1857 की क्रांति: दिल्ली में क्रांतिकारी और अंग्रेजी फौजें आमने सामने थी। रिज पर अंग्रेज कब्जा जमाए बैठे थे जबकि लाल किले में विद्रोही सैनिक थे। जुलाई गुज़रता गया, बारिशें तेज हो गई, और अंग्रेजों का मोर्चा और सुरक्षा व्यवस्था वक़्त के साथ ज़्यादा सुव्यवस्थित हो गया लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब अंग्रेज क्रांतिकारियों की गोलियों से ज्यादा हैजे से मर रहे थे।
पादरी रॉटन का नियम था कि वह कैंप के अस्पताल के दो हैजा वार्ड में जाता था। उनका कहना है, “उन दोनों रोगशालाओं में जाने के लिए इंसान को बड़ी हिम्मत चाहिए थी। मरीज पूरे वक़्त उल्टी करते रहते, जिसकी वजह से हर जगह बदबू फैली थी और मक्खियां इस कदर थीं कि कभी मुंह पर बैठतीं और कभी शर्ट के खुले भाग के रास्ते घुसकर पीठ पर रेंगतीं। और जब मैं मरते आदमियों को बाइबिल पढ़कर सुना रहा होता, तो अक्सर मेरे हलक में घुस जातीं।
अब मैं जब भी अपनी बाइबिल खोलता हूं जिस पर उस महामारी की वजह से जगह-जगह धब्बे लगे हुए हैं, तो मुझे वह सब याद आ जाता है जो मैंने उस चारदीवारी में देखा था। उस अस्पताल में यह घातक रोग इस बुरी तरह फैला था और चारों तरफ इतनी मौतें हो रही थीं कि मैं अपना फर्ज सिर्फ इस तरह अदा कर सकता था कि बीचोंबीच खड़ा हो जाऊं और बजाय कुशन के कुर्सी पर घुटने टेककर सब मरीजों के लिए इकट्ठी दुआ करूं। और फिर बाद में बाइबिल से कोई उचित भाग पढ़कर लोगों को सुनाऊं।”
5 जुलाई को, एक और जनरल हैजा का शिकार हो गया। मई में जनरल एसन की करनाल में इससे मौत हो चुकी थी और अब उसके बाद आने वाला जनरल बरनार्ड भी मर गया। अगर जनरल एंसन और जनरल बरनार्ड दोनों फौज का नेतृत्व करने के लिए फिट नहीं थे, तो तीसरा बूढ़ा कमांडर, जनरल सर थॉमस रीड, सबसे बदतर था। जैसा कि विल्सन का ख्याल था, कि वह ‘नेतृत्व करने से ज़्यादा मरीजों की कुर्सी पर बैठने के लायक थे।’ बाकी लोगों ने तो और भी स्पष्ट रूप से कहा। जैसा कि ईस्ट लोथियान के स्कॉटिश लेफ्टिनेंट थॉमस कैडेल ने कहा, ‘मेरी समझ में नहीं आता कि हम किस तरह दिल्ली में दाखिल हो सकेंगे। जबकि हमारे सिरों पर एक से बढ़कर एक घामड़ अफ्सर बैठा है।
जिस दिन रीड ने कमान संभाली, उस दिन हर्वी ग्रेटहैड की भविष्यवाणी के मुताबिक वह ‘कुछ भी करने के लिए बहुत बीमार था। एक हफ्ते बाद भी वह बस अपने खेमे में आराम कर रहा था। ग्रेटहैंड ने अपनी बीवी को लिखा, “हमें जनरल रीड न तो दिखाई देते हैं और ना ही उनकी आवाज़ सुनाई देती है। काश मैं यह बात उस घोड़े के लिए कह सकता, जो उन्होंने हाल ही में खरीदा है और जो पिछले दो घंटे से लगातार ज़ोर-ज़ोर से हिनहिना रहा है।” जनरल रीड ने बहुत जल्दी थोड़ी बहुत जद्दोजेहद भी छोड़ दी और रिटायर होकर शिमला चला गया। वह 17 जून को कमांड लेने के दो हफ्ते बाद ही जख्मी और बीमार लोगों के एक कारवां के साथ रवाना हो गया।
उसका आखरी काम यह था कि उसने घुड़सवार सिपाहियों की दो रेजिमेंटों को जो बगावत करने वाली थीं, बर्खास्त कर दिया और फिर कमांड जनरल विल्सन को दे दी।