सेंटर फॉर प्रोफेशनल डेवलपमेंट इन हायर एजुकेशन (यूजीसी-एमएमटीटीसी), दिल्ली विश्वविद्यालय, विश्व विद्यालय अनुदान आयोग एवं भारतीय ज्ञान परम्परा (डिविज़न ऑफ मिनिस्ट्री ओड़ एजुकेशन, गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया) के संयुक्त तत्त्वावधान में “भारतीय ज्ञान परम्परा” विषय पर छह दिवसीय लघु प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारम्भ दिल्ली स्थित  सीपीडीएचई (यूजीसी-एमएमटीटीसी) में किया गया।

उद्घाटन सत्र का प्रारम्भ दीप प्रज्वल एवं वैदिक मंगलाचरण के साथ हुआ। सत्र की अध्यक्षता डॉ.उमाशंकर पचौरी द्वारा की गई। सत्र में मुख्य मुख्य अतिथि के रूप में पद्मभूषण प्रो. कपिल कपूर एवं प्रो. गन्टी एस मूर्ति की गरिमामय उपस्थिति रही।

सत्र को सम्बोधित करते हुए स्वागत अभिनन्दन हेतु सीपीडीएचई की निदेशक प्रो. गीत सिंह ने कहा की भारत के विभिन्न क्षेत्रों से आए माला रूपी अलग-अलग विषय के युवा चेहरे भारतीय ज्ञान परम्परा को हमारे समक्ष रखेंगे। “भारतीयता की शक्ति श्रीमद्भागवद्गीता है” यह कहते हुए वर्तमान समय में भारतीय ज्ञान परम्परा विषय की आवशयकताओं पर प्रकाश डाला – भारत के आध्यात्मिक तत्त्वों को जानना विश्व के लिए वर्तमान समय की मांग है। इसके लिए हमें भारत के स्व से परिचित होना ज़रूरी है। रामसेतु एवं कुतुबमिनार का जिक्र करते हुए भारतीय आस्था में चमत्कार को समझना अनिवार्य है। मैकाले के बाद शिक्षा को पाश्चात्य दृष्टि से देखा गया। वेद वेदांग के मूल में जाने का प्रयत्न नहीं किया गया। अपने वक्तव्य के अन्त में सभा को संबोधित करते हुए कहा की युवा भारतीय ज्ञान परम्परा का दायित्व लेते है की आने वाले साथियों के माध्यम से विश्व को अचम्भित करना है।

भारतीय ज्ञान परम्परा के नैशनल कॉर्डिनटर” प्रो घंटी एस मूर्ति ने कहा की हमें अपना परिप्रेक्ष्य बदलना पड़ेगा। सम्पूर्ण भारत में छह कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है जिसमें एक हजार शिक्षकों को भारतीय ज्ञान परम्परा में शिक्षित किया जाएगा। परम्परा शब्द अपने में ही सम्पूर्ण संस्कृति का संवाहक होता है वहीं परम्परा हमें आगे ले जानी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्धरण देते हुए शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। भारतीय ज्ञान परम्परा को समझने के लिए ना केवल संस्कृत अपितु Technical Knowledge के अध्ययन की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। Technical Knowledge वाला शिक्षक संस्कृत के ग्रन्थों का अध्ययन करें। छात्रों को गणित पढ़ाने के  लिए शिक्षक को भारतीय गणित का ज्ञान हो। भारत की ज्ञान परम्परा knowledge Transmission System है यह परम्परा नए ज्ञान की जनक है।  यूजीसी के 1st Phase में अभी 1000 शिक्षकों को चयनित किया गया है जिसका अग्रिम लक्ष्य 10000 है।

पद्म भूषण प्रो कपिल कपूर ने बीज वक्तव्य का प्रारम्भ ‘सत्यमेव जयते’ से किया जिसका अभिप्राय बहुत लोगों का बलिदान है। भारत ने विश्व को पहली पुस्तक, पहला गद्य-पद्य अर्थमटिक, छन्द, धर्मशास्त्र, फनेटिक्स, व्याकरण, इत्यादि बहुत कुछ दिया इस विषय पर उन्होंने अपने लेख का उद्दरण दिया।

अंग्रेजी पढे लोगों ने संविधान का निर्माण किया समाज को Fundamental Rights दिए  जबकि हमारी परम्परा में  Fundamental Duties का चलन रहा है। Rights शब्द में स्वार्थ का भाव निहित है “Rights Directed by ourself” परन्तु Duties अथवा दायित्व इस शब्द में निस्वार्थ का भाव है।

विष्णु पुराण में भारत की संस्कृति का वर्णन मिलता है जो भारत की विभिन्नताओं पर प्रकाश डालता है भारत शुरू से ही विभिन्नताओं का देश है। भारत की भौगोकलिक संरचना प्राकृतिक है शास्त्रों में जम्बुद्वीप के नाम से इसका वर्णन प्राप्त होता है। UNO द्वारा जारी सूची में 46 सभ्यताओं में से मात्र सनातन सभ्यता ही वर्तमान में जीवित है। वर्ष 1977 में अपने गुरु पण्डित भागवत शास्त्री जी के साथ के अनुभव को साझा करते हुए कहा उनके गुरु का एक वाक्य “भारतीय ज्ञान परम्परा सनातन ज्ञान प्रवाह है” ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। भारत में देश को जानने का यज्ञ चल रहा है सारी लहरें समुद्र में मिलकर सुनामी बन जाएगी।

delhi university

अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. उमाशंकर पचौरी (VP Bhartiya Shikshan Mandal) ने उपस्थित प्राध्यापकों को नमन करते हुए अपने वक्तव्य का प्रारम्भ किया। भारत भूमि मोक्ष की भूमि है। हम जीवन्त है सुखदेह के लिए नहीं अपितु हितदेह के लिए 1897 के स्वामी विवेकानन्द के भाषण को उद्धृत करते हुए कहा कि जिसमें 1 गुण होता है उसे मानव जीवन मिलता है, जिसमें 2 गुण उसे भारतवंशीय होने का सौभाग्य मिलता है, जिसमें 3 गुण होते है उसे शिक्षक होने का सौभाग्य मिलता है एवं जिसमें 4 गुण होते है उसे भारतीय ज्ञान परम्परा का संवाहक बनने का अवसर मिलता है। भारतीय ज्ञान की मौखिक परम्परा में ऋषि की चिन्तन दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता को गिनती के उदाहरण से सभा के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होनें कहा हमारे ऋषियों के ज्ञान में सूक्ष्म दृष्टि है। सभा को सम्बोधित करते हुए 1 करोड़ शिक्षकों में से चयनित 1000 शिक्षकों को उनके दायित्व का महत्व एवं मूल्य भावी भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है इस पर प्रकाश डाला। “भारतीय ज्ञान परम्परा के उपनिषद- ऋषि” उस भारतीय ज्ञान परम्परा के संवाहक शिक्षक है। भारतीय ज्ञान परम्परा विषय से शिक्ष पद्धति में गंगा(भक्ति), यमुना(विधि-निषेध कर्म), सरस्वती (ज्ञान) त्रिवेणी भारतीय शिक्षा पद्धति में आएगी। नागरिक शब्द को राष्ट्रांग कहते हुए भारतीय ज्ञान परम्परा को शैक्षणिक स्तर पर प्रभावी बनाने वाले प्राकृत प्रयासों के निरन्तर प्रवाहमान रहने हेतु प्रोत्साहन दिया।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here