इंजीनियरिंग छात्रों को वैमानिकी प्रणालियों, नौसेना प्रौद्योगिकियों, हथियार प्रणालियों, साइबर सुरक्षा और उन्नत सामग्रियों में विशिष्ट ज्ञान से लैस करने के लिए डिजाइन किया गया है
विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया गया यह कार्यक्रम सशस्त्र बलों, डीआरडीओ और रक्षा विनिर्माण उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुरूप है
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) ने रक्षा प्रौद्योगिकी इंजीनियरिंग एवं टेक्नोलॉजी में स्नातक कार्यक्रम हेतु माइनर डिग्री के लिए मॉडल करिकुलम शुरू किया है जो स्वदेशी क्षमताओं को आगे बढ़ाने और भारत के युवाओं को रक्षा संबंधी नवाचार के भविष्य के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। पाठ्यक्रम का अनावरण परिषद के अध्यक्ष प्रो. टी.जी. सीताराम ने किया।
इस दौरान परिषद की सदस्य सचिव प्रो. श्यामा रथ, एयरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और पाठ्यक्रम समिति के अध्यक्ष डॉ. जी. सतीश रेड्डी और पाठ्यक्रम समिति के सदस्य एवं सोसाइटी ऑफ इंडियन डिफेंस मैन्युफैक्चरर्स (एसआईडीएम) के अध्यक्ष राजिंदर सिंह भाटिया समेत एआईसीटीई के वरिष्ठ अधिकारी व रक्षा क्षेत्र के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे।
अपने संबोधन में प्रो. टी.जी. सीताराम ने डिफेंस टेक्नोलॉजी में एक मजबूत टैलेंट पूल बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत की भावना और तेजी से हो रही तकनीकी प्रगति से प्रेरित होकर, भारत रक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रहा है। इस बदलते परिदृश्य में, रक्षा प्रौद्योगिकियों में कुशल, नवोन्मेषी और उत्साही प्रतिभाओं का एक समूह तैयार करना राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने और स्वदेशी क्षमताओं को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।

प्रो. सीताराम ने कहा कि पाठ्यक्रम को इंजीनियरिंग छात्रों को वैमानिकी प्रणालियों, नौसेना प्रौद्योगिकियों, हथियार प्रणालियों, साइबर सुरक्षा और उन्नत सामग्रियों में विशिष्ट ज्ञान से लैस करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह कार्यक्रम सशस्त्र बलों, डीआरडीओ और रक्षा विनिर्माण उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुरूप है। इसके साथ ही यह अंतःविषय शिक्षा और नवाचार को बढ़ावा देता है।
इस माइनर डिग्री को प्राप्त करने वाले छात्र न केवल अपनी व्यावसायिक संभावनाओं को बढ़ाएँगे, बल्कि एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्देश्य में भी योगदान देंगे। सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले सभी 200 तकनीकी संस्थानों को इस पाठ्यक्रम को अपनाकर ऐसा ईकोसिस्टम विकसित करना चाहिए जहाँ छात्र रक्षा प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में अन्वेषण, नवाचार और नेतृत्व कर सकें।
पाठ्यक्रम तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष डॉ. जी. सतीश रेड्डी ने कहा कि रक्षा प्रौद्योगिकियों में एक वैश्विक महाशक्ति बनने के लिए भारत को कुशल और योग्य मानव संसाधनों की आवश्यकता है। सशस्त्र बलों, उद्योग, डीआरडीओ और शिक्षा जगत सहित विभिन्न हितधारकों के साथ विस्तृत चर्चा के बाद हमने यह पाठ्यक्रम तैयार किया है। यह माइनर डिग्री प्रोग्राम देश की रक्षा आवश्यकताओं और उपलब्ध संभावनाओं के बीच संतुलन स्थापित करता है। इसमें छात्रों के लिए क्षेत्रीय दौरे, सेमिनार और व्यावहारिक अनुभव भी शामिल हैं।
उद्योग जगत का दृष्टिकोण रखते हुए एसआईडीएम के अध्यक्ष श्री राजिंदर सिंह भाटिया ने कहा कि रक्षा उत्पादन में उद्योग के लिए तैयार जनशक्ति की कमी एक लंबे समय से चुनौती रही है। यह पहल रक्षा प्रौद्योगिकी और विनिर्माण प्रक्रियाओं पर विशेष पाठ्यक्रम प्रदान करके इस कमी को पूरा करेगी, जो अब तक उच्च शिक्षा में सीमित रही है।
इस पाठ्यक्रम के साथ, भारत कुशल जनशक्ति के एक मजबूत समूह का पोषण करेगा जो रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की यात्रा को गति प्रदान करेगा। इस मॉडल करिकुलम का शुभारंभ राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को उच्च शिक्षा के साथ एकीकृत करने की एआईसीटीई की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
रक्षा क्षेत्र की जटिल मांगों को पूरा करने के लिए इंजीनियरों की अगली पीढ़ी तैयार करके, एआईसीटीई एक आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से उन्नत भारत का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।






