पुरानी दिल्ली की गलियों में डिब्बानुमा रेडियो और अखबार का सुनहरा दौर

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Old delhi: पुरानी दिल्ली में कभी अखबार और रेडियो का राज था। उन दिनों सार्वजनिक संचार-माध्यम मुख्य रूप से दो ही थे-एक डिब्बानुमा रेडियो और दूसरा अखबार। अखबार ज़्यादातर उर्दू का ही आता था।

शहर में वही शाइस्ता, अहले जबान समझी जाती थी और हिन्दी लिखने-पढ़ने से ज़्यादा बोलने की घरेलू भाषा थी। अंग्रेजी जाननेवाले वयस्क ज्यादातर कायस्थ परिवारों में थे। वे या तो नौकरी-पेशा लोग थे या फिर वकील-मुंशी। पहली स्थिति के लिए अंग्रेजी जानना जरूरी था और दूसरी के लिए उर्दू।

अंग्रेजी का अखबार पढ़ने का चलन हो सकता है पढ़े-लिखे परिवारों में रहा हो पर व्यापारी लाला लोगों के परिवारों में तो प्रायः उर्दू का अखबार ही आता था, जिसे पढ़ने का हक या ज़रूरत परिवार के मुखिया की ही समझी जाती थी। महिलाओं और वयस्क बच्चों का अखबार से कोई रिश्ता जैसे था ही नहीं।

अन्तरराष्ट्रीय खबरों के नाम पर दूसरे विश्वयुद्ध से सम्बन्धित सुर्खियाँ और अन्तर्देशीय खबरों में कोई हादसानुमा खबर, गाहे-बगाहे रुचि का विषय बन जाती थी। एक और क्षेत्र था जिसमें सबकी दिलचस्पी रहती- स्वाधीनता आन्दोलन की गतिविधियां, जिसके प्रमुख आकर्षण थे महात्मा गांधी। इसके समानान्तर आर्य-समाज के सुधारवादी कार्यक्रमों का प्रभाव भी जन-मानस पर काफी था।

चांदनी चौक से जरा हटकर, मोती टॉकीज के पीछे एक भव्य इमारत थी। नाम था ‘दीवान हॉल’ । नीचे की मंज़िल में एक बड़ा हॉल था जिसमें नियमित हवन होते, प्रवचनों का आयोजन किया जाता। आवश्यकता पड़ने पर विधवा-विवाह और शुद्धि के कार्य भी सम्पन्न होते, जिनकी चर्चा भद्र समाज में बड़े आदर-भाव से की जाती थी। इन सब बातों की खबरें मुँह-दर-मुँह बनती- बिगड़ती प्रचारित होती रहती। पुरुष वर्ग में इनका केन्द्र बाज़ार मोहल्ला था। और स्त्रियों की बतकही का सबसे सुरक्षित स्थल मन्दिरों के आँगन-चबूतरे, जहाँ जाने पर परिवार से कोई बाधा आड़े नहीं आती थी, या फिर रिश्तेदारी में खुशी-गम से जुड़े अवसर ।

इन सबके अलावा सूचना-प्रसार का एक और दिलचस्प ज़रिया था-घर का ‘नाई’। ‘घर का’ का मतलब घर से सम्बद्ध। हर बिरादरी के अपने-अपने मोहल्लों के घरों के साथ दो व्यक्ति जुड़े रहते-एक नाई और दूसरा ब्राह्मण। पंडित जी का आगमन तो शादी-ब्याह, जन्म-मरण पर रस्मों की अदायगी के निमित्त होता, पर घर के नाई की स्थिति बड़ी दिलचस्प थी। वह घर का भेदिया, खबरी, केश-कर्तक और पंडित जी की तरह हर रस्म से सम्बद्ध- ‘ऑल इन वन’ लगभग संस्थायत किसी-न-किसी बहाने अपनी उपस्थिति दर्ज किए रहता।

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