आज भी सुचारु रूप से चल रहा है स्कूल

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Delhi’s oldest girls school: चावड़ी बाज़ार के बाईं तरफ़ जो सड़क इस चौराहे से शुरू होकर अन्दर ही अन्दर चाँदनी चौक के बाज़ार बल्लीमारान तक जाती है, उसे लाल कुआँ कहते हैं। इस सड़क का यह नाम क्यों पड़ा, ज़रूर कोई वजह रही होगी। पर खास बात है इसकी रिहाइशी संरचना की। इस लम्बी सड़क पर हिन्दू-मुस्लिम आबादी दोनों के मोहल्ले हैं। जबकि चावड़ी बाज़ार अन्ततः जब जामा मस्जिद पर खत्म होता है, तो उसके दाहिने तरफ़ से कटनेवाले तमाम रास्ते घनी मुस्लिम बस्तियों की तरफ़ ले जाते हैं और बाईं तरफ़ की सारी गलियाँ सघन हिन्दू आबादियों की तरफ़ ।

इस इलाक़े का सबसे बड़ा अजूबा है शहर का सबसे पुराना लड़कियों का स्कूल, जो आज भी उसी तरह चल रहा है-जामा मस्जिद के साए में। चावड़ी बाज़ार से निकलकर बाएँ हाथ चलते हुए सड़क कोने में स्थित इन्द्रप्रस्थ हायर सेकंडरी स्कूल पर खत्म होकर जामा मस्जिद की तरफ़ घूम जाती है।

किसी ज़माने में यह दिल्ली के पढ़े-लिखे सम्भ्रान्त परिवारों की लड़कियों की लगभग निर्विकल्प शिक्षा-संस्था थी। इसी स्कूल में प्रसिद्ध सरोद-वादक शरनरानी बाकलीवाल, समेत प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी ‘विदुषी कपिला वात्स्यायन’ ने भी पढ़ाई की। और भी न जाने कितनी नामी हस्तियों ने इसी संस्था से स्कूली शिक्षा पूरी की।

स्कूल आज भी उसी विराट हवेलीनुमा इमारत में चलता है जिसका एक दरवाज़ा जामा मस्जिद की तरफ़ और पिछवाड़ा छीपीवाड़े में खुलता है। स्कूल में खेल का मैदान तभी नहीं था। उन दिनों लड़कियों को लाइन बनाकर, ठीक जामा मस्जिद के सामने से दरियागंज के ज़रा पहले ‘पर्दाबाग’ नाम के जनाने उद्यान में ले जाया जाता था।

खास बात यह थी कि लड़कियों ने न कभी स्कूल के भीतर न इस पंक्तिबद्ध यात्रा के दौरान, उस मुस्लिम बहुल इलाक़े में किसी तरह की दहशत या असुरक्षा महसूस की। यह बात इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि बँटवारे से पहले इससे दिल्ली की जनता की गैर-साम्प्रदायिक और सौहार्दपूर्ण मानसिक बनावट का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है।

जामा मस्जिद की सीढ़ियों से लगी मांसाहारी खाने की तमाम दुकानें अपने विशेष खाद्य पदार्थों के लिए मशहूर थीं। तरह-तरह के कबाब, बिरयानी, रुमाली रोटी, सेवइयाँ, जिनका लुत्फ़ गाहे-बगाहे मांसाहार के शौकीन दूसरे धर्मों के लोग भी उठाते थे। निज़ामुद्दीन के मशहूर करीम के ढाबेनुमा रेस्तराँ की बुनियाद यहीं पड़ी थी। मूल दुकान आज भी उर्दू बाज़ार के कोने पर मौजूद है। दरअसल दिल्ली के बाशिन्दों की विविधता के अनुरूप दिल्ली का खान-पान एक ऐसा व्यापक विषय है जो अलग चर्चा की अपेक्षा रखता है।

स्कूल का इतिहास

पुरानी दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ हायर सेकंडरी स्कूल का इतिहास 1904 में शुरू हुआ था। इसे इन्द्रप्रस्थ गर्ल्स स्कूल के नाम से भी जाना जाता है। यह स्कूल चांदनी चौक के ऐतिहासिक इलाके में स्थित है और दिल्ली के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित लड़कियों के स्कूलों में से एक है।

स्थापना और प्रारंभिक वर्षों

इन्द्रप्रस्थ हायर सेकंडरी स्कूल की स्थापना का उद्देश्य लड़कियों को शिक्षा प्रदान करना था, जो उस समय एक प्रगतिशील कदम था। स्कूल की स्थापना के समय, भारतीय समाज में लड़कियों की शिक्षा पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था। इस स्कूल ने इस धारणा को बदलने का प्रयास किया और लड़कियों के लिए एक शैक्षिक मंच प्रदान किया।

शैक्षिक विकास

प्रारंभ में यह स्कूल केवल प्राथमिक शिक्षा प्रदान करता था, लेकिन धीरे-धीरे इसे माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा के स्तर तक विस्तारित किया गया। स्कूल का पाठ्यक्रम और शैक्षिक मानक उच्च गुणवत्ता के थे, जिससे यह स्कूल अपने समय का अग्रणी शैक्षिक संस्थान बना।

समाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

इन्द्रप्रस्थ हायर सेकंडरी स्कूल ने न केवल शैक्षिक दृष्टिकोण से बल्कि समाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस स्कूल ने कई प्रमुख महिलाएं उत्पन्न की हैं जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। स्कूल की पूर्व छात्राओं ने शिक्षा, चिकित्सा, प्रशासन, और अन्य क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ी है।

वर्तमान स्थिति

आज, इन्द्रप्रस्थ हायर सेकंडरी स्कूल अपनी समृद्ध विरासत को बनाए रखते हुए आधुनिक शिक्षा प्रणाली के साथ आगे बढ़ रहा है। स्कूल ने समय के साथ अपने पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों में बदलाव किए हैं ताकि यह आज के दौर के छात्रों की आवश्यकताओं को पूरा कर सके।

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