indian gen z
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नेपाल में सत्ता परिवर्तन का सबब बने Gen z को लेकर सोशल मीडिया में जबरदस्त चर्चा

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

यह रिपोर्ट भारत में Gen Z (जेनरेशन Z) के जटिल और बहुआयामी चरित्र का एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इस पीढ़ी को अक्सर उनके डिजिटल कौशल से परिभाषित किया जाता है, लेकिन उनका व्यवहार, मूल्य और पसंद गहरे विरोधाभासों से प्रेरित हैं जो उन्हें पिछली पीढ़ियों से अलग करते हैं। वे अपने डिजिटल कौशल का उपयोग सूचना, करियर और व्यक्तिगत विकास के लिए करते हैं, लेकिन यह उनके लिए मानसिक तनाव और चिंता का भी कारण बनता है। वे वित्तीय रूप से व्यावहारिक हैं, फिर भी अपने अनुभव-संचालित, सामाजिक-सांस्कृतिक जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए ऋण लेने से नहीं हिचकिचाते। कार्यस्थल में, वे पुरानी “हसल कल्चर” (अत्यधिक परिश्रम) को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट सीमाएं निर्धारित करते हैं और सार्थक काम और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं।

यह विश्लेषण दर्शाता है कि जेनरेशन Z को समझने के लिए केवल उनकी प्राथमिकताओं की सूची बनाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन अंतर्निहित motivations को समझना आवश्यक है जो उनके हर निर्णय को प्रभावित करती हैं। वे केवल उपभोग नहीं कर रहे हैं; वे दुनिया को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। व्यवसायों, नीति निर्माताओं और नेताओं के लिए, यह पीढ़ी केवल एक जनसांख्यिकी से कहीं अधिक है; यह एक रणनीतिक अनिवार्यता है, जिसके लिए प्रामाणिकता, पारदर्शिता और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता पर आधारित एक नए जुड़ाव दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

1. “ट्रू जेन”: विरोधाभासों की एक पीढ़ी का संदर्भ

1.1 डिजिटल नेटिव को परिभाषित करना: एक वैश्विक रूपरेखा

जेनरेशन Z, जिसे अक्सर “ज़ूमर्स” या “पोस्ट-मिलेनियल” कहा जाता है, में वे लोग शामिल हैं जिनका जन्म 1996 और 2010 के बीच हुआ था। यह पहली ऐसी पीढ़ी है जो इंटरनेट से जुड़ी दुनिया में बड़ी हुई है। वैश्विक स्तर पर, इस पीढ़ी को अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में “बेहतर व्यवहार वाला और कम सुखवादी” बताया गया है। उनके बीच किशोरावस्था में गर्भधारण की दर कम है, वे कम शराब का सेवन करते हैं, और स्कूल और नौकरी की संभावनाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।

हालांकि, यह पीढ़ी कई विरोधाभासों से भी घिरी हुई है। उन्हें “अधिक शिक्षित, सुव्यवस्थित, तनावग्रस्त और उदास” पीढ़ी के रूप में वर्णित किया गया है। 2016 के एक अध्ययन में, 59% युवा अपने व्यक्तिगत जीवन से खुश थे, लेकिन दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों में यह संख्या 28% जितनी कम थी। उनकी खुशी का मुख्य स्रोत शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य (94%), परिवार के साथ अच्छे संबंध (92%), और दोस्तों के साथ संबंध (91%) है। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि बाहरी सफलता के बावजूद, वे आंतरिक कल्याण और व्यक्तिगत संबंधों को महत्व देते हैं।

1.2 भारत का युवा जनसांख्यिकीय लाभांश: एक अनूठा संदर्भ

भारत में, जेनरेशन Z की स्थिति विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। 15-29 वर्ष की आयु के युवा 2021 में देश की कुल जनसंख्या का 27.2% थे। यह अनुपात 2036 तक घटकर 22.7% होने की उम्मीद है, लेकिन संख्यात्मक रूप से यह आबादी तब भी 345 मिलियन के विशाल आंकड़े पर बनी रहेगी। इस पीढ़ी को पिछली पीढ़ियों की तुलना में अधिक “उन्नत और विशेषाधिकार प्राप्त” माना जाता है, क्योंकि उनके पास असीमित जानकारी और दुनिया भर के व्यक्तियों और संगठनों तक पहुंच है।

