1857 की क्रांति: अंग्रेज शहर में दाखिल हो गए थे। बागी सिपाही उनका मुकाबला कर रहे थे। कमांडर मिर्जा मुगल ने शारे शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि सब शहरियों को घरों से बाहर निकलकर दिल्ली की सुरक्षा के लिए आना चाहिए।

बागी भी सड़कों पर घूम-घूमकर आवाज दे रहे थे कि “शहर के लोगो, तुममें से जो भी अपने मजहब पर शहीद होना चाहे वह हमारे साथ आए…” बहुत से लोग जमा हो गए और उन्होंने कसम खाई कि वह भी लड़ाई में हिस्सा लेंगे और अगर जरूरी हुआ तो जान दे देंगे लेकिन पीछे कभी नहीं हटेंगे।

10 सितंबर को सब सूबेदारों को आदेश भेजा गया कि वह आखरी लड़ाई के लिए तैयार हो जाएं।

मिर्जा मुगल ने लिखाः

“आलीजाह शहंशाह का आदेश है कि हिंदुओं और मुसलमानों को गाय और सूअर के मसलों को याद रखना चाहिए, और अगर तुम लोग अपने धर्म और विश्वास पर कायम रहना चाहते हो, आगे बढ़ना चाहते हो और पुण्य कमाना चाहते हो, तो हम देखना चाहते हैं कि तुम अपनी पैदल, घुड़सवार और तोपची फौज को तैयार करके कश्मीरी दरवाजा पहुