हैदराबाद का भारत में विलय सुनिश्चित करने के लिए सरदार पटेल की भूमिका इतिहास में दर्ज

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Hyderabad liberation day 2024: हैदराबाद का भारत में विलय एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने 1947 में स्वतंत्रता के बाद भी भारत के राजनीतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह घटना उस समय के भारतीय राजनीति और भू-राजनीति के जटिल परिदृश्य का एक हिस्सा थी, जहां हैदराबाद के निजाम ने भारतीय संघ में विलय से इनकार कर दिया था। इस लेख में हम हैदराबाद मुक्ति दिवस के ऐतिहासिक संदर्भ, प्रमुख घटनाओं, सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका और इस विलय की समग्र प्रक्रिया का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

हैदराबाद का ऐतिहासिक संदर्भ:

हैदराबाद रियासत, जो 18वीं और 19वीं शताब्दी में एक मजबूत राज्य के रूप में उभरी थी, भारत की सबसे समृद्ध रियासतों में से एक थी। हैदराबाद का शासक मीर उस्मान अली खान, जो निजाम VII कहलाता था, ने भारत के विभाजन के समय अपनी रियासत को एक स्वतंत्र राज्य बनाए रखने का प्रयास किया।

अंग्रेजों ने हैदराबाद को एक स्वायत्त राज्य का दर्जा दिया था, और निजाम का शासन हिंदुस्तान की लगभग 10% जनसंख्या और विशाल क्षेत्र पर था। हैदराबाद की भौगोलिक स्थिति भारत के मध्य में थी, जो इसे एक सामरिक महत्व प्रदान करती थी।

भारत की स्वतंत्रता और हैदराबाद की स्थिति:

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, ब्रिटिश सरकार ने सभी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में विलय का विकल्प दिया। अधिकांश रियासतों ने भारतीय संघ में विलय का निर्णय लिया, लेकिन हैदराबाद के निजाम ने खुद को स्वतंत्र रखने का फैसला किया। निजाम ने भारतीय संघ में विलय करने से इनकार कर दिया और संयुक्त राष्ट्र से समर्थन पाने की भी कोशिश की।

निजाम की राजनीतिक स्थिति और कार्यवाहियां:

निजाम ने भारतीय संघ के साथ ‘यथास्थिति समझौता’ (Standstill Agreement) पर हस्ताक्षर किए, जिससे वह कुछ समय के लिए स्वतंत्र रह सके। इस बीच, निजाम ने पाकिस्तानी नेताओं से भी समर्थन मांगा और अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए हथियार खरीदने की कोशिश की। निजाम के शासनकाल में रजाकारों (Razakars) का गठन हुआ, जो उस्मान अली खान के समर्थक थे और भारतीय संघ में विलय का विरोध करते थे। इन रजाकारों ने हैदराबाद में आतंक मचाना शुरू कर दिया और हिंदू बहुल इलाकों में अत्याचार किए।

सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका:

सरदार वल्लभ भाई पटेल, जो भारत के गृह मंत्री थे, ने स्वतंत्रता के बाद रियासतों के भारतीय संघ में विलय के लिए कूटनीति और शक्ति का संतुलन बनाए रखा। उनकी नीति ‘एकता और अखंडता’ पर आधारित थी, जिसमें उन्होंने भारत के हर हिस्से को एक राजनीतिक इकाई के रूप में समाहित करने पर जोर दिया। पटेल ने हैदराबाद के मुद्दे को विशेष रूप से संवेदनशील माना, क्योंकि यह भारत के भू-राजनीतिक संतुलन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था।

पटेल ने हैदराबाद के मुद्दे पर शुरू में कूटनीतिक प्रयास किए, लेकिन निजाम के लगातार इनकार और रजाकारों द्वारा उत्पन्न आंतरिक अशांति के कारण उन्होंने सैन्य कार्रवाई का निर्णय लिया।

