फतेहपुरी मस्जिद स्थित पुस्तकालय ने कई दुर्लभ किताबों को संरक्षित कर रखा है। चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन से निकलते ही सीधी सड़क जो भीड़ से खचाखच भरे बाजार से होते हुए, सीधे फतेहपुरी मस्जिद पर आकर सपाप्त होती है। इस मस्जिद का निर्माण 1650 में हुआ था। इसे शाहजहां की पत्नी बेगम फतेपुरी ने बनवाया था। मस्जिद के बगल में बने मदरसे में ही फतेहपुरी पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय का निर्माण 1920 के आसपास हुआ था। संकरी सीढ़ियों से होते हुए जब आप पहली मंजिल पर पहुंचते हैं तो वहां एक बड़े से कमरे में कुछ बैठने की सुविधा के साथ ही इतिहास को संजोए हुए यह पुस्तकालय किसी पुराने नवाब की तरह शान से इतराता नजर आता है। यहां पहुंचकर मानो ऐसा लगता है जैसे हम किताबों के माध्यम से इतिहास में ही चले गए हों। वर्तमान में यह पुस्तकालय दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा चलाया जा रहा है।
पुस्तकालय की शुरूआत
फतेहपुरी मस्जिद स्थित मदरसा करीब 100 वर्ष पुराना है, जहां आसपास के क्षेत्र से कई बच्चे पढ़ने आते थे। उन बच्चों को इस्लाम की शिक्षा के साथ देश-विदेश की संस्कृति व साहित्य से परिचय कराने और शिक्षा से जोड़ने के उद्देश्य से यहां पुस्तकालय की शुरूआत की गई थी। 1920 के आसपास मदरसे में पुस्कालय का निर्माण किया गया। जिससे बच्चों को पढ़ाई के लिए अच्छा वातावरण मिल सके। यहां बच्चों के लिए अरबी, उर्दू, फारसी, हिंदी व अंग्रेजी समेत 30 हजार पुस्तकों का विशेष संग्रह है। अब यह पुस्तकालय सभी के लिए निशुल्क है, यहां कोई भी आकर पढ़ सकता है।
शोधाार्थियों के लिए पांडुलिपि का विशेष संग्रह
एक खास वर्ग जो शिक्षा और उसकी महत्ता को समझता है वह आज भी इस तरह के पुस्तकालयों में समय व्यतीत करना पसंद करता है। मोहम्मद महफूज ने बताया कि यहां औरंगजेब की हाथ से लिखी प्रतियां भी हैं। शोधार्थियों के लिए तो यह बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि यहां मूल पांडुलिपि रखी हुई हैं। इसलिए शोधार्थी चाहे किसी भी क्षेत्र का हो वह यहां आकर उन ऐतिहासिक ग्रंथों से महत्वपूर्ण जानकारी हासिल कर सकता है। यह ग्रंथ आज के समय में शायद ही कहीं और मिलेंगे। उन्होंने बताया कि यहां पर उर्दू, फारसी और कुछ अंग्रेजी के अभिलेखीय पाठ उपलब्ध हैं। जिन्हें कभी-कभी पढ़ने इतिहासकार, शोधार्थी आते रहते हैं। इसका रख-रखाव का पूरा जिम्मा वही देखता है। इस समय इसके अध्यक्ष अमानतुल्ला खां हैं, जो ओखला क्षेत्र से विधायक भी हैं। इसकी नींव एक नेक कार्य के लिए रखी गयी थी ताकि बच्चों को शिक्षा का माहौल मिल सके।
इनसाइक्लोपीडिया अॉफ ब्रिटैन्निका का आठवां दुर्लभ एडिशन
मोहम्मद महफूज ने बताया कि यहां पर इनसाइक्लोपीडिया अॉफ ब्रिटैन्निका का आठवां एडिशन भी उपलब्ध है, जो कि दुर्लभ है। दुनिया में इसकी चार-पांच प्रतियां ही हैं जिसमें से एक पुस्तक यहां है। महफूज ने बताया कि शायद दिल्ली में केवल इसी पुस्तकालय में इनसाइक्लोपीडिया अॉफ ब्रिटैन्नी का आठवां एडिशन है।
तीस हजार किताबों का संग्रह
हिंदी, अंग्रेजी साहित्य समेत कई किताबों का भंडार है। इस पुस्तकालय की खासियत इसमें रखी किताबें हैं। पुस्तकालय में शाहजंहा के हाथों से लिखा हुआ ‘कुराने कलिम’ उपलब्ध है। जिसे करीब 350 वर्ष पुराना बताया जाता है। यहां मशहूर शायर अमीर खुसरो के जीवन पर लिखी किताब सवाने उमरी भी मिलेगी। जिसे 1909 में अलामा शिब्ली ओमानी ने लिखी थी। ‘दीवाने गालिब’ अब्दुल रहमान चुगताई द्वारा लिखी गई किताब भी इस पुस्तकालय में उपलब्ध है। सबसे अच्छी बात यह है यहां जो भी पुस्तकें उपलब्ध हैं, वह सभी मूल पांडुलिपियां हैं। यह आपको बहुत कम जगहों पर मिलेंगी। वहीं, कुरान के अंतिम अर्थात तीसवें पारे की व्याख्या उर्दू में ‘तासिरे मजहरी’ जैसी पुस्तकों में की गई है जिसके लेखक मोहम्मद सन्नाउल्ला उस्मानी हैं। यहां ख्वाजा शम्सु दिन ‘मुहम्मद हाफिज शिराजी’ की जीवनी भी मिलेगी। यह ईरान के एक पर्शियन कवि एवं लेखक थे। जिन्होने धार्मिक पाखंड पर भी खूब लिखा है।
इस पुस्तकालय में उर्दू, फारसी, अरबी, अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत आदि कई भाषाओं में करीब 30 हजार पुस्तकें उपलब्ध हैं। इस पुस्तकालय की पहचान एक तरह से इसके साहित्य एवं इतिहास पर लिखी गई कई मूल्यवान पुस्तकों से है। यही इसकी महत्ता को आज भी बनाए हुए है।
यहां कोई भी पढ़ने जा सकता है। यहां प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं है।
खुलने का समय- सुबह साढ़े नौ
बंद होने का समय-शाम साढ़े पांच
पुस्तकालय शुक्रवार व शनिवार बंद रहता है।