चील झपट्टा, नक्की आवे गेम के दीवाने थे दिल्ली के बच्चे

दिल्ली के बच्चों का पसंदीदा खेल सीरीज

चील झपट्टा, किलकिल कांटा या लहरम लहरा भी बड़ा रोचक खेल होता था। इस खेल में बहुत-से बच्चे दो टोलियां बनाकर इधर-उधर छिप जाते थे। दोनों टोलियों एक-दूसरे को अपनी कुछ चीजें पहले से दिखा देते थे और फिर उन्हें घर में इधर-उधर छिपा देते थे। उसके बाद उनकी तलाश शुरू होती थी। ज़्यादा से ज़्यादा चीजें तलाश करने वाली टोली जीत जाती थी। कई जगह चीजें छिपाने की बजाय लड़के खुद ही इधर-उधर छिप जाते हैं और दूसरी टोली के लड़के उन्हें तलाश करते हैं। इस खेल में जीतने वाले लड़के हारने वाले लड़कों के हाथ के पीछे अपने दाएं हाथ की दो उंगलियों से जोर की चांटी भी मारते थे।

बच्चों का एक और पसंदीदा खेल था तालबम या चकर-भिन्नी या चकर फेरी। इसमें बच्चे घेरा बांधकर खड़े हो जाते हैं और एक-दूसरे का हाथ मजबूती से पकड़ लेते हैं। इस घेरे के बीच में एक खिलाड़ी खड़ा होता है। घेरा बनाए हुए बच्चे एक दूसरे को खींचते हुए तेजी से घूमते हैं। घेरे में खड़ा हुआ लड़का घेरे को तोड़कर बाहर निकलने की कोशिश करता है, मगर घेरे वाले लड़के और तेजी से घूमना शुरू कर देते हैं और उसे निकलने से रोकते हैं। अगर वह लड़का घेरा तोड़कर निकलने में कामयाब हो गया तो घेरे वाले लड़के सब हार गए। फिर किसी और लड़के को घेरे में खड़ा कर दिया जाता है। इस तरह यह खेल चलता रहता है। इस खेल में बच्चे घेरे में घूमते हुए बहुत शोर मचाते हैं और कहते रहते हैं-

‘झांए मांएं कौए की बारात आई।’

‘नक्की आवे’ खेल

यह बच्चों का एक पुराना खेल था। जब एक बच्चा दूसरे से कहता है कि एक घड़ी या दो घड़ी की नक्की आवे तो दूसरा लड़का उतनी देर के लिए एक टांग पर खड़ा हो जाता। अगर दाएं पांव की नक्की बदी है तो कहेगा दाएं पांव की नक्की आवे और जो बाएं पांव की बदी है तो उसका नाम लेगा। अगर किसी बच्चे का वक़्त से पहले जमीन पर टिक जाता तो वह हारा हुआ माना जाता। बस इसी तरह खेल चलता रहता।

दिल्ली के मशहूर कथाकार मीर बाकर अली लिखते हैं कि मुगलों के आखिरी बादशाह का मौलाबख्श नाम का हाथी बहुत होशियार और अक्लमंद था। लेकिन एक दिन उसने मस्ती की हालत में अपने हाथीबान को सोता हुआ पाकर, सूंड में लपेट कर उसका एक पांव अपने पांव के नीचे रखकर चीर डाला। फ़ीलबान की बेवा का एक नन्हा-सा बच्चा था। वह पति के शोक में रोती-पीटती आई और उस बच्चे को हाथी के आगे बिठाकर बोली, “मुए मौलाबख़्श इसको भी मार डाल।” मौलाबख़्श ने अपनी सूंड से उस बच्चे को पकड़कर अपनी गर्दन पर बिठा लिया। उस रोज से वह बच्चा जब तक मौलावा के सामने रहता मौलावा जो वह चाहता था, करता था। जब वह बच्चा मौलावा की आंख से ओझल होता तो मौलावा दंगा करना शुरू कर देता।

