हाइलाइट्स
- बड़नगर में मिट्टी का घर बनाकर रह रहा है आइआइटी दंपत्ति
- डेढ़ एकड़ के फार्म हाउस में जरुरत की 85 प्रतिशत चीजें उगा रहे
- यात्रा से मिली प्रकृति के पास रहने की प्रेरणा
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में दाखिले की होड़ लगी हुई है। हर मां-बाप यह चाहता है कि उसका बेटा IIT में दाखिला ले पाए। लेकिन साक्षी भाटिया और अर्पित माहेश्वरी टापर्स होने के बावजूद किसानों सी जिंदगी गुजार रहे हैं। दोनों ने मध्य प्रदेश के उज्जैन से 50 किमी दूर बड़नगर में एक फार्म हाउस बनाया। दंपत्ति ने भारत में बसने के लिए अमेरिका की अच्छी खासी सैलरी वाली नौकरी छोड़ दी। यहां एक नेचुरल फार्म, ‘जीवंतिका’ की शुरुआत की। जो लोगों को प्रकृति के पास रहने का अनुभव दे रहा है।
द बेटर इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक दंपत्ति डेढ़ एकड़ के फार्म पर जरूरत की 85 प्रतिशत चीजें उगा रहे हैं। एक अन्य फर्म से केवल तेल खरीद रहे हैं। साक्षी और अर्पित दोनों ने ही कंप्यूटर साइंस से पढ़ाई की। 2013 में इनकी शादी हुई। शादी के बाद दोनों खूब यात्रा किया करते थे। अर्पित बताते हैं कि हम दोनों में एक समानता घूूमने की थी। दोनों को ही अलग अलग जगहें घूमने का शौक था। 2015 में दक्षिण अमेरिका की एक लम्बी ट्रिप पर भी गए थे। यही यात्रा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। दुनिया घूमते हुए ही साक्षी और अर्पित ने भारत वापस आने के बारे में सोचा और पुडुचेरी के ऑरोविल में एक इकोविलेज में समय बिताने का फैसला किया। यहां कृषि जीवन और पर्यावरण के साथ जीवन बीताना सीखा। आर्गेनिक खेेती के बारेे में भी जानकारी हासिल की।
लेकिन भाषा की दिक्कत के कारण दक्षिण भारत छोड़ना पड़ा। दंपत्ति ने तब मध्य भारत चुना। साक्षी दिल्ली में पली हैं, जबकि अर्पित राजस्थान से ताल्लुक रखते हैं। करीब 4 साल पहले उन्होंने उज्जैन के पास एक डेढ़ एकड़ का फार्म खरीदा और जैविक खेती शुरू की। बकौल अर्पित, शुरुआत में गांव वाले हमें समझ नहीं पाते। अब भी गांव वालों के लिए हम बाहरी ही है लेकिन उम्मीद है कि चीजें बदल जाएंगी।
अनुभव कैसा रहा
अर्पित कहते हैं कि शहरों में तो तत्काल खाना आर्डर किया जा सकता है, गांव में यह सुविधा नहीं है। शुरुआत में हमें थोड़ी मुश्किल हुई लेकिन बाद में अच्छा लगने लगा। यहां हमारी दिनचर्या सुबह पांच बजे शुरू होती है। खेतों में काम करना फिर खुद के लिए ताज़ी सब्जियां तोड़कर उससे खाना बनाना, मिट्टी में हाथ गंदे करना आदि हमें अब काफी खुश करता है। यहां फ्रिज नहीं है इसलिए जो भी खाते हैं फ्रेश खाते हैं। दंपत्ति ने अपने फर्म पर फलों के पेड़, मौसमी सब्जियां, दाल, चावल सहित कुछ जंगली पौधे भी लगाए हैं, ताकि ईको-सिस्टम को बैलेंस करने में मदद मिले। दोनों ने मिलकर एक मिट्टी का घर भी बनाया है, जिसमें कुछ देर बिताने से ही शांति मिलती है।