बच्चे नानी मां को घेरे बैठे थे और गुजारिश कर रहे थे कि कोई कहानी सुनाओ। नानी मां बोली, ‘एक थी मैना एक था कौवा।’ बच्चे खुशी से चिल्लाए, ‘तो नानी मां फिर क्या हुआ?” नानी मां तुनककर बोलीं, “भई सुनो, बोल तो रही हूं। बीच में टोका-टाकी से बात दिमाग़ से उतर जाती है। हां तो सुनो।”
“कौवे और मैना में बहुत दोस्ती थी। मैना का घर मोम का था और कौवे का नोन का। एक दिन मैना ने खिचड़ी पकाई। उसने सोचा कि कौवे का घर नोन का है, चलो नोन उससे ले आऊँ अब यह कौवे के घर पहुंची और उससे अपनी खिचड़ी के लिए जरा-सा नमक मांगा तो कौवा बोला, ‘चल चल भाग यहां से! क्या मैं तेरे लिए अपना घर तोड़ दूं? मैना को बहुत बुरा लगा। वह अपने घर लौट आई और फीकी खिचड़ी खाकर सो गई।
“बरसात का मौसम आया और आसमान पर पहले तो बादल घिर आए और फिर बारिश शुरू हो गई कौवे के घर की छत टपकने लगी। वह एक कोठरी से दूसरी कोठरी में गया मगर हर जगह पानी टपक रहा था। धीरे-धीरे उसका घर घुलने गया। अब तो कौवा घबराया और सोचने लगा किधर जाऊं? उसे अपनी दोस्त मैना का ख़याल आया कि उसका घर तो मोम का है। चलो वहीं जाकर ठहरें उड़ा-उड़ा मैना के घर जा पहुंचा। मैना का घर बंद था।
कौवे ने दरवाज़ा खटखटाया। मैना ने आवाज दी, ‘कौन है?” कौवा बोला, “मैं हूं, तुम्हारा दोस्त कौवा दरवाजा खोल दो मैना ने कहा, ‘दूर मुए! चल भाग यहां से।’
कौवे ने गिड़गिड़ाकर कहा, ‘मैना, मैना में बहुत भीग गया हूँ। मुझे सर्दी लग रही है, जल्दी दरवाजा खोल।’ मैना को तरस आ गया और उसने दरवाज़ा खोल दिया। कौवा ठंड के मारे कांप रहा था। मैना ने आग जलाई तो कौवे की जान में जान आई। मैना ने कहा, ‘मेरा तो छोटा-सा घर है, जा अंदर कोठार में सो जा।’ कौवा कोठार में चला गया और मैना के घर का दरवाजा बंद कर लिया। थोड़ी देर में कोठार में से मैना को कुटर-कुटर की आवाज सुनाई दी। मैना ने पूछा, अरे कौये, तू क्या खा रहा है? कौवे ने कहा, ‘कुछ नहीं अपने ब्याह की लॉग-सुपारी साथ ले आया था, वह खा रहा हूँ।’ मैना चुप हो गई मगर कुटर-कुटर की आवाज़ फिर भी आती रही। जब काफ़ी देर तक आवाज़ आती रही तो मैना ने फिर पूछा, “कौवे, तू क्या खाए चला जा रहा है?” कौवे ने फिर वही जवाब दिया, ‘कुछ नहीं अपने व्याह की वही लींग-सुपारी खा रहा हूँ। मैना बोली, ‘अपने व्याह की लौंग-सुपारी थोड़ी-सी मुझे भी तो दे दे। कौवा बोला, ‘वह तो थोड़ी-सी थी, अब तो ख़त्म भी हो गई।
मैना थकी हुई थी, गहरी नींद में सो गई। जब सवेरे मैना की आँख खुली तो धूप खिली हुई थी। मैना को बड़ा अफसोस हुआ कि इतना दिन निकल आया, बेचारा कौवा भूखा-प्यासा कोठार में बंद पड़ा है। उसने उठकर जल्दी से दरवाजा खोला, जैसे ही दरवाजा खुला कीवा फुर्र से उड़ गया। मैना ने देखा तो कोठार में जितना खाने-पीने का सामान रखा था, कौवा सारा खा गया था। बेचारी मैना बेईमान कौवे से दोस्ती करके बड़ी पछताई।