इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनाया बताते हैं। इसके बारे में आज तक एक बहस चली आती है और यह बताया जाता है कि असल में इस मीनार को पृथ्वीराज ने ही बनवाया था। उनकी लड़की यमुना का दर्शन करके भोजन किया करती थी। यमुना बहुत दूर थी। अपनी लड़की की सहूलियत के लिए उसने यह लाट बनवा दी थी। यह हिंदुओं की बनाई हुई है, इसके प्रमाण में कई दलील दी जाती हैं। बताया जाता है कि कुतुब मीनार पर चढ़ने के लिए जो दरवाजा है, वह उत्तरमुखी है और हिंदू उत्तर में ही दरवाजा रखते हैं। मुसलमान पूर्वमुखी रखते हैं। जो दूसरी लाट दूसरी तरफ थोड़ी-सी बनी पड़ी है, उसका दरवाजा पूर्वमुखी है। फिर मुसलमान अपनी इमारतों को कुछ कुरसी देकर बनाते हैं, मगर हिंदू बिना कुरसी दिए जैसा कि इसमें है।

इसके अतिरिक्त लाट के पहले खंड में जो खुतबे अरबी जुबान में लगे हुए हैं, उनसे साफ मालूम होता है कि ये बाद में लगाए गए होंगे। फिर जिस प्रकार पृथ्वीराज के चौंसठ खंभे के मंदिर में खंभों पर घंटियां खुदी हुई हैं, उसी तर्ज की घंटियां इसके पहले खंड में खुदी हैं। एक बड़ी दलील यह भी हैं कि पृथ्वीराज का मंदिर अपनी जगह पर कायम है। कम-से-कम उसका चबूतरा वही है। उसको सब कोई मानते हैं। तब इतनी बड़ी लाट को बनाने के लिए उसकी बुनियाद का फैलाव जरूर मंदिर के चबूतरे के नीचे तक गया होगा, इसलिए भी यह मंदिर के पहले बनी होगी। कम-से-कम पहला खंड तो उसी का बनवाया हुआ प्रतीत होता है। उस पर जो मूर्तियां थीं, उनको निकालकर कुतबों के पत्थर लगा दिए होंगे, यह संभव है कि उस वक्त इसके इतने खंड न हों, मगर एक खंड जरूर रहा होगा, जिस पर से खड़े होकर पिथौरा की लड़की यमुना का दर्शन करती थी।

बड़ी दादावाड़ी : गुड़गांव रोड पर लड्डासराय में यह वाड़ी स्थित है। इस स्थान पर जैनियों के श्री जिंनदत्त सूरि के पट्ट शिष्य श्री जिनचंद्र जी का दाहसंस्कार 1166 ई. में हुआ बताते हैं। यह बाड़ी उन्हीं की स्मृति में कायम की गई। यहां यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था भी है।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here