हालांकि, वे विकसित देशों के जेनरेशन Z की तुलना में “कम प्रगतिशील या स्वतंत्र” माने जाते हैं। यह कोई नकारात्मक मूल्यांकन नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक वास्तविकता का प्रतिबिंब है। भारतीय जेनरेशन Z पश्चिमी प्रवृत्तियों का केवल रैखिक अनुकरण नहीं करती है। वे वैश्विक प्रभावों को चुनिंदा रूप से अपनाते हैं और उन्हें अपनी विशिष्ट भारतीय पहचान के अनुरूप ढालते हैं। उदाहरण के लिए, वे अपनी विरासत पर गर्व करते हैं और भारतीय शिल्प कौशल को वैश्विक स्ट्रीटवियर सौंदर्यशास्त्र के साथ जोड़ने वाले कपड़ों के ब्रांड का समर्थन करते हैं। वे डिजिटल रूप से जुड़े और विश्व स्तर पर जागरूक हैं, फिर भी परिवार के मूल्यों, स्थानीय संस्कृति और क्षेत्रीय भाषा में गहराई से निहित हैं। यह सांस्कृतिक समरूपता का एक अनूठा मामला है।

1.3 व्यावहारिक आदर्शवाद का विरोधाभास

जेनरेशन Z का एक प्रमुख विशेषता उनका “व्यावहारिक आदर्शवाद” है। वे “प्रभावी और लक्ष्य-केंद्रित” हैं, उन समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो “अभी काम करते हैं”। वे भविष्य के भव्य, अमूर्त सपनों में फंसे नहीं हैं। यह व्यावहारिकता विरासत में मिली समस्याओं, जैसे कि जलवायु परिवर्तन और आर्थिक अस्थिरता, के जवाब में विकसित हुई है। वे इन मुद्दों से “परेशान” हैं, लेकिन वे निष्क्रिय निराशावाद के बजाय एक व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ उनका सामना करते हैं।

इसी तरह, वे “मूल्यों और पहचान-संचालित” हैं और सामाजिक कारणों के लिए संगठित होते हैं। यह विरोध प्रदर्शनों और सोशल मीडिया अभियानों में दिखाई देता है। उनका आदर्शवाद एक काल्पनिक यूटोपिया के बारे में नहीं है, बल्कि जवाबदेही और उन समस्याओं को ठीक करने के लिए एक ठोस मांग है जो उन्हें विरासत में मिली हैं। यह व्यावहारिक और आदर्शवादी प्रवृत्ति उनके व्यवहार को हर क्षेत्र में प्रभावित करती है, जिसमें वे काम करते हैं, जिस तरह से वे खरीदारी करते हैं, और जिन ब्रांडों का वे समर्थन करते हैं।

2. डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र: मीडिया, संचार और पहचान

2.1 दृश्य-प्रथम संचार: एक नया संज्ञानात्मक परिदृश्य

भारत में, जेनरेशन Z के पेशेवर दृश्य संचार को उनके करियर के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, 90% से अधिक भारतीय जेनरेशन Z पेशेवर मानते हैं कि दृश्य संचार कौशल उनके करियर को “भविष्य-प्रूफ” करने के लिए आवश्यक हैं। 94% का मानना है कि वे “दृष्टिगत रूप से अपना सर्वश्रेष्ठ काम करते हैं”। इस प्राथमिकता का समर्थन तंत्रिका विज्ञान द्वारा भी किया जाता है, जो बताता है कि हमारा मस्तिष्क “लंबे पाठ की तुलना में दृश्य जानकारी को अधिक प्रभावी ढंग से संसाधित करने और बनाए रखने के लिए हार्डवायर्ड” है।

