महज आठ साल की उम्र में देशभर में प्रस्तुति देने लगे

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

BIOGRAPHY OF MASTER OF THE TABLA NIZAMUDDIN KHAN: “स्वाद निजामुद्दीन खाँ का जन्म इंदौर के पास जओरा कस्बे में सन् १९२७ में हुआ। ४ साल की उम्र में ही उनका परिवार यहाँ से हैदराबाद जाकर बस गया। इसके फौरन बाद वे अपने पिता उस्ताद अजीम बख्श खाँ से तबला वादन सीखने लगे। अजीम बख्श हैदराबाद के निजाम के दरबारी संगीतकार बनने से पहले रामपुर, रीवा और जओरा के दरबारी संगीतकार (तबला वादक) रहे।

पिता संग नानू से भी सीखा

पिता के अलावा नाना जीनू खाँ (मुजफ्फर नगर) और फुफेरे भाई नागपुर के फराज हुसैन भी बालक निजामुद्दीन के गुरु रहे। इस प्रकार जल्दी ही निजामुद्दीन तबला वादन में पारंगत हो गए और ६ साल की उम्र में ही हैदराबाद महल में अपनी कला का प्रदर्शन करने लगे। ८-९ साल की उम्र में निजामुद्दीन पूरे भारत में सार्वजनिक रूप से अपनी कला का प्रदर्शन करने लगे थे।

भारत में नहीं मिली ख्याति

उस्ताद अजीम बख्श खाँ और उनके पुत्र उस्ताद निजामुद्दीन खाँ लालियाना घराने से संबंधित हैं। हालांकि लालियाना घराना भारत में व्यापक रूप से नहीं पहचाना जाता है, फिर भी जानकारों का कहना है कि ऐसा होना चाहिए। लालियाना घराने के वादक फर्रुखाबाद घराने के असल हिस्से नहीं कहे जा सकते क्योंकि उन्होंने अपनी विशिष्ट शैली खुद विकसित की है।

फर्रुखाबाद घराना १९वीं सदी के आखिर में लखनऊ घराने की छिटकी हुई एक शाखा रही है। यह कहना कठिन है कि किसने, किससे और कितने वक्त तक सीखा। लेकिन यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि लालियाना और फर्रुखाबाद घरानों ने २०वीं सदी के कुछ महान वादकों को पैदा किया था, जिनमें उस्ताद अमीर हुसैन खाँ और उस्ताद अहमद जान थिरकवा शामिल हैं। उस्ताद निजामुद्दीन खाँ भी इसी वर्ग में आते हैं।

रेडियो पर दी प्रस्तुति

निजामुद्दीन खाँ ने १९५३ में ऑल इंडिया रेडियो पर परफॉर्म किया। उसके बाद भारत के सभी संगीत महोत्सवों में उन्होंने अपनी कला के इंद्रधनुषी रंग बिखेरे और वाहवाही लूटी। वे यूरोप और उत्तरी अमेरिका में व्यापक दौरे करते रहे। लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में सन् १९६८ में उनके कंसर्ट की एक श्रृंखला चली ।

उस्ताद निजामुद्दीन खाँ को ‘लग्गी’ का विशेषज्ञ माना जाता था। संगत में उन्हें महारत हासिल थी। उन्होंने अनेक गायकों और वादकों के साथ संगत की। वादकों में उस्ताद विलायत खाँ, अब्दुल हलीम जाफर खाँ और वादकों में बड़े गुलाम अली खान, शोभा गुर्टू, पं. जसराज और कत्थक नृत्यांगना सुनयना हाजान्यूल आदि नाम शामिल हैं।

पारंपरिक वादन को देते थे महत्व

उस्ताद निजामुद्दीन एकल वादन में भी दक्ष थे। एकल वादन में वे पारंपरिक वादन को महत्त्व देते थे। उनका एकल वादन एक पेंटिंग की तरह होता था— बिलकुल साकार-साक्षात्! लय को वे आश्चर्यजनक मोड़-तोड़ देकर कयामत ढा देते थे। वे इतने आत्मस्फूर्त थे कि आगे वे क्या घुमाव देने वाले हैं, लोग इससे अनजान और चमत्कृत रहते थे। तबला वादन को वे इबादत समझते थे। यह महान् तबला वादक २२ जून, २००० को मुंबई में अल्लाह को प्यारा हो गया।

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