बदलते वैश्विक समीकरण: अमेरिका के टैरिफ और भारत-चीन-रूस की बढ़ती नजदीकी
हाल ही में तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात ने वैश्विक कूटनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। यह बैठक सिर्फ एक औपचारिक शिष्टाचार से कहीं बढ़कर थी, क्योंकि यह एक ऐसे समय में हुई है, जब अमेरिका द्वारा भारत और चीन दोनों पर टैरिफ और आर्थिक प्रतिबंधों का दबाव बढ़ रहा है। ऐसे में, यह मुलाकात भारत, चीन और रूस के बीच बढ़ती नजदीकियों को दर्शाती है, जो एक बहुध्रुवीय (multipolar) विश्व व्यवस्था की ओर स्पष्ट संकेत करती है।
यह लेख मोदी-जिनपिंग की मुलाकात, अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के दबाव और इससे उत्पन्न होने वाले भू-राजनीतिक परिणामों का गहन विश्लेषण करता है, विशेषकर भारत की विदेश नीति के संदर्भ में।
मोदी-जिनपिंग मुलाकात: रिश्तों का नया अध्याय
पांच साल बाद हुई इस महत्वपूर्ण बैठक में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग ने लगभग एक घंटे तक चर्चा की, जो कि निर्धारित समय से 20 मिनट अधिक थी। यह अतिरिक्त समय इस बात का संकेत है कि दोनों नेता द्विपक्षीय संबंधों को गहराई से सुधारने के इच्छुक थे। इस बातचीत का सबसे अहम पहलू यह रहा कि दोनों नेताओं ने सीमा विवाद को पूरे द्विपक्षीय संबंधों पर हावी न होने देने पर सहमति जताई। पीएम मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत और चीन के संबंधों को किसी तीसरे देश के लेंस से देखने की ज़रूरत नहीं है। यह बयान सीधे तौर पर अमेरिका और पश्चिमी देशों को दिया गया एक मजबूत संदेश था, जो चीन के साथ भारत के संबंधों को अपने भू-राजनीतिक हितों के चश्मे से देखते हैं।
राष्ट्रपति जिनपिंग ने भी ‘पंचशील सिद्धांतों’ को बनाए रखने और ‘ड्रैगन और हाथी’ को एक साथ चलने का आह्वान किया, जिसका तात्पर्य चीन और भारत के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि “ड्रैगन और हाथी” को एक साथ आकर मित्र और अच्छे पड़ोसी बनना चाहिए। यह रूपक चीन के सरकारी मीडिया आउटलेट्स, जैसे ग्लोबल टाइम्स में भी बार-बार इस्तेमाल किया गया, जिसने “चीन और भारत सहयोगी हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं” शीर्षक से लेख प्रकाशित किया। यह दर्शाता है कि चीन भी इस रिश्ते को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानता है। जिनपिंग ने यह भी कहा कि दोनों देशों को बहुपक्षवाद का समर्थन करना चाहिए, खासकर जब अमेरिका द्वारा दोनों पर टैरिफ का दबाव बढ़ाया जा रहा है। यह दृष्टिकोण अमेरिका के एकतरफा व्यापारिक नीतियों के खिलाफ एक साझा मोर्चा बनाने की ओर संकेत करता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी बैठक के बाद X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर अपनी भावनाओं को साझा किया। उन्होंने लिखा, “हमने काज़ान में पिछली बैठक के बाद भारत-चीन संबंधों में सकारात्मक गति की समीक्षा की। हम सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के महत्व पर सहमत हुए और आपसी सम्मान, हित और संवेदनशीलता पर आधारित सहयोग की प्रतिबद्धता को दोहराया।” यह बयान दर्शाता है कि भारत सीमा पर शांति को प्राथमिकता देता है, लेकिन साथ ही वह व्यापक सहयोग के लिए भी तैयार है।
अमेरिका के टैरिफ और भारत-चीन-रूस की बढ़ती नजदीकी
डोनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका द्वारा भारत से आयातित कुछ उत्पादों पर 50% और रूस से तेल खरीद पर 25% टैरिफ लगाने का निर्णय, भारत के लिए एक बड़ी आर्थिक और रणनीतिक चुनौती है। यह कदम भारत की संप्रभुता पर एक प्रकार का दबाव था, क्योंकि अमेरिका ने भारत को रूस के साथ अपने पारंपरिक संबंधों को कम करने के लिए मजबूर करने की कोशिश की। इसी तरह, चीन भी अमेरिकी टैरिफ से जूझ रहा है, और दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध गहराता जा रहा है।
यह साझा आर्थिक दबाव भारत, चीन और रूस जैसे देशों को एक-दूसरे के करीब ला रहा है। ये देश SCO और ब्रिक्स (BRICS) जैसे मंचों का उपयोग कर अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों की रक्षा कर रहे हैं, और अमेरिकी वर्चस्व वाली वैश्विक व्यवस्था के विकल्प के रूप में एक नई धुरी बना रहे हैं। चीनी मीडिया आउटलेट शिन्हुआ ने भी शी जिनपिंग के बयान को उजागर किया, जिसमें भारत और चीन को ग्लोबल साउथ के दो स्तंभ के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह दर्शाता है कि चीन भी इन संबंधों को पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को संतुलित करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण मानता है।
यह बढ़ती नजदीकी एक स्पष्ट संदेश देती है कि इन देशों की विदेश नीति अब अमेरिका के दबाव में नहीं चलेगी। वे अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देंगे और एक-दूसरे के साथ सहयोग को मजबूत करेंगे। भारत, जो ऐतिहासिक रूप से गुटनिरपेक्ष नीति का पालन करता रहा है, इस नए समीकरण में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है। वह न तो पूरी तरह से अमेरिका के साथ जुड़ना चाहता है और न ही चीन के प्रभाव में आना चाहता है।
भू-राजनीतिक समीकरणों पर दूरगामी परिणाम
इस मुलाकात के दूरगामी परिणाम कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं।
- रणनीतिक स्थिरता: यह बैठक सीमा पर तनाव कम करने और शांति एवं स्थिरता बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। दोनों देशों ने सीमा मुद्दे को समग्र संबंधों से अलग रखने की प्रतिबद्धता दिखाई है, जिससे भविष्य में तनाव को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। यह दिखाता है कि दोनों देशों के नेता इस बात से अवगत हैं कि सीमा पर तनाव से दोनों देशों का ही नुकसान होगा।
- आर्थिक सहयोग: अमेरिका के टैरिफ दबाव के बीच, भारत और चीन के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ने की संभावना है। दोनों देश व्यापार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में मिलकर काम कर सकते हैं। चीनी पत्रकार झांग शियाओ, जिन्होंने खुद को “अंजलि” के नाम से परिचित कराया, ने हिंदी में कहा कि “हमें हाथ मिलाकर काम करना चाहिए।” उन्होंने विशेष रूप से चीन की उच्च तकनीक में सहयोग की संभावनाओं पर जोर दिया। इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक असंतुलन को भी कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
- बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था: यह मुलाकात और भारत, चीन व रूस के बीच बढ़ती नजदीकी एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। ये देश मिलकर संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर अपनी सामूहिक आवाज़ को मजबूत करेंगे और एकतरफावाद व संरक्षणवाद की नीतियों का विरोध करेंगे। चीनी मीडिया आउटलेट CGTN के मुख्य संपादक वू लेई ने भी इस बात पर जोर दिया कि “वे वैश्विक नेताओं से मिलने और बहुपक्षवाद को मजबूत करने के लिए सहयोग बढ़ाने की उम्मीद रखते हैं, खासकर जब दुनिया एकतरफा रुझान और संरक्षणवाद जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है।”
- वैश्विक गठबंधनों का पुनर्गठन: यह बैठक मौजूदा वैश्विक गठबंधनों को भी प्रभावित करेगी। अमेरिका के नेतृत्व वाला “क्वाड” (QUAD) समूह, जिसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत शामिल हैं, का उद्देश्य चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना है। लेकिन, भारत और चीन के बीच बढ़ती नजदीकी इस समूह की प्रभावशीलता पर सवाल उठा सकती है। भारत अपनी विदेश नीति में संतुलन साधने का प्रयास करेगा, जिसमें वह एक ओर क्वाड में शामिल होकर चीन पर दबाव बनाए रखेगा, वहीं दूसरी ओर एससीओ जैसे मंचों पर चीन और रूस के साथ मिलकर अपने आर्थिक हितों की रक्षा करेगा।
कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग की यह मुलाकात सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने का प्रयास नहीं था, बल्कि यह वैश्विक भू-राजनीति में हो रहे बड़े बदलावों का एक प्रतिबिंब भी था। यह दिखाता है कि भारत अब केवल एक पक्ष के साथ नहीं, बल्कि सभी प्रमुख शक्तियों के साथ अपनी शर्तों पर संबंधों को आगे बढ़ा रहा है। यह एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कूटनीतिक संतुलन है, लेकिन भारत की बढ़ती वैश्विक महत्वाकांक्षा के लिए यह आवश्यक भी है।
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