यह केवल एक पसंद नहीं है, बल्कि एक मौलिक संज्ञानात्मक बदलाव है। तेज-तर्रार, संवेदी-भारित डिजिटल सामग्री के लगातार संपर्क में रहने से जेनरेशन Z का मस्तिष्क संरचित रूप से बदल गया है। वे “कार्य स्विच” करने में अत्यधिक कुशल हैं, लेकिन जटिल जानकारी पर ध्यान केंद्रित करने की उनकी क्षमता कम हो गई है, जिसे कुछ विशेषज्ञों ने “अधिग्रहित ध्यान घाटा विकार” (Acquired Attention Deficit Disorder) कहा है। यह उनके पारंपरिक, पाठ-भारी संचार के प्रति कम सहिष्णुता और उन संगठनों के प्रति उनकी निराशा की व्याख्या करता है जो “डिजाइन-नेतृत्व” वाले नहीं हैं।

यह पीढ़ीगत विभाजन कार्यस्थल में अक्षमता का कारण बनता है, क्योंकि पुराने कर्मचारी पारंपरिक ईमेल और लंबी रिपोर्ट पसंद करते हैं, जबकि जेनरेशन Z इन्फोग्राफिक्स, डैशबोर्ड और दृश्य कहानी कहने पर फलते-फूलते हैं।

संचार शैलीजेन Z की प्राथमिकतापुरानी पीढ़ी की प्राथमिकताअंतर्निहित कारण
सूचना का उपभोगशॉर्ट-फॉर्म वीडियो (रील्स), इन्फोग्राफिक्स, विजुअल डैशबोर्डलंबा पाठ, ईमेल, विस्तृत रिपोर्टमस्तिष्क की दृश्य जानकारी को अधिक तेज़ी से और प्रभावी ढंग से संसाधित करने की क्षमता।
आत्म-अभिव्यक्तिइमोजी, मीम, वीडियोपाठ-आधारित संदेश, ईमेल, फोन कॉलदृश्य माध्यमों के माध्यम से पहचान और व्यक्तित्व को व्यक्त करने का गहरा महत्व।
कार्यप्रवाहएआई-संचालित डिज़ाइन उपकरण, कैनवा जैसे प्लेटफ़ॉर्मपारंपरिक वर्ड दस्तावेज़, स्प्रेडशीटदक्षता और रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए एआई का उपयोग करने की इच्छा।

2.2 प्राथमिक उपयोगिता के रूप में सोशल मीडिया: क्यूरेशन, खोज और प्रामाणिकता

भारत में, शहरी जेनरेशन Z के 91% लोग समाचारों के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर करते हैं, जबकि 88% वीडियो प्लेटफार्मों का उपयोग करते हैं। उनका न्यूज़ फ़ीड “संस्थागत प्रकाशकों, स्वतंत्र रचनाकारों और मीम पेजों का मिश्रण” है। यह जानकारी का एक क्यूरेटेड दृष्टिकोण है जो उनकी सच्चाई की खोज को दर्शाता है। वे पारंपरिक गेटकीपरों को दरकिनार करते हैं और एक विकेन्द्रीकृत नेटवर्क पर भरोसा करते हैं, यह उनके संस्थागत अविश्वास को दर्शाता है।

सोशल मीडिया उत्पाद की खोज के लिए भी एक प्राथमिक चैनल है। टिकटॉक (57%) और इंस्टाग्राम (49%) नए ब्रांडों और उत्पादों की खोज में सबसे आगे हैं। वे “लो-फाई,” प्रामाणिक, उपयोगकर्ता-जनित सामग्री और वास्तविक ग्राहक समीक्षाओं पर बड़े-बजट वाले टीवी विज्ञापनों या सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट की तुलना में कहीं अधिक भरोसा करते हैं। सोशल मीडिया एक “डिजिटल लुकिंग-ग्लास” भी बनाता है, जहां आत्म-छवि पसंद और टिप्पणियों के निरंतर प्रतिक्रिया चक्र के माध्यम से आकार लेती है।

