इसको हुमायूँ की बेवा हाजी बेगम ने, जो अकबर की मां थी. 1560 ई. में आबाद किया था। इसकी चारदीवारी ही है। यह हुमायूँ के मकबरे के दक्षिण में है। बेगम जब मक्का से आई थी तो अपने साथ तीन सौ अरब लाई थीं। उनको इस सराय में आबाद कर दिया था। इसके दरवाजे ही बाकी हैं, जिनमें से एक जहांगीर के वक्त में बनाया गया था। दरवाजे तीन हैं। पश्चिमी द्वार बिल्कुल साधारण है।

उत्तरी द्वार बहुत आलीशान है- 40 फुट ऊंचा, 25 फुट चौड़ा और 20 फुट गहरा। इस दरवाजे की बनावट बहुत सुंदर है। इसमें पच्चीकारी का काम किया हुआ है। 1947 ई. के बलवे में यहां की सारी आबादी पाकिस्तान चली गई। अब इस जगह दिल्ली प्रशासन की ओर से दस्तकारी का एक बहुत बड़ा केंद्र खोल दिया गया है।

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