बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली
Madan Mohan Malaviya biography: मदनमोहन मालवीय, जिन्हें “महामना” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता, शिक्षाविद् और समाज सुधारक थे। उनका जन्म 25 दिसंबर 1861 को प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में हुआ था। उनके पिता, पंडित ब्रजनाथ, संस्कृत के एक विद्वान और कथाकार थे। मदनमोहन मालवीय का पूरा जीवन भारतीय संस्कृति, शिक्षा और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति समर्पित रहा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा, Life of Madan Mohan Malaviya
प्रारंभिक जीवन में मदनमोहन मालवीय ने अपने पिता से ही संस्कृत और धार्मिक शिक्षा प्राप्त की। उनकी प्राथमिक शिक्षा हरण हरण विद्यालय में हुई, जिसके बाद उन्होंने इलाहाबाद के मुइर सेंट्रल कॉलेज (अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय) में दाखिला लिया। मालवीय जी ने 1884 में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की।
करियर और प्रारंभिक समाज सेवा, Social reforms by Madan Mohan Malaviya
करियर की शुरुआत में मालवीय जी ने कुछ समय तक एक स्कूल में अध्यापन कार्य किया, लेकिन जल्द ही उन्हें पत्रकारिता में रूचि हो गई। उन्होंने “हिंदुस्तान” और “अभ्युदय” जैसे अखबारों के माध्यम से जनजागरण का कार्य किया। इसके बाद उन्होंने वकालत में कदम रखा और सफल वकील के रूप में पहचान बनाई।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, Indian independence movement leader
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मदनमोहन मालवीय का योगदान अविस्मरणीय है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष बने (1909, 1918, 1932, 1933)। उन्होंने 1916 में “लखनऊ समझौता” के माध्यम से हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया। 1930 के “नमक सत्याग्रह” और 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना, Banaras Hindu University founder
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना मदनमोहन मालवीय का एक महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने 1916 में वाराणसी में इस विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीय विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के साथ भारतीय संस्कृति और मूल्यों का ज्ञान प्रदान करना था। आज भी BHU भारत के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में से एक है।
समाज सुधार और शिक्षा, Indian culture and education
समाज सुधार के क्षेत्र में मालवीय जी का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने अछूतों के अधिकारों की वकालत की और उन्हें मंदिरों में प्रवेश दिलाने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा के विरोध में आवाज उठाई और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान, Social reforms by Madan Mohan
धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान के रूप में मालवीय जी ने भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा और प्रचार-प्रसार के लिए कई प्रयास किए। वे भारतीय संस्कृति के प्रबल समर्थक थे और वेदों, पुराणों और उपनिषदों के अध्ययन और प्रचार-प्रसार में विश्वास रखते थे।
स्वतंत्रता संग्राम के बाद, After Independence
स्वतंत्रता संग्राम के बाद भी मदनमोहन मालवीय ने भारतीय समाज की सेवा जारी रखी। उन्होंने विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से समाज के विकास में योगदान दिया।
निधन मदनमोहन मालवीय का 12 नवंबर 1946 को वाराणसी में हुआ। उनकी मृत्यु के बाद भी उनका योगदान और उनके कार्य भारतीय समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। मदनमोहन मालवीय का जीवन एक आदर्श व्यक्तित्व का प्रतीक है, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जीवन और कार्य हमें भारतीय संस्कृति, शिक्षा और समाज के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देते हैं।