प्रेमानंद महाराज ने आचरण की पवित्रता को बताया अतिमहत्वपूर्ण
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद महाराज ने अपने उपदेश में कहा कि आज हमारे समाज में आचरण की महत्ता कम होती चली जा रही नहीं होती चली जा रही संयम पवित्रता आचरण इनका बहुत बहुत ह्रास हो रहा है। आप शरीर पवित्र रख के देखो, एक महीना झूठा मुंह मत रखना, शरीर पवित्र रखो और ब्रह्मचर्य रह के देखो।
एक महीने में आपको ऐसा लगे लगेगा आप देवता है। एक महीने में लगने लगेगा। एक एक कर दिव्यता आने लगेगी। अभी लोग गंदे आचरण में, गंदे दृश्यों में, गंदे चिंतन में, गंदे आहार में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इस कारण एक पशुता सी आती चली जा रही है।
बुद्धि राक्षसी होती चली जा रही है। नौजवानों को ही देखिए, नशे का इंजेक्शन लगा रहे हैं। हम कैसी कैसी खबरें सुनते हैं। ऐसा लगता है कि पूरा राक्षस हो चुका है इंसान। अपनी वासना की तृप्ति के लिए… अपनी वासना की तो राक्षस है।
एक मनुष्य जब धर्म से भ्रष्ट हो गया तो बिना सिंग और बिना बड़े-बड़े दांतों वाला राक्षस बन जाता है। तुम्हारा शरीर जैसे तुम्हें प्रिय है। वैसे सबको प्रिय है। तुम केवल अपनी वासना के लिए कर डाला। तो ये राक्षस भाव आचरण ही है। देखो अपवित्रता ने कहां तक पहुंचा दिया। एक आचरण ने उसकी तो हिंसा कर ही दी और अपनी भी हिंसा कर दी। अपना भी जीवन बर्बाद कर दिया। अब या तो आजीवन कारावास या तो फांसी की सजा।
यह मनुष्य शरीर भी व्यर्थ जा रही है। भगवान का आश्रय लेकर शास्त्रों का स्वाध्याय, संतों का संग, नाम जप ये जरूर करना चाहिए अगर नहीं करोगे तो ये पशु पिंड नहीं छोड़ेगी। ये कोई ना कोई ऐसी गलती करा देगी। मान लो अगर पशुता बाहर नहीं निकली तो आप अंदर ही अंदर जलेंगे। अगर भयानक पाप बन गया तो आप सह नहीं पाओगे। आपका मन आपको दंड देना शुरू कर देगा। फिर लगेगा यार अपना ही शरीर नष्ट कर ले। ऐसे ऐसे विचार आने लगते हैं।

जब हमारा पाप कर्म बन जाता है। और कोई उसका दंड नहीं मिलता तो हमको डिप्रेशन में उतारता है। यह दंड है। हर समय भयभीत रहना, व्यर्थ की कल्पना करना, व्यर्थ की चिंता कर करना, ये उन्हीं पापों का फल है। जो ओपन नहीं हुए जिनका कोई दंड नहीं मिला इसलिए हमारी प्रार्थना है। कि ब्रह्म ज्ञान भगवत प्रेम ये बहुत ऊंचाई पर रखा हुआ है। ये इतनी आसानी से नहीं मिलते कि तोड़ो और खा लो। बहुत ऊंचाई पर है। उसके लिए आपको चरित्र पवित्र रखना पड़ेगा, नाम जप करना होगा, दूसरों का उपकार करना हो, ये देह मिली है। गली चलते अगर किसी पशु पक्षी की भी सेवा करनी पड़े तो हम उसके लिए भी राजी रहे, तब जाकर हमारा हृदय पवित्र होगा फिर हमको भगवान गुरुदेव की कृपा से यह जो तत्व बोध है। ये तब होता है।
यह तत्व बोध ज्ञान, पढ़ने से नहीं आता है। इसीलिए उपनिषद में लिखा है। नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन बहुत प्रवचन करने वाले को तत्व बोध नहीं होता बहुत प्रवचन सुनने वाले को तत्व बोध नहीं होता बहुत बुद्धिमान को तत्व बोध नहीं होता। सवाल यह उठता है कि फिर किसको होता है।
बोले आत्मा जिसे वर्ण कर लेती है। आत्मा स्वरूप गुरुदेव भगवान मोक्ष मूलम गुरु कृपा गुरुदेव भगवान उनकी आज्ञा में अपने जीवन को अर्पित कर दिया और उनकी कृपा से सब ज्ञान विज्ञान आ समझ रहे बच्चा बार-बार हमको मन परास्त करता है। बार-बार हमसे गलतियां होती है।
तो अब हमको छोड़ना नहीं वो छोड़ो कि पहले होता था अब नहीं होता फिर पकड़ो हम कह रहे हैं ना पकड़ो राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा भगवान पिता की तरह हैं वो हमारी हजारों गलतियां माफ कर देते हैं फिर चलो गिर गए तो फिर खड़े हुए फिर चल दिए अब शुरू करो नाम जप ठीक है। अंदर ही अंदर अंदर अंदर हां ये जरूर कि नाम जप करते हुए किसी दूसरे को हल्का मत समझो किसी को नीच मत समझो अपने को अभिमान में मत लाओ अच्छा आदमी देखो गंदा आदमी बंद हो जाएगा भजन क्योंकि सब में भगवान बैठे हुए हैं नाटक मंच पर वही बहुत रोल कर रहे हैं अब ये ना समझ पाओ तो इतना तो समझ लो कि सब में भगवान है।