2023 में लगभग 77 प्रतिशत बढ़ा क्विक कॉमर्स बाजार
किसी भी खुदरा व्यापारी (रिटेलर) के पास उत्पादों को बाजार और उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के दो मुख्य तरीके होते हैं- पहला ऑफलाइन या पारंपरिक दुकानें और दूसरा ऑनलाइन रिटेल बिक्री। बात भारत की करें तो यहां रिटेल सेक्टर बहुत बड़ा और गतिशील है। यहां आधुनिक दुकानों और क्विक कॉमर्स के साथ हर शहर-गांव में लगभग 1.5 करोड़ किराना दुकानें भी स्थित हैं। इसमें कोई शक नहीं कि पिछले कुछ सालों में क्विक कॉमर्स के विस्तार ने महानगरों और टियर-1 शहरों में उपभोग की आदतों को पूरी तरह बदल दिया है। लोग जल्दी और आसान तरीके से सामान खरीदना पसंद करते हैं। यह पूरी प्रक्रिया तेज तो है ही, यह विकल्प भी ज्यादा प्रदान करती है। यही वजह है कि साल दर साल इसमें बढ़ोत्तरी हो रही है। रेडसीर के अनुसार, क्विक कॉमर्स बाजार 2023 में लगभग 77 प्रतिशत बढ़ा। इसके उपभोगकर्ता ज्यादातर युवा शहरी उपभोक्ता हैं। फिर भी यह टॉप 10 शहरों में ही केंद्रित है। भारत के अधिकतर हिस्सों, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में किराना दुकानें आज भी रिटेल सेक्टर की रीढ़ बनी हुई हैं।
डेलॉइट इंडिया कंज्यूमर सर्वे 2024 की मानें तो 59 प्रतिशत लोग अब भी खाने-पीने का सामान किराना और आधुनिक दुकानों से ही लेना पसंद करते हैं। इससे स्पष्ट है कि किराना दुकानें केवल सुविधाजनक ही नहीं बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा हैं। ये दुकानें अक्सर उधार भी देती हैं, गांवों कस्बों तक सामान पहुंचाती हैं और अधिकाधिक परिवारों को रोजगार देती हैं। यही वजह है कि भारतीय परिवारों के लिए, किराना दुकानें अब भी रिटेल अनुभव का आधार बनी हुई हैं। इन दुकानों की सुरक्षा और मजबूती केवल परंपरा को बचाना नहीं है, बल्कि उस समावेशी विकास को सुनिश्चित करना है जो इस क्षेत्र में सीधे और परोक्ष रूप से लाखों लोगों को रोजगार देती है।
पेय पदार्थ और किराना दुकानें
स्थानीय किराना दुकानों में सबसे ज्यादा बिकने वाला सामान है पेय पदार्थ। पेय पदार्थों में खासतौर पर सॉफ्ट ड्रिंक्स सबसे आगे हैं । यह ऐसे सामान हैं जिन्हें लोग बार-बार खरीदते हैं। इन्हें एंकर गुड्स भी कहा जाता है। ग्राहक अक्सर दुकान पर तो ठंडा पीने आता है लेकिन साथ में स्नैक्स, राशन या और चीजें भी खरीदकर ले जाता है। किफायती दाम और मजबूत सप्लाई चेन के कारण पेय पदार्थ छोटे दुकानदारों की कमाई बढ़ाने का जरिया हैं।
अलबत्ता, पेय पदार्थों के सेक्टर को अक्सर बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नजरिए से ही देखा जाता है, लेकिन छोटे खुदरा दुकानदारों के लिए इसके महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) और हंसा रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, खुदरा दुकानों के मूल्य में पेय पदार्थों का योगदान लगभग 11% और बिक्री की मात्रा में 30% है।

अक्सर यह माना जाता है कि पेय कंपनियां असामान्य रूप से अधिक मुनाफा कमाती हैं। असल बात तो यह है कि वे रिटेलरों को 19–24% का मार्जिन देती हैं, जो अन्य एफएमसीजी श्रेणियों में आम तौर पर 8–17% मार्जिन से कहीं अधिक है। यह सुनिश्चित करता है कि छोटे रिटेलर न केवल अपना व्यवसाय चलाएं बल्कि पेय पदार्थों को मुख्य उत्पाद के रूप में रखकर अपनी आय भी बढ़ाएं।