प्लेटफ़ॉर्मप्राथमिक उपयोगिता
यूट्यूबलंबी-फॉर्म सामग्री, शिक्षा, समाचार, उत्पाद खोज, ब्रांड सहयोग
इंस्टाग्रामसमाचार, उत्पाद खोज, खरीदारी, दोस्तों के साथ संबंध
टिकटॉकसमाचार, उत्पाद खोज, खरीदारी, मनोरंजन
फेसबुकसामुदायिक लामबंदी, खरीदारी, दोस्तों के साथ संबंध

2.3 गेमिंग का लोकतंत्रीकरण: एक नया सामाजिक ताना-बाना

भारत में, मोबाइल गेमिंग एक “महान लोकतंत्रीकरण” के रूप में उभरा है। पीसी या कंसोल गेमिंग के विपरीत, इसके लिए बड़े हार्डवेयर निवेश की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे यह अधिक सुलभ हो जाता है। 2023 तक, भारत में 400 मिलियन मोबाइल गेमर्स थे, जिनमें जेनरेशन Z मुख्य जनसांख्यिकी थी। यह घटना विशेष रूप से टियर II और III शहरों में स्पष्ट है, जहां 60% से अधिक नियमित गेमर्स अपनी स्थानीय भाषा में खेलते हैं।

गेमिंग केवल एक मनोरंजन नहीं है; यह एक नया सामाजिक ताना-बाना है। “बैटल रॉयल” शीर्षक जैसे कि बीजीएमआई (BGMI) और फ्री फायर (Free Fire) “सामाजिक मंच” बन गए हैं, जहां युवा समुदाय बनाते हैं, अपनी पहचान व्यक्त करते हैं, और तनाव से निपटते हैं। महिला गेमर्स के बीच भी वृद्धि हुई है, जो गेमिंग को “अबाधित डिजिटल अधिकार का अपना पहला डोमेन” मानती हैं। ब्रांडों के लिए, गेमिंग एक “सामरिक सांस्कृतिक टचपॉइंट” बन गया है, जो एक ऐसे दर्शक वर्ग तक पहुंचने का एक तरीका प्रदान करता है जो पारंपरिक विज्ञापन के प्रति अविश्वसनीय रूप से संवेदनशील है।

2.4 डिजिटल जीवन की दोधारी तलवार

जेनरेशन Z के लिए, डिजिटल दुनिया कई लाभ प्रदान करती है, लेकिन यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चुनौतियां पेश करती है। मनोविज्ञान विशेषज्ञों ने इंटरनेट की लत, ध्यान की अवधि में कमी, और संज्ञानात्मक सहनशक्ति में कमी की चेतावनी दी है। सोशल मीडिया का लगातार उपयोग अलगाव और आत्म-संदेह को बढ़ा सकता है, और एक तिहाई युवा भारतीयों में चिंता के लक्षण दिखाई देते हैं।

हालांकि, यह पीढ़ी केवल पीड़ित नहीं है, बल्कि “परिवर्तन-निर्माता” भी है। वे सोशल मीडिया का उपयोग कलंक को चुनौती देने, सहकर्मी-समर्थन समूह बनाने और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुली बातचीत करने के लिए करते हैं। एक सर्वेक्षण से पता चला है कि युवा लोगों में चिकित्सा और उपचार की स्वीकार्यता 2018 में 54% से बढ़कर 2024 में 94% हो गई है। सोशल मीडिया उनके लिए “एक विरोधाभास” है—यह चिंता को बढ़ा सकता है, लेकिन यह जागरूकता को भी तेज करता है और उन्हें पेशेवरों से जोड़ता है।

