वास्तव में प्रक्रिया कैसे काम करती है, इसके बारे में कोई भी विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता
NTA (नेशनल टेस्टिंग एजेंसी) द्वारा आयोजित CUET (कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट), केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रमों में प्रवेश पाने के इच्छुक उम्मीदवारों के परीक्षण और मूल्यांकन के लिए एक पारदर्शी तंत्र का पालन करता है। हालाँकि, परिणाम घोषित होने के बाद की प्रक्रिया पूरी तरह से गैर-पारदर्शी है। 2022 से पहले, दिल्ली विश्वविद्यालय ने कट-ऑफ-आधारित प्रवेश प्रक्रिया का पालन किया करता था जो पूरी तरह से पारदर्शी थी। सार्वजनिक रूप से घोषित कट-ऑफ प्रतिशत का ज्ञान रखने वाला कोई भी व्यक्ति आसानी से किसी उम्मीदवार को उसके प्रवेश की संभावनाओं के बारे में सलाह दे सकता था।
हालाँकि, नई प्रणाली में, किसी भी विश्वास के साथ ऐसा मार्गदर्शन प्रदान करना अब संभव ही नहीं है। एकमात्र सुझाव जो दिया जा सकता है वो ये है कि कंप्यूटर द्वारा “अनुकूल” परिणाम आने की प्रतीक्षा करना। वास्तव में प्रक्रिया कैसे काम करती है, इसके बारे में कोई भी विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता है। विश्वविद्यालय का कोई भी जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ यही कह पाता है कि सब कुछ एक कंप्यूटर एल्गोरिदम द्वारा संचालित होता है, जो फॉर्म जमा करते समय दर्ज की गई उम्मीदवार की प्रारंभिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखता है।

इस समझ पर कोई चर्चा या अपील के लिए सम्भावना नहीं बचती है, क्योंकि एल्गोरिदम की कार्यप्रणाली का सार्वजनिक रूप से आज तक कोई भी खुलासा नहीं किया गया है। परिणामस्वरूप, सफल उम्मीदवार इसका श्रेय अपने “भाग्य” को देते हैं, जबकि अन्य भ्रमित और निराश हो जाते हैं, तथा यह नहीं जान पाते कि आखिर गलती कहां हुई।
इसकी तुलना पहले के परिदृश्य से करें जब कट-ऑफ-आधारित प्रवेश प्रक्रिया लागू थी, तो उस समय, पिछले वर्षों के कट-ऑफ प्रतिशत और चालू वर्ष के लिए घोषित अंतिम कट-ऑफ के आधार पर उचित सलाह दी जा सकती थी। इसके अतिरिक्त, CUET अनिवार्य रूप से कक्षा XII-स्तर की दुबारा ली जाने वाली परीक्षा बन गयी है। इसके कारण प्रवेश प्रक्रिया में अनावश्यक जटिलता जुड़ गयी है।
सीबीएसई लगभग 800 विषयों के लिए परीक्षा आयोजित करता है, जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय लगभग 550 स्नातक कार्यक्रम प्रदान करता है। पिछले कुछ वर्षों में, स्कूली विषयों और विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों के बीच एक अच्छी तरह से स्वीकृत मैपिंग स्वाभाविक रूप से विकसित हुई थी। दुर्भाग्य से, CUET ने एक ही झटके में इस ढांचे को खत्म कर दिया है।
CUET ने तब से हर साल अपने प्रारूप को संशोधित करना जारी रखा है क्यूंकि इस तरह के अचानक बदलाव से तरह तरह की नई चुनौतियाँ आती रही। एक अच्छी तरह से काम करने वाली और व्यापक रूप से स्वीकृत कट-ऑफ-आधारित प्रणाली, जिसे विकसित होने में दशकों लग गए थे, उसको पूरी तरह से त्यागने का कोई ठोस कारण नहीं था। यह सच है कि पहले की कट-ऑफ-आधारित प्रणाली की पूर्ण पारदर्शिता का कभी-कभी कुछ निहित स्वार्थों द्वारा गलत लाभ लिया जाता था।
ऐसा करने के लिए लोग अपने छात्रों को उदारता से उच्च अंक देकर उनकी मदद करते थे। 2022 में, इस तरह के प्रयासों ने सभी सीमाओं को पार कर लिया, जब एक विशेष बोर्ड ने अनुचित रूप से बड़ी संख्या में छात्रों को 100 प्रतिशत अंक दिए। इस एक कारण ने डीयू प्रवेश प्रक्रिया को उलट दिया, क्योंकि उस बोर्ड के छात्रों ने उस वर्ष प्रवेश में गलत ढंग से वर्चस्व हासिल किया। पर इस गलती को ठीक करने के लिए विश्वविद्यालय के अधिकारियों के द्वारा लिए गए कदम बहुत सूझ बुझ के साथ नहीं लिए।
उन्हें सिर्फ विभिन्न बोर्डों द्वारा दिए गए अंकों को किसी युक्ति से एक धरातल पर लेन का काम करना था जो AI के उपयोग से, या वैकल्पिक रूप से ‘बुद्धिमत्ता’ का आकलन करने वाला एक पेपर का सामान्य परीक्षण लेकर किया जा सकता थ। उसके बाद उसे बोर्ड के अंकों को संशोधित करने के लिए बेंचमार्क के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था और ऐसे संशोधित मार्क्स का इस्तेमाल कट-ऑफ-आधारित प्रणाली में पहले की तरह जारी रह सकती थी। ऐसा सीधा और आसान समाधान साडी समस्याओं का निवारण कर सकता था।
दूसरी ओर, वर्तमान प्रवेश प्रक्रिया, अनावश्यक तौर पर कुछ कॉलेजों में अधिक प्रवेश की अनुमति दे रही है, जबकि कई अन्य कॉलेज सीटें भरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। साल-दर-साल CUET परिणामों की घोषणा में बार-बार देरी ने केवल इसी भ्रम और पारदर्शिता की कमी को बढ़ाया है। मैंने इस मुद्दे पर डीयू अधिकारियों से पिछले साल के प्रवेश का डेटा (24 जून, 2025 की आरटीआई के माध्यम से) प्रदान करने के लिए कहा है ताकि हम सभी इस बात के लिए आश्वस्त हो सकें कि मेरी आशंकाएं अमान्य हैं।
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