फीलवान के बच्चे का नाम रहमत अली था। जब यह बच्चा बड़ा हुआ तो उसके हमउम्र बच्चे उससे खेलने आते थे और मीलाबख़्श उनसे खेलता था। इस तरह लड़कों का मौलाबख़्श से याराना हो गया। जहां किसी लड़के ने मौलाबख़्श से कहा कि मौलावख्श नक्की आवे तो मीलावा अपना एक पांव उठा लेता था और वक़्त पूरा होने पर उस लड़के के कहने ही पर ही पांव जमीन पर रखता था। अगर फीलख़ाने का कोई आदमी बच्चों को धमकाकर भगा देता और वे नक्की मांगकर चले जाते तो मौलाबख्श अपना पांव उठाए रखता था। मौलावा को समझाया जाता कि वह बच्चा चला गया, पावें नीचे रख दे, मगर वह किसी की न सुनता। आखिर उसी लड़के को बुलाकर लाया जाता और उसी के कहने से मौलावा पांव जमीन पर रखता।

कौड़ियों से खूब खेलते थे बच्चे

बच्चे कौड़ियों से खूब खेलते थे और उनका एक प्यारा खेल ‘कौड़ी जगन मगन’ या ‘कौड़ी छिपव्वल’ था। बच्चे दो टोलियों में बंटकर अपना-अपना सरदार चुन लेते थे। एक टोली का बच्चा एक कौड़ी उछालता था और दूसरी टोली का बच्चा ‘मांगता” था। अगर उसने ‘सीधी मांगी और कौड़ी उलटी पड़ी तो वह हार गया। अब हारने वाले को जीतने वाले का हर हुक्म मानना है। जीतने वाला उसे अपनी टोली में बड़ी बे-आरामी से बिठाता। कभी उससे कहता-सूरज की तरफ मुंह करके बैठो और कभी कहता कि एक टांग पर खड़े हो जाओ। फिर जीतने वाला लड़का हाथ में कौड़ी लिए घूमता फिरता और किसी एक बच्चे के हाथ में चुपके से थमा देता और फिर टोली के सभी बच्चे मुड़ी बंद कर लेते। अब दूसरी टोली के हारे हुए लड़के को एक निश्चित समय में यह मालूम करना कि कौड़ी किसके हाथ में है। बारी-बारी यह खेल खेला जाता है और बच्चे दिलचस्पी में डूबे हुए और समय-समय के बाद शोर मचाते हुए यह खेल खेलते रहते।

मैदानी खेलों में लड़कों के लोकप्रिय खेल थे-कबड्डी, गुल्ली-डंडा, गेड़ियां, गुच्छी-पाला और कंथा छोटे बच्चे तो यह खेल गलियों में ही खेल लेते थे। हॉकी, फुटबाल और क्रिकेट अंग्रेज़ों के वक़्त के खेल हैं। कबड्डी हमेशा से बड़ा लोकप्रिय खेल रहा। जूतों या कपड़ों को बिछाकर कबड्डी का पाला जमा लेते और हुल-कबड्डी, हुल-कबड्डी का शोर मच जाता। कुछ लड़के यह भी कहते ‘हुल कबड्डी घनतारा, सुल्तान वेग मारा कई लड़कों का संस इतना लंबा होता कि मुश्किल से टूटता।

कबड्डी दो तरह की होती थी छिपौवल और लंबी। छिपौवल में एक तरफ का लड़का ‘कबड्डी कबड्डी’ कहता हुआ दूसरे पाले में घुसता था और सांस टूटने से पहले उसे पकड़ने वालों में से किसी के हाथ या लात मारकर अपने पाले में वापस आ जाता था। जिसके हाथ या टंगड़ी लग जाती वह खेल से बाहर हो जाता। जब किसी टोली के सब लड़के इस तरह निकलकर बैठ जाते तो वह टोली हार जाती। लंबी कबड्डी में कोई पकड़-धकड़ नहीं होती। सिर्फ भागना और प्रतिद्वंदी को छूना होता। प्रतिद्वंदी को छूते ही लड़ा अपने पाले में वापस आ जाता।

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