 ‘ऑपरेशन पोलो’ – हैदराबाद का सैन्य एकीकरण

सितंबर 1948 में सरदार पटेल ने भारतीय सेना को हैदराबाद रियासत पर कब्जा करने का आदेश दिया। इस सैन्य अभियान को ‘ऑपरेशन पोलो’ (Operation Polo) कहा जाता है। यह 13 सितंबर 1948 को शुरू हुआ और 5 दिनों के भीतर, यानी 17 सितंबर 1948 को समाप्त हुआ। इस सैन्य अभियान के दौरान भारतीय सेना ने रजाकारों और निजाम की सेना को पराजित कर दिया।

ऑपरेशन पोलो के परिणामस्वरूप निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और हैदराबाद भारतीय संघ का हिस्सा बन गया। इस ऑपरेशन में कुल 32 भारतीय सैनिक शहीद हुए, जबकि रजाकारों और निजाम की सेना के हजारों लोग मारे गए।

हैदराबाद मुक्ति दिवस:

17 सितंबर 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय हुआ, जिसे हैदराबाद मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हैदराबाद की जनता के लिए स्वतंत्रता और नए भारत के साथ एकीकरण का प्रतीक है।

परिणाम और दीर्घकालिक प्रभाव:

हैदराबाद के भारत में विलय ने न केवल दक्षिण भारत के राजनीतिक परिदृश्य को बदला, बल्कि भारतीय एकीकरण की प्रक्रिया को भी पूर्णता दी। इस विलय के बाद निजाम ने भारत के प्रति निष्ठा जताई और उन्हें हैदराबाद का ‘राजप्रमुख’ (State Head) नियुक्त किया गया।

सरदार पटेल का योगदान और उनकी दूरदर्शिता:

सरदार वल्लभ भाई पटेल की कूटनीति, संकल्प और दृढ़ता के बिना हैदराबाद का भारतीय संघ में विलय संभव नहीं था। उन्होंने बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के इस समस्या को सुलझाया और भारत को विभाजित होने से बचाया। पटेल ने यह साबित किया कि भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाने के लिए दृढ़ नेतृत्व और उचित निर्णय आवश्यक हैं।

सरदार वल्लभभाई पटेल ने हैदराबाद का भारत में विलय सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण और रणनीतिक कदम उठाए। प्रमुख कदम निम्नलिखित थे:

यथास्थिति समझौता (Standstill Agreement) पर जोर देना:

1947 में जब निजाम ने भारतीय संघ में विलय से इनकार किया, तो पटेल ने कूटनीतिक दृष्टिकोण अपनाते हुए एक ‘यथास्थिति समझौता’ (Standstill Agreement) का प्रस्ताव दिया। इस समझौते के तहत हैदराबाद की स्वतंत्र स्थिति को अस्थायी रूप से मान्यता दी गई, और दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर कोई कार्रवाई न करने का संकल्प लिया। यह समझौता भारत को अन्य रियासतों के विलय पर ध्यान केंद्रित करने का समय देने के लिए था, जबकि हैदराबाद की समस्या को बाद में सुलझाने का निर्णय लिया गया।

रजाकारों के आतंक का सामना करना:

हैदराबाद में निजाम के समर्थन में ‘रजाकार’ नामक एक मिलिशिया समूह सक्रिय हो गया था, जो भारतीय संघ में विलय का विरोध कर रहा था। रजाकारों के नेता कासिम रजवी थे, जो कट्टरपंथी थे और हैदराबाद को स्वतंत्र इस्लामी राज्य के रूप में देखना चाहते थे। रजाकारों ने हैदराबाद में बड़े पैमाने पर हिंसा और दंगे फैलाए, जिससे आम जनता पर अत्याचार हुआ। सरदार पटेल ने रजाकारों की इस उग्रवादी गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी और इसे समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की योजना बनाई।

कूटनीतिक वार्ता का असफल होना:

पटेल ने कई बार निजाम से वार्ता करने और भारतीय संघ में शांतिपूर्वक विलय करने के लिए समझाने की कोशिश की। लेकिन निजाम ने भारतीय संघ के साथ विलय की सभी शर्तों को ठुकरा दिया और पाकिस्तान से समर्थन की उम्मीद में अपने कदम बढ़ाए। निजाम ने संयुक्त राष्ट्र से भी हस्तक्षेप की मांग की। जब सभी कूटनीतिक प्रयास विफल हो गए, तब पटेल ने सैन्य कार्रवाई का फैसला किया।