3. उपभोक्ता और आर्थिक मनोविज्ञान: मूल्य, प्रामाणिकता और अनुभव

3.1 उपभोक्तावाद के प्रति एक व्यावहारिक दृष्टिकोण

जेनरेशन Z खरीदारी के लिए एक जानबूझकर और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाती है। वे मूल्य और गुणवत्ता को प्राथमिकता देते हैं और ब्रांडों के प्रति उनकी वफादारी सशर्त है। वे व्यापक शोध करते हैं, जिसमें टिप्पणियां, ब्रांड वेबसाइटें, और उत्पाद समीक्षाएं शामिल हैं। यह व्यवहार उनके “प्रामाणिकता की खोज” से जुड़ा है। वे “लो-फाई,” प्रामाणिक, उपयोगकर्ता-जनित सामग्री पर भरोसा करते हैं और पारंपरिक विज्ञापनों या सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट से प्रभावित नहीं होते हैं। वे पैसे बचाने और स्थिरता के प्रति अपने मूल्यों के साथ संरेखित करने के लिए प्री-ओन्ड या सेकेंड-हैंड आइटम खरीदने के लिए भी तैयार हैं।

3.2 सामाजिक मुद्रा की अर्थव्यवस्था: उत्पादों से अनुभवों की ओर बदलाव

भारतीय जेनरेशन Z भौतिक उत्पादों के बजाय “अनुभवों और सेवाओं” जैसे यात्रा, शो और संगीत समारोहों में निवेश करना पसंद करती है। इस प्रवृत्ति का एक चरम उदाहरण “वेकेशन लोन” का उदय है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग एक-चौथाई लोगों ने पिछले साल छुट्टी पर जाने के लिए पैसे उधार लिए थे, और इस प्रवृत्ति को जेनरेशन Z द्वारा चलाया जा रहा है। यह विरोधाभासी व्यवहार बताता है कि वे पारंपरिक वित्तीय विवेक के बजाय “सामाजिक मुद्रा” में निवेश कर रहे हैं।

यह “मल्टी-रिटायरमेंट” के वैश्विक चलन से भी जुड़ा है, जहां समृद्ध जेनरेशन Z और मिलेनियल्स अपने करियर से हर कुछ वर्षों में तीन से 12 महीने के लिए ब्रेक लेते हैं ताकि वे अपने जुनून का पीछा कर सकें और परिवार के साथ फिर से जुड़ सकें। यह दृष्टिकोण पारंपरिक “एक बार में काम करो और रिटायर हो जाओ” स्क्रिप्ट को खारिज करता है।

मूल्यविवरणस्रोत
प्रामाणिकता (Authenticity)वे दिखावे से दूर, वास्तविक और पारदर्शी ब्रांडों का सम्मान करते हैं। वे “लो-फाई” सामग्री पर भरोसा करते हैं, जो मानव और अपूर्ण लगती है।
प्रयोजन (Purpose)वे ऐसे ब्रांडों को पसंद करते हैं जो सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार हैं। वे उन कंपनियों से दूर रहते हैं जो “ग्रीनवॉशिंग” (greenwashing) करती हैं या अनैतिक व्यवहार में संलग्न होती हैं।
व्यावहारिकता (Pragmatism)वे खरीदारी करने से पहले व्यापक शोध करते हैं, कीमत, गुणवत्ता और उत्पाद के विवरण को प्राथमिकता देते हैं। ब्रांड के प्रति उनकी वफादारी सशर्त है।
अनुभव (Experience)वे भौतिक उत्पादों के बजाय अनुभवों (जैसे यात्रा, संगीत समारोह) पर खर्च करना पसंद करते हैं, जिन्हें वे सामाजिक मुद्रा के रूप में देखते हैं।

4. कार्यस्थल की पुनर्रचना: प्रयोजन, लचीलापन और सीमाएं

4.1 “हसल कल्चर” की अस्वीकृति

जेनरेशन Z ने पारंपरिक “हसल कल्चर” (अत्यधिक परिश्रम) को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है, जो उनके पूर्ववर्तियों के बीच प्रचलित था। वे काम को जीवन का केवल एक हिस्सा मानते हैं, न कि अपनी पूरी पहचान। वे मानसिक और शारीरिक कल्याण को पेशेवर पूर्ति के एक “मुख्य संकेतक” के रूप में देखते हैं, जो कभी-कभी धन या सामाजिक स्थिति से भी ऊपर होता है। वे मानते हैं कि “अत्यधिक काम करके खुद को मारना गर्व की बात नहीं है” और “अनावश्यक रूप से संघर्ष को महिमामंडित करना” महत्वपूर्ण नहीं है।

