रेल का इंजन, डिब्बा और जंक्शनों पर सफर के दौरान तमाम शहर के जायकों का लुत्फ। खासतौर पर उस स्टेशन का इंतजार जिसके जायके हरदिल अजीज होते है। आलू पूरी, वड़ा पाव, पेठे की याद आते हीं जबान पर उस स्टेशन का नाम एक एक करके सामने आ जाता है, जहां कभी उस जायके का सुस्वाद लिया था। दिल बच्चे की तरह उसी पुराने सुस्वाद को चखने के लिए बेसब्र हो जाता है। खिड़की के बाहर झांकते हुए बस उसी जंक्शन पर रेल रुकने का इंतजार रहता है। शायद हर किसी ने कही न कही सफर के इस रोमांच को महसूस किया होगा। उन जायकों की तलाश में फिर से रेल के डिब्बे में उड़ जा बैठे होंगे। लोगों के जीवन के कुछ खट्टे, मीठे, चटपटे जज्बातों और रेल से जुड़ी रोमानियत को शहर के रेस्तरां भी बखूबी कैद कर रहे हैं। एक ऐसा ही रेस्तरां राजेन्द्र प्लेस में खुला है जिसकी थीम, डेकोर से लेकर जायके भी खास हैं। जीवन के यादगार सफर को यहां बैठकर रेल के सफर का आनंद लिया जा सकता है।

राजेन्द्र प्लेस मेट्रो स्टेशन(rajendra place metro station) के पास ही लाल रंगों से सजी एक ऐसी ट्रेन हैं जो अपने स्टेशन से कभी आगे नहीं जाती लेकिन राहगीरों के कदम उसे देखकर जरुर ठहर जाते हैं। काले रेल के भाप के इंजन के पीछे लाल व सफेद रंगों में सजी ट्रेन का डिब्बा। स्टेशन पर लगी लाइटें और लकड़ी के सफेद बाड़े। ट्रेन के डिब्बे के बड़ी बड़ी खिड़कियों से झांकते कुछ पल। स्टेशन के बाहर बरगद का पेड़ भी हैं जिसके नीचे लोग सुस्ता भी सकते हैं और पेड़ों पर सजी घंटियां और लालटेन किसी गांव देहात के स्टेशन की याद दिलाते हैं। स्टेशन की खूबसूरती बरबस ही स्टेशन पर खड़ी उस ट्रेन के अंदर बसें जायके के सफर पर चलने का कौतूहल बढ़ा देती है। रेस्तारं के अंदर प्रवेश करते ही डेकोर भी ट्रेन जैसा दिखाई देता है।

रेस्तरां में कई ऐसे स्क्रीन हैं जिसमें दौड़ते भागते ट्रेनें व खिड़कियों के बाहर से तेजी से दौड़ते भागते नजारे भी देखे जा सकते हैं। ट्रेन बेशक रूकी हुई है लेकिन अदंर के वातावरण से आप एक सफर पर होने का अहसास करेंगे। ट्रेन में जब सवार हो चुके हैं तो जायकों के स्टेशन का आना भी लाजमी है। मैन्यू कार्ड से ही आप सफर पर जाने का आनंद ले सकते हैं। मैन्यू के मुताबिक आप अपने मनपसंद के स्टेशन पर रुक सकते हैं और उस जायके को ऑर्डर कर सकते हैं। हालांकि इस रेस्तरां का नाम इमली (imly restaurant rajendra place) है इसलिए हर जायके में इमली का चटपटा स्वाद होना भी लाजमी है। पीने के लिए कई खास ड्रिंक्स ट्राइ किए जा सकते हैं। दिल्ली स्टेशन के मैन्यू में कंचा बंटा, देसी मोहितो (आमपन्ना) ड्रिंक के साथ गोल गप्पे, मलाई टिक्की, छोले भटूरे में मुंह में पानी भर देते हैं। इसके अलावा बंबई स्टेशन पर कटिंग चाय और वड़ा पाव का स्वाद लिया जा सकता है। उत्तर प्रदेश का जंक्शन भी हैं जिसमें करारी चटपटी पालक पापड़ी चाट का लुत्फ लिया जा सकता है। राजस्थान के जंक्शन में गट्टे की सब्जी और रोटी के साथ वहां के मावे की कचौरी का स्वाद लिया जा सकता है। पंजाबी टर्मिनल में अमृतसरी कुल्चे और इमली सी चपपटी थाली में खास है। मद्रास की भट्टी इमली वे डोसा, डोला पिज्जा स्टाइल में इसके स्वाद का आनंद लिया जा सकता है।

जायके के नाम जितने उनूठे हैं उसे परोसने का तरीका भी नायाब है। गोलगप्पे को डोने व कटोरी में नहीं बल्कि एक झूले में परोसा जाता है। इमली रेस्तरां के ओनर वरुण पुरी और सुरजीत सिंह बताते हैं कि जायके का लुत्फ परोसने के अंदाज से भी बढ़ जाता है। इसलिए बर्तनों के चयन में भी खास ध्यान रखा गया है। झूले और लकड़ी के ट्रे में पानी पुरी और वड़ा पाव परोसने के लिए पाने का इस्तेमाल किया गया है। दरअसल, लोग उन चीजों को देख कर उत्साहित हो जाते हैं जिन चीजों को बचपन में वे देखा करते थे। वे बताते हैं कि दिल्ली में अब उस तरह के मेले कम ही देखने को मिलते हैं जहां झूले के साथ गोलगप्पे का लुत्फ लिया जासकें। इसलिए इस रेस्तरां में झूले में पानी पुरी परोसी जाती है। इतने तीखे और जायकेदार स्वाद के बाद मीठे का भी स्टेशन हैं, जिसमें राजस्थान के रजवाड़ों के खानसामों द्वारा बनाए गए जलेबी और गुलाब जामुन परोसे जाते हैं।

इमली रेस्तरां के रामदेव महाराज बताते हैं कि यहां रजवाड़ों के घरो में तैययार की जाने वाली जयपुरी जलेबी तैयार की जाती है। आम तौर पर हलवाई जलेबी की गोलाई और रिंग पर ध्यान नहीं देते लेकिन स्वाद के साथ जलेबी का शेप भी महत्वपूर्ण होता है। सारी जलेबी एक ही साइज की तैयार की जाती है। लोग यहां किसी भी समय जलेबी खा सकते हैं। जलेबी के साथ रबड़ी और दही भी ली जा सकती है। गुलाबजामुन का स्वाद भी थोड़ा अलग है। इन सब जायकों का स्वाद लेते बातों के सिलसिले के बीच नजरे ट्रेन के रैक पर रखे कुछ रंगीन बक्शे पर भी नजर ठहर जाती है। दिल फिर से उसी रोमानी सफर पर चल पड़ता है जिसके कुछ पल टिन के उन्हीं पेटियों में बंद हैं जिसे थामे रेल के डिब्बों में अकसर बैठक जाया करते थे।

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