1526 ई. की पानीपत की लड़ाई और लोदी खानदान की बरबादी के बाद, हिंदुस्तान की सल्तनत मुगलों के हाथ आ गई, जिसका पहला बादशाह बाबर था। उसने आगरा को ही राजधानी रखा। बाबर की मृत्यु के पश्चात उसका बेटा हुमायूं भी 1540 ई. तक आगरा में ही रहा। शेरशाह ने उसे मुल्क से निकाल दिया और जब 1556 ई. में हुमायूँ फिर से हिंदुस्तान का बादशाह बना तो उसने दिल्ली को राजधानी बनाया, मगर छह महीने बाद ही वह मृत्यु को प्राप्त हुआ।

हुमायूँ के बाद अकबर ने आगरा को ही राजधानी रखा और उसके बाद जहांगीर ने भी अपने बाप का अनुसरण किया। जहांगीर के बाद शाहजहां की ताजपोशी भी आगरा में ही हुई और ग्यारह वर्ष तक वह भी वहां राज करता रहा। मगर आगरा शहर पुराना हो चुका था। वहां जगह की तंगी महसूस होने लगी थी। फौज की नकले-हरकत में बड़ी अड़चन पड़ती थी, क्योंकि बाजार संकरे थे। शाहजहां चाहता था कि आगरा को फिर से बसाया जाए, वहां के बाजार चौड़े किए गए. मगर तिजारतपेशा लोग न माने; आखिर दिल्ली को राजधानी बनाने का निश्चय हुआ। यह मुसलमानों की बारहवीं और आखिरी दिल्ली थी।

शाहजहां 1627 ई. में तख्त पर बैठा और तीस वर्ष तक हुकूमत करके वह 1658 ई. में अपने बेटे औरंगजेब के हाथों गिरफ्तार हुआ। शाहजहां का राजतिलक बड़ी धूमधाम से मनाया गया था। जब वह तख्त पर बैठा तो देश में प्रायः अमन-चैन और शांति थी, इसलिए इसको बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने का अच्छा मौका मिल गया, जिसका इसे बड़ा शौक था। इसने ऐसी-ऐसी इमारतें बनवाई कि इसकी ख्याति संसारव्यापी हो गई। ताजमहल ही इसकी बनवाई एक ऐसी लामिसाल इमारत है, जिसने न केवल इसका, बल्कि इसकी बीवी का भी, जिसके लिए इसने ताजमहल बनाया था, नाम अमर कर दिया।

शाहजहां की शादी नूरजहां की भतीजी मुमताज महल से हुई थी। वह अपने पति को बहुत चाहती थी। शादी के चौदह बरस बाद जब वह मरने लगी तो उसने अपने पति से दो बातें कहीं। एक यह कि वह दूसरी शादी न करे और दूसरी यह कि उसका मकबरा बनवाए कि दुनिया उसे देखने आए। शाहजहां ने अपनी बीवी की दोनों इच्छाओं को पूर्ण किया।

शाहजहां के दरबार के ठाट-बाट की कोई हद न थी। उसके जमाने के कामिल खां ने उसका हाल लिखा है, जो अगले बादशाहों से कहीं बढ़ा-चढ़ा हुआ था। इमारतें बनाने में तो इसने हद ही कर दी थी। उसकी बीवी का मकबरा, ताजमहल, आगरा के किले की मोती मस्जिद और संगमरमर के महलात, दिल्ली शाहजहांबाद का लाल किला और जामा मस्जिद ये इमारतें उसकी याद को हरदम ताजा किए रहती हैं। इन इमारतों के अतिरिक्त उसने जनता के लाभ के लिए भी कितने ही काम किए, जैसे पश्चिमी जमना नहर तख्त ताऊस, जिस पर कहते हैं, सात करोड़ रुपये खर्च हुए थे, इसी ने बनवाया था। यद्यपि इन इमारतों और दूसरे कामों पर इसने खजाने के खजाने खाली कर दिए, फिर भी कहते हैं कि इसकी मृत्यु के वक्त इसके खजाने में चौबीस करोड़ रुपये नकद थे।

जवाहरात और जेवरात तथा दीगर सोने-चांदी का सामान उसके अलावा था। इसने तीस बरस हुकूमत को इसकी हुकूमत से सभी सुखी और खुशहाल रहे। तख्त ताऊस को एक फ्रांसीसी जौहरी ने 1665 ई. है। में देखा था। वह उसे एक पलंग की शक्ल का बताता है- चार फुट चौड़ा, छह फुट लंबा, जिसके चार पाए बीस से पच्चीस इंच तक ऊंचे खालिस सोने के बने हुए थे। इस पर बारह सुत्नों का शामियाना तना रहता था। कटारे पर भिन्न-भिन्न प्रकार के जवाहरात और मोती जडे हुए थे। 108 बड़े लाल तख्त में जड़े हुए और 116 जमुरुंदा शामियान के बारह सुतूनों पर बेशकीमती बड़े-बड़े मोतियों की कतारें जड़ी हुई थीं। कीमत का अंदाजा साठ लाख पौंड था। इस पर दो मोर जवाहरात के ऐसे बने हुए थे कि असल रंग के मालूम होते थे। इसीलिए इसका नाम तख्त ताऊस पड़ा था। 1739 ई. में नादिर शाह इसे लूटकर ले गया।

ताजमहल को बनाने में बराबर बाइस वर्ष तक हजारों आदमी काम  करते रहे। इस पर चार करोड़ रुपये के करीब लागत आई थी। शाहजहाँ  ने आगरा के किले में आलीशान महल बनवाया। मौजूदा दिल्ली शाहजहाँ ने ही आबाद की और लाल किला तथा उसके अंदर के महलात 1648 ई. में उसी ने बनवाए। दिल्ली शहर की चारदीवारी 1649 ई. में पहले  पत्थर और गारे की चुनी गई थी, जो बरसात में टिक न सकी। फिर वह पुख्ता बना दी गई।

शाहजहां 1634 ई. में कश्मीर जाते वक्त दिल्ली होकर गुजरा था और उधर से ही अगले वर्ष वापिस आया। दिल्ली-आगरा के दरम्यान दाराशिकोह के लड़का पैदा हुआ। पोते के पैदा होने की खुशी में बादशाह ने तख्त ताऊस पर, जो सात बरस में तैयार हुआ था, पहले पहल दरबार किया। उसने एक सिक्का भी चलाया और एक खास किस्म की सोने की मोहर चलाई थी, जो सिर्फ अमीरों और मनसबदारों को दी जाती थी।

शाहजहां ने कैद में ही 1 फरवरी, 1666 ई. को 74 वर्ष की उम्र में मृत्यु पाई और अपनी प्यारी बीवी के पास ताजगंज में दफन किया गया।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here