यह दृष्टिकोण इस अहसास से उपजा है कि कड़ी मेहनत करते समय “अदृश्य महसूस करना” ही बर्नआउट का कारण बनता है। यह पीढ़ीगत संघर्ष आलस्य के बारे में नहीं है, बल्कि काम और जीवन के बीच के संबंधों की एक मौलिक पुनर्रचना के बारे में है।

विशेषतापारंपरिक कार्यस्थल के मानदंडजेन Z की अपेक्षाएं
पदानुक्रम (Hierarchy)सख्त, स्पष्ट श्रृंखला-आधारित कमान। वरिष्ठता का अत्यधिक सम्मान।फ्लैट संरचनाएं, खुली संचार, योगदान वरिष्ठता से अधिक महत्वपूर्ण।
कार्य-जीवन संतुलन“हसल कल्चर” को महिमामंडित करना, लंबे समय तक काम करना, अत्यधिक समर्पण।सख्त सीमाएं, काम और व्यक्तिगत जीवन का सहज एकीकरण, और काम के घंटों के बाहर व्यक्तिगत समय का सम्मान।
संचारऔपचारिक ईमेल, लंबी रिपोर्ट, आमने-सामने की बातचीत।प्रत्यक्ष, प्रामाणिक, और दृश्य-प्रथम संचार। वे इन्फोग्राफिक्स और डैशबोर्ड पसंद करते हैं।
सफलता की परिभाषावेतन, पदोन्नति, कंपनी की प्रतिष्ठा।मानसिक और शारीरिक कल्याण, करियर का विकास, और काम के साथ व्यक्तिगत मूल्यों का संरेखण।

4.2 प्रामाणिकता और पारदर्शिता की मांग

जेनरेशन Z के पेशेवर कार्यस्थल में “मनोवैज्ञानिक सुरक्षा” और “प्रामाणिक” और “पारदर्शी” नेतृत्व की मांग करते हैं। वे “दिखावटी” व्यावसायिकता को अस्वीकार करते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि सम्मान दोनों तरह से प्रवाहित हो। वे अपनी राय व्यक्त करने से डरते नहीं हैं और अक्सर उन नियमों और अधिकार पर सवाल उठाते हैं जो उन्हें अप्रासंगिक लगते हैं। यह उनके उन घरों और स्कूलों में बड़े होने का परिणाम है जहां उनकी आवाज़ सुनी और सम्मानित की गई थी।

4.3 जेन Z-प्रबंधक दुविधा

प्रबंधक इस पीढ़ी के साथ काम करने में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। कुछ लोग “जेन Z घूरने” (Gen Z stare) से तनाव महसूस करते हैं, जिसे वे निष्क्रिय-आक्रामकता या उपेक्षा के रूप में देखते हैं। हालांकि, यह व्यवहार एक गहरे संचार बदलाव का संकेत देता है। यह “भावनात्मक अर्थव्यवस्था” का एक रूप है, जो नकली शिष्टाचार में संलग्न होने से इनकार है। यह आलस्य नहीं है, बल्कि प्रामाणिकता की एक मांग है।

एआई (AI) का उपयोग एक और महत्वपूर्ण अंतर है। जेनरेशन Z के लगभग 57% कर्मचारी अपने दैनिक कार्यप्रवाह में एआई का उपयोग करते हैं। वे इसे एक “निर्णय-मुक्त” डिजिटल सहकर्मी के रूप में देखते हैं। यह दर्शाता है कि वे पारंपरिक संरक्षकता पर पूरी तरह से निर्भर नहीं हैं और अपने कौशल को बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में सहज हैं। प्रभावी ढंग से नेतृत्व करने के लिए, प्रबंधकों को एक संरक्षक-आधारित मॉडल अपनाना होगा जो आपसी सम्मान और सहानुभूति पर आधारित हो।

