीपुर लैंडफिल साइट पर आग लग जाती है, जिससे आसपास के इलाके में रहना मुहाल हो जाता है। स्वच्छ भारत मिशन का लक्ष्य 80 प्रतिशत कचरे को लैंडफिल से हटाना है। इसके लिए कचरे में शामिल अलग अलग वस्तुओं को छांटने, रीसाइकिल करने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि यह पूरा होता हुआ नहीं दिखता है।

सरकारों को यह समझना होगा कि प्रदूषण को केवल एक दो या कुछ महीने की समस्या समझकर टालने वाली प्रवृत्ति खत्म करनी होगी। हर साल प्रदूषण बढ़ने पर ही आपातकालीन कदम उठाए जाते हैं। आनन फानन में डीजी सेट बंद किए जाते हैं। कारों के परिचालन पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। जबकि सच्चाई सब को पता है। सार्वजनिक परिवहन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।

दिल्ली की हवा साफ रखने के लिए आवश्यक है कि केवल दिल्ली-केंद्रित उपाय नहीं उठाए जाए। प्रदूषण सीमाओं के पार भी उड़ता है। एनसीआर के चारों राज्यों में पराली जलाने पर प्रतिबंध के इतर प्रदूषण के अन्य प्रमुख स्रोतों पर भी रोक लगानी ही होगी। प्रभावी बदलाव लाना है तो स्थानीय और क्षेत्रीय कार्यों को लक्ष्य आधारित रणनीतियों, नियमों का कठोरता से पालन, प्रभावी फंडिंग, निगरानी और रिपोर्टिंग जैसे उपाय बहुत जरूरी हैं।

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