पेय उद्योग और किराना दुकानों का रिश्ता सिर्फ प्रोडक्ट बेचने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ढांचा (इंफ्रास्ट्रक्चर) और कामकाज में मदद तक फैला हुआ है। उदाहरण के लिए, ब्रांडेड कूलर छोटे दुकानदारों के लिए एक अहम साधन बन गए हैं। इनके जरिए वे न केवल पेय पदार्थ, बल्कि डेयरी और पैकेज्ड फूड जैसे जल्दी खराब हो सकने वाले सामान भी स्टॉक कर पाते हैं। इससे दुकान पर ग्राहकों की आवाजाही बढ़ती है और कुल बिक्री भी ज्यादा होती है। साथ ही, ग्राहकों का खरीददारी का अनुभव भी बेहतर हो जाता है।
डिलीवरी पार्टनर और सप्लाई चेन से जुड़े लोग भी इस निरंतर मांग से फायदा उठाते हैं। कई दुकानदारों के लिए ब्रांडेड कूलर होना आधुनिकता और भरोसे का प्रतीक माना जाता है, जिससे उनकी स्थानीय समाज में पहचान और इज्जत बढ़ती है।
इस तरह की मदद छोटे दुकानदारों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति दोनों को मजबूत करती है, और उन्हें अपने मोहल्ले की रोज़मर्रा की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बनाती है।
रिटेल बाजार की चुनौती
भारत के खुदरा बाजार में पेय पदार्थ सिर्फ तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता सामान ही नहीं, बल्कि पूरे रिटेल ढांचे का एक अहम हिस्सा हैं।फिर भी, जीएसटी में इन्हें आज भी ‘डिमेरिट गुड्स’ की श्रेणी में रखा गया है। उदाहरण के लिए, एरेटेड ड्रिंक्स (कार्बोनेटेड पेय) पर सबसे अधिक 28% जीएसटी और साथ ही 12% मुआवजा अधिभार (कंपनसेशन सेस) लगाया जाता है। इस तरह का वर्गीकरण पेय पदार्थों को तंबाकू जैसे उत्पादों की श्रेणी में ला देता है, जबकि यह उनके खुदरा व्यापार और आजीविका पर पड़ने वाले सकारात्मक असर को पूरी तरह नजरअंदाज करने वाला है।
जब हम ऐसे टैक्स लगाते हैं, तो इसका असर केवल बड़ी कंपनियों पर नहीं बल्कि पूरे रिटेल इकोसिस्टम पर पड़ता है। छोटे रिटेलर, डिस्ट्रीब्यूटर और उपभोक्ता—सभी प्रभावित होते हैं। अधिक टैक्स की वजह से दाम बढ़ जाते हैं, जिससे गांव और छोटे शहरों जैसे मूल्य-संवेदनशील बाजारों में मांग कम हो जाती है। इसका सीधा असर किराना दुकानों की बिक्री पर पड़ता है। साथ ही, कंपनियां भी इन इलाकों तक अपना वितरण नेटवर्क बढ़ाने से हिचकिचाती हैं, जिससे खुदरा, लॉजिस्टिक्स और डिलीवरी से जुड़ी रोजगार श्रृंखला प्रभावित होती है।
साल 2024 की शुरुआत में जब ए-रेटेड ड्रिंक्स पर जीएसटी और बढ़ाने की चर्चा हुई थी, तो रिटेलर और डिस्ट्रीब्यूटरों ने कड़ा विरोध किया था। ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (AICPDF), जो करीब 1.3 करोड़ किराना दुकानें और 4.5 लाख डिस्ट्रीब्यूटर का प्रतिनिधित्व करता है, ने चेतावनी दी थी कि टैक्स बढ़ने का असर पूरे देश की रिटेल रीढ़ पर पड़ेगा।
जब भारत अपने टैक्स स्लैब के ढांचे की समीक्षा कर रहा है, तब यह समझना जरूरी है कि पेय पदार्थ खुदरा आजीविका को संभालने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इन्हें केवल हानिकारक मान लेना, इनके रोजगार सृजन, परिवारों की आय बढ़ाने और पूरे खुदरा तंत्र में योगदान को नजरअंदाज करना है। अगर सरकार सोच-समझकर टैक्स वर्गीकरण, सप्लाई चेन को प्रोत्साहन और ढांचा (इंफ्रास्ट्रक्चर) उपलब्ध कराने पर ध्यान दे, तो यह छोटे किराना दुकानदारों के लिए बड़ा सहारा होगा। इससे न सिर्फ लाखों दुकानदार और उनके परिवार समृद्ध होंगे, बल्कि भारत का खुदरा तंत्र मजबूत और टिकाऊ भी बना रहेगा।
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