नदी के किनारे घंटो ध्यानमग्न रहते थे अल्ला रक्खा खां

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Alla Rakha Khan Biography In Hindi: सिद्ध तबला वादक अल्लारखा का जन्म 19 अप्रैल १९१९ को जम्मू के गांव पगवाल में हुआ। इनके पिता हाशिम अली एक किसान थे। तबला इनके घर में किसी ने नहीं बजाया, न ही वंशानुगत संगीत की परंपरा थी। दैव योग से तालवाद्यों के प्रति उनका आकर्षण वाल्यकाल से रहा। गाँव के घर में किसी उत्सव पर कोई ढोलक आदि बजाता तो कुछ छोड़कर उसे सुनने चले जाते।

तबला सीखने ड्रामा कंपनी में हुए भर्ती

Alla Rakha Khan Biography In Hindi : गांव का चिड़ा नामक एक व्यक्ति ढोलक बजाया करता था। जब भी वह ढोलक बजाता, वे उसकी थाप पर विभोर होकर थिरकने लगते। कुछ समय तक यह क्रम जारी रहा, उसी बीच गांव में एक ड्रामा पार्टी का आगमन हुआ, जिसमें एक झंडू कलरिया नाम का तबलिया था। वह कादिर बख्श का शागिर्द था।

अल्लाह रक्खा के मन में यह विचार आया कि झंडू जब इतना अच्छा तबला बजाता है तो उसके उस्ताद इससे भी अच्छा तबला बजाते होंगे। तबला सीखने की नीयत से वह उस ड्रामा कंपनी में भरती हो गए। पं. ओंकारनाथ ठाकुर,  उस्ताद बिस्मिल्लाह खां,  उस्ताद अलाउद्दीन खां की तरह अल्लारक्खा को भी दैवी अनुभूति व अलौकिक शक्ति के आशीर्वाद के परिणामस्वरूप संगीत की उपलब्धि हुई।

वह ग्यारह वर्ष की अवस्था में कलूर गाँव की नदी के तट पर घंटों बैठे रहते थे। एक दिन उन्हें एक दिव्य व अलौकिक शक्ति की अनुभूति हुई। उससे प्रभावित होकर उन्होंने कुछ करने का निश्चय किया। परिणामस्वरूप उसी क्षण तबला सीखने एवं उसी को जीवन-पथ का राही बनाने की दृढ़ प्रतिज्ञा ली।

उस्ताद कादिर बख्श हुए हैरान

सर्वप्रथम उन्होंने गुरुदासपुर के एक ध्रुपद गानेवाले की संगत की। तीन दिनों तक उनके साथ बजाने से प्राप्त पारिश्रमिक से सराय का किराया चुकाकर वे लाहौर को चल दिए। लाहौर जाकर वे उस्ताद कादिर बख्श से मिले। कादिर बख्श हैरान हो गए कि यह बालक बिना किसी गुरु से सीखे इतना अच्छा और सफाई से तबला बजा लेता है। फिर तो बिना हिचक के खुश होकर उन्होंने उन्हें अपना शिष्य बना लिया।

इस प्रकार विधिवत् तालीम का सिलसिला शुरू हो गया उस्ताद कादिर बख्श का वादन पंजाब घराने से संबद्ध था। पंजाब घराने की नींव भवानीदास ने रखी थी, जो अकबर के दरबार के पखावजी थे। भवानीदास के शिष्य फकीर बख्श ने इस घराने की परंपरा को बढ़ाया। पंजाब घराने का बाज पखावज से संबंधित होने के कारण जोरदार और खुला है। इसमें चारों उँगलियों और थाप का खूब प्रयोग होता है। ठेके के बाँट का काम और लयकारी का गणित कठिन है। पंजाब घराना अपने रैलों और गतों के लिए मशहूर है।

पंजाब घराने के तबले को नए रंग-रूप और नए आयाम देने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने जिस काल में अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए संघर्ष शुरू किया, वह समय हिंदुस्तानी संगीत के लिए क्रांति का युग था सितार और सरोद जैसे वाद्यों के लिए पंजाब घराने की उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न लग गया था। जब उस्ताद को उस स्थिति की गंभीरता का बोध हुआ, तब उन्होंने पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए अपनी सृजनात्मक क्षमता से इसे एक नया आकार-प्रकार दिया।

फिल्मों में दिया संगीत

उन्होंने ए. आर. कुरैशी के नाम से कई फिल्मों में संगीत भी दिया। ‘माँ-बाप’, ‘घर की लाज’, ‘सती अनसूया’ और ‘मदारी’ जैसी दर्जनों फिल्मों में सफल संगीत निर्देशन किया। गायन की शिक्षा भी उन्होंने उस्ताद आशिक अली से प्राप्त की। बाद में संगीत के गिरते स्तर को देखते हुए फिल्म में संगीत देना बंद कर दिया।

बंबई रेडियो से करियर की शुरुआत, Alla Rakha Khan  

उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत सन् १९४० में बंबई रेडियो से की। सन् १९५८ में जापान में पं. रविशंकर के साथ पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। विविध कार्यक्रमों में तबले पर पं. रविशंकर के साथ जुगलबंदी से संगीत की एक नई धारा प्रवाहित की।

इस काल में उनका कार्यक्रम विदेशी ओताओं के द्वारा काफी सराहा गया तथा विदेशी श्रोताओं में भारतीय संगीत के प्रति आकर्षण बढ़ा। उसके बाद तो उन्होंने विदेशों में असंख्य सफल कार्यक्रम प्रस्तुत किए। अनेक शिष्यों में उनके तीन पुत्र जाकिर, तौफीक और फजल भी कुशल कलाकार हैं। उनमें जाकिर की प्रसिद्धि अधिक हुई।

आज उस्ताद जाकिर हुसैन प्रसिद्धि के जिस शीर्ष स्थान पर हैं, उसका संपूर्ण श्रेय उनके पिता उस्ताद अल्लारखा को ही जाता है, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को इस बुलंदी के शिखर पर पहुँचाया उस्ताद जाकिर हुसैन ने तबले को जो ग्लैमर, शोखी और रूमानी स्वरूप दिया है उसकी वजह से ही वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के और युवा वर्ग के सबसे कलाकार उस्ताद अल्लारक्खा को सन् १९७७ में पद्मश्री और १९८२ में संगीत नाटक अकादमी के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी मृत्यु 3 फरवरी 2000 को हुई।

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