फिल्म आग बनाने के लिए कार रखनी पड़ी गिरवी, राज कपूर को नौकर से लेने पड़े पैसे
Old Is Gold: राजकपूर (Raj kapoor) ने 1948 में फिल्म आग (Aag 1948) बनाई थी। इस फिल्म ने उन्हेें जिंदगी का सबक दिया। आग की कहानी एक युवक पर केंद्रित थी। फिल्म बनाते समय राज कपूर के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। खुुद राज कपूर नेे लिखा है कि पिक्चर के मुहूर्त से उसकी रिलीज के दिन तक कड़ा संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने अपनी कार गिरवी रख दी, यहां तक कि अपने पुराने नौकर द्वारका से यूनिट के लिए चाय-पानी और खाने के लिए उधार लिया।
राज कपूर एक जगह लिखते हैं कि मुझे याद है, मेरी मां, मेरे पिता (Prithavi Raj Kapoor) से एक व्यंग्यपूर्ण पंजाबी वाक्यांश का प्रयोग करते हुए कह रही थीं कि तुम थूक में पकौड़े नहीं तल सकते अर्थात बिना साधनों के यह फिल्म कभी भी नहीं बन पाएगी । हालांकि पृथ्वीराज कपूर ने राज कपूर की तरफदारी की। मां से कहा कि “तुम जरा इंतजार करो और देखो, यह लड़का फिल्म बनाएगा। इसके पास वह विश्वास और दृढता है। ”बकौल राज कपूर, मैं उन शब्दों को भूल न सका और आज तक भी नहीं भूला, क्योंकि इस व्यवसाय में यही वह सब है, जो आपके लिए आवश्यक है। ‘आग’ बनाने के वक्त ऐसा समय भी आया, जब मैं अपनी फिल्म को कनस्तर में भरकर एक वितरक से दूसरे वितरक के कार्यालय में लेकर गया, इस उम्मीद में कि मुझे कोई खरीदार मिल जाए और उस दिन तक मुझे कोई नहीं मिला, जब तक मैंने वितरकों के छोटे समूह को अपनी आधी बनी फिल्म के ‘ रशेज’ दिखाने के लिए व्यवस्था कर ली। निर्णय आया, “यह फिल्म किसी भी क्षेत्र में नहीं चलेगी । ” एक वितरक तो सो ही गया। वह इतना उकता गया था, लेकिन एक व्यक्ति था, जिसने रशेज देखना कभी पसंद ही नहीं किया। उसने मुझे कहा, “मैं पिक्चर को सहारा नहीं देता, मैं आदमी को सहारा देता हूं। यह फिल्म चलती है या नहीं, मुझे यह फिल्म हर कीमत पर चाहिए,” उसने एक चिंतित और महत्त्वपूर्ण फिल्म रचनाकार का हाथ पकड़कर हिलाया और चांदी का एक रुपए का एक अकेला सिक्का जोर से मेरी हथेली पर दबा दिया और इस तरह से सौदा पक्का हो गया।
उस दिन के बाद मेरी बनाई हर पिक्चर निश्चित रूप से मेरे उस वितरक के पास गई। जिसके पास अन्य किसी व्यक्ति से काफी पहले साहस और दूर दृष्टि, दोनों थे कि वह एक अनजाने युवा की सहायता करे, जो फिल्मों को अपने जीवनयापन का साधन बनाने के जोखिमपूर्ण समंदर की कगार पर खड़ा था। यह फिल्म उन दिनों 16 सप्ताह तक चली। यह पूर्ण रूप से एक अलग फिल्म थी, जो धमाके के साथ आई। इसने राज कपूर की एक निर्माता-निर्देशक के रूप में पहचान स्थापित की। इसी फिल्म से प्रसिद्ध आर.के. फिल्म्स का शुभारंभ हुआ।