सैन्य विकल्प की तैयारी:

पटेल ने हैदराबाद के आंतरिक हालात और रजाकारों की हिंसा को देखते हुए महसूस किया कि स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए सैन्य हस्तक्षेप ही एकमात्र विकल्प रह गया है। उन्होंने भारतीय सेना को तैयार करने के आदेश दिए, लेकिन इस कदम को सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं किया। यह तैयारी तब की जा रही थी जब निजाम और पाकिस्तान के बीच संभावित गठजोड़ का खतरा बढ़ रहा था।

ऑपरेशन पोलो का आदेश:

13 सितंबर 1948 को, सरदार पटेल ने भारतीय सेना को ‘ऑपरेशन पोलो’ शुरू करने का आदेश दिया। इस सैन्य अभियान का उद्देश्य हैदराबाद रियासत को भारतीय संघ में मिलाना था। ऑपरेशन पोलो पांच दिन तक चला और भारतीय सेना ने रजाकारों और निजाम की सेना को हराया। 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद ने आत्मसमर्पण कर दिया और इसे भारतीय संघ में मिला लिया गया।

अंतरराष्ट्रीय दखल से बचना:

पटेल की रणनीति में एक महत्वपूर्ण कदम यह था कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र या किसी अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन के हस्तक्षेप से पहले ही भारत की घरेलू संप्रभुता के तहत इस समस्या को हल कर लिया। निजाम ने संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग की थी, लेकिन पटेल ने तेजी से सैन्य कार्रवाई कर इस मुद्दे को घरेलू स्तर पर सुलझाया और अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप को रोका।

निजाम के साथ उदारता दिखाना:

सरदार पटेल ने सैन्य कार्रवाई के बाद भी निजाम के प्रति उदारता दिखाई। उन्होंने निजाम मीर उस्मान अली खान को हैदराबाद का ‘राज प्रमुख’ (Governor) नियुक्त किया और उन्हें भारत के संविधान के तहत मान्यता दी। इस तरह उन्होंने निजाम को भारत के प्रति वफादार बनाए रखा और हैदराबाद में किसी प्रकार के विद्रोह की संभावना को खत्म किया।

हैदराबाद में शांति बहाली:

ऑपरेशन पोलो के बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद में शांति बहाली के लिए ठोस कदम उठाए। उन्होंने प्रशासनिक सुधार किए और रजाकारों की हिंसा के शिकार लोगों को राहत प्रदान की। पटेल ने यह सुनिश्चित किया कि हैदराबाद में कोई बड़े पैमाने पर हिंसा या राजनीतिक अस्थिरता न हो, और उसे भारतीय संघ के साथ पूरी तरह से समाहित किया जा सके।

राजनीतिक और प्रशासनिक एकीकरण:

सरदार पटेल ने यह सुनिश्चित किया कि हैदराबाद भारतीय संघ का एक अभिन्न हिस्सा बने। उन्होंने प्रशासनिक सुधार किए और केंद्र सरकार के तहत शासन व्यवस्था स्थापित की। इसके साथ ही उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि हैदराबाद के लोगों को भारतीय संविधान के तहत समान अधिकार मिलें और कोई भेदभाव न हो।

सरदार वल्लभभाई पटेल ने हैदराबाद का भारतीय संघ में विलय करने के लिए कूटनीति, सैन्य शक्ति और राजनीतिक दूरदर्शिता का प्रभावी उपयोग किया। उन्होंने न केवल निजाम की आक्रामकता और रजाकारों की हिंसा का सामना किया, बल्कि एक शांतिपूर्ण और स्थिर विलय की भी व्यवस्था की। उनकी दृढ़ता और नेतृत्व ने यह सुनिश्चित किया कि भारत का राजनीतिक एकीकरण सफलतापूर्वक पूरा हो सके।

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