ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने 1913 में शिमला समझौते के तहत अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रुप में मैकमोहन रेखा का किया निर्धारण
लेखक: अरविंद जयतिलक (वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार)
Arunachal Pradesh news: चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज आने को तैयार नहीं है। जिस तरह उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अरुणाचल दौरे के दौरान सेला टनल की शुरुआत पर ऐतराज जताया है उससे साफ जाहिर है कि अरुणाचल को लेकर उसके मन में खोट है। हालांकि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उसके कुतर्क को बेतुका और हास्यादपद् बताते हुए उसे आईना दिखा दिया है और कहा है कि अरुणाचल भारत का एक स्वाभाविक हिस्सा है।
उधर, अमेरिका ने भी भारत का समर्थन करते हुए अरुणाचल (Arunachal Pradesh news) को भारत का अभिन्न हिस्सा कहा है। अमेरिका के इस बयान से चीन बौखला गया है और प्रलाप कर रहा है कि अमेरिका का इस मसले से कुछ भी लेना-देना नहीं है। विचार करें तो यह पहली बार नहीं है जब चीन अरुणाचल (Arunachal Pradesh news) के मसले पर वितंडा खड़ा करने की कोशिश की है। वह पहले भी इस तरह का कुत्सित प्रयास कर चुका है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उसे भारत ने करारा तमाचा जड़ा है।
बहरहाल उसकी कुटिल मंशा से साफ है कि वह भारत के साथ सीमा विवाद सुलझाना नहीं चाहता है। उसके इस असंवेदनशील रुख के कारण ही 1976 से चला आ रहा सीमा विवाद किसी तार्किक नतीजे पर नहीं पहुंच सका है और टकराव होता रहा है।
वह मैकमोहन रेखा को भी स्वीकारने को तैयार नहीं है। जबकि ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने 1913 में शिमला समझौते के तहत अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रुप में मैकमोहन रेखा का निर्धारण किया था। गौर करें तो इस सीमा रेखा का निर्धारण हिमालय के सर्वोच्च शिखर तक जाता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी की वास्तविक स्थिति भी कमोवेश यही है। इस क्षेत्र में हिमालय प्राकृतिक सीमा का निर्धारण नहीं करता क्योंकि यहां से अनेक नदियां निकलती और सीमाओं को काटती हैं। वर्तमान स्थिति यह है कि दोनों देश एलएसी पर निगरानी कर रहे हैं।
ऐतिहासिक संदर्भों में जाए तो तिब्बत, भारत और बर्मा की सीमाओं का ठीक से रेखांकन नहीं होने से अक्टुबर, 1913 में शिमला में अंग्रेजी सरकार की देखरेख में चारो देशों के अधिकारियों की बैठक हुई। इस बैठक में तिब्बती प्रतिनिधि ने स्वतंत्र देश के रुप में प्रतिनिधित्व किया और भारत की अंग्रेजी सरकार ने उसे उसी रुप में मान्यता दिया। आधुनिक देश के रुप में भारत के पूर्वोत्तर हिस्से की सीमाएं रेखांकित न होने के कारण दिसंबर 1913 में दूसरी बैठक शिमला में हुई और अंग्रेज प्रतिनिधि जनरल मैक मोहन ने तिब्बत, भारत और बर्मा की सीमा को रेखांकित किया।
आज के अरुणाचल (Arunachal Pradesh news) का तवांग क्षेत्र मैकमोहन द्वारा खींची गयी रेखा के दक्षिण में होता था। इसलिए तिब्बती सरकार बार-बार उसपर अपना दावा करती रही। तिब्बत का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकारने से उत्तर से पूर्वोत्तर तक कहीं भी भारत और चीन की सीमा नहीं मिलती थी। इस तरह उत्तरी-पूर्वी सीमा को एक प्राकृतिक सुरक्षा मिली हुई थी। लेकिन स्वतंत्र भारत की नेहरु सरकार की अदूरदर्शी नीति ने स्वतंत्र तिब्बत को बलिदान हो जाने दिया। आज की तारीख में सिक्किम-तिब्बत सीमा को छोड़कर लगभग पूरी भारत-चीन सीमा विवादित है। भारत और चीन के बीच विवाद की वजह अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh news) की संप्रभुता भी है। पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चिन का लगभग 3800 वर्ग किमी भू-भाग चीन के कब्जे में है। अक्साई चिन जम्मू-कश्मीर के उत्तर-पूर्व में विशाल निर्जन इलाका है।
इस क्षेत्र पर भारत का अपना दावा है। लेकिन नियंत्रण चीन का है। दूसरी ओर पूर्वी सेक्टर में चीन अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh news) के 90 हजार वर्ग किमी पर अपना दावा कर उसे अपना मानता है। अरुणाचल प्रदेश से चुने गए किसी भारतीय सांसद को वीजा नहीं देता है।
भारत की मनाही के बावजूद भी वह कश्मीर के लोगों को स्टेपल वीजा जारी करता रहता है। तिब्बत का स्वतंत्र अस्तित्व ही भारत की सीमाओं की रक्षा की सबसे बड़ी गारंटी है। अगर भारत तिब्बत की स्वतंत्रता और मानवाधिकार हनन के मसले को अन्तरराष्ट्रीय कुटनीति की तीव्र आंच पर रखता है तो सच मानिए चीन की पेशानी पर बल पड़ना तय है।
तिब्बत की स्वतंत्रता चीन की कमजोर नस है और भारत इसे मानवाधिकार हनन का नश्तर बनाकर चीन की हेंकड़ी का सफल आपरेशन कर सकता है। चीन की बढ़ती आक्रामकता और दुस्साहस को देखते हुए अब उचित होगा कि भारत भी चीन के साथ पूर्व की किसी स्वीकारोक्ति से बंधा न रहे। इसलिए भी कि आज दुनिया भारत के साथ है।
(नोट:- यह लेखक के निजी विचार है)