5. मूल्य और विश्वदृष्टि: सामाजिक विवेक और सांस्कृतिक पहचान

5.1 सक्रियता का एक नया ताना-बाना

जेनरेशन Z पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता दर्शाती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में भारत के 89% इको-कंटेंट के लिए जेनरेशन Z निर्माता जिम्मेदार थे। यह प्रवृत्ति टियर II और III शहरों में व्यक्तियों द्वारा संचालित होती है। वे सोशल मीडिया का उपयोग डिजिटल सक्रियता के लिए करते हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर वास्तविक दुनिया में कार्रवाई भी करते हैं। नेपाल में हुए हाल के विरोध प्रदर्शन एक केस स्टडी हैं, जहां सोशल मीडिया प्रतिबंध के विरोध में शुरू हुआ आंदोलन अंततः भ्रष्टाचार और संस्थागत अविश्वास के खिलाफ एक व्यापक विद्रोह में बदल गया। यह उनके “जलवायु चिंता” को कार्रवाई के लिए एक “सुपरपावर” में बदलने का एक उदाहरण है।

5.2 सांस्कृतिक समरूपता: क्षेत्रीय बारीकियां और एक हाइब्रिड पहचान

भारतीय जेनरेशन Z एक सजातीय इकाई नहीं है। वे शहरी-ग्रामीण और उत्तर-दक्षिण विभाजन की बारीकियों को दर्शाते हैं। टियर 3 और 4 शहरों में जेनरेशन Z अभी भी समाचारों के लिए प्रिंट मीडिया का उपयोग करती है, जो उनके परिवारों की आदत का एक हिस्सा है। भारत के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक अंतर भी हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर अधिक सामाजिक रूप से रूढ़िवादी लेकिन यौन रूप से उदार हो सकता है, जबकि दक्षिण इसके विपरीत हो सकता है। वे अपने माता-पिता की तुलना में अधिक “अपनी विरासत पर गर्व” करते हैं। वे भारतीय शिल्प कौशल को वैश्विक स्ट्रीटवियर के साथ जोड़ने वाले ब्रांडों को भी पसंद करते हैं, जिससे पता चलता है कि वे एक नई, हाइब्रिड पहचान बना रहे हैं जो विश्व स्तर पर जागरूक और स्थानीय रूप से निहित है।

6. रणनीतिक निहितार्थ और सिफारिशें

यह रिपोर्ट दर्शाती है कि जेनरेशन Z के साथ जुड़ने के लिए एक मौलिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

6.1 व्यवसायों और विपणक के लिए: प्रामाणिक संबंधों का निर्माण

पारंपरिक विज्ञापन से हटकर एक “दृश्य-प्रथम” रणनीति अपनाएं। प्रामाणिक, “लो-फाई” सामग्री बनाएं जो उनके मूल्यों के साथ प्रतिध्वनित हो। गेमिंग प्लेटफार्मों जैसे सामुदायिक-पहले पारिस्थितिकी तंत्र में संलग्न हों। अपने सामाजिक और पर्यावरणीय उद्देश्य पर प्रकाश डालें और अपनी नैतिकता और उत्पादन के बारे में पारदर्शी रहें।

6.2 नियोक्ताओं और नेताओं के लिए: कॉर्पोरेट संस्कृति की पुनर्रचना

“टॉक्सिक हसल कल्चर” का पुनर्मूल्यांकन और उन्मूलन करें। मानसिक और शारीरिक कल्याण को प्राथमिकता दें। खुली संचार और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए पदानुक्रमित संरचनाओं को समतल करें। ऐसा परामर्श और समर्थन प्रदान करें जो एआई के उनके उपयोग को पूरक करे।

6.3 नीति निर्माताओं और शिक्षकों के लिए: एक लचीली पीढ़ी का पोषण

युवाओं को ऑनलाइन जीवन के दबावों से निपटने में मदद करने के लिए पाठ्यक्रम में डिजिटल साक्षरता और मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को एकीकृत करें। स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल विभाजन को पाटें। सक्रियता के उनके नए रूपों को पहचानें और दमन के बजाय संवाद और जवाबदेही के साथ प्रतिक्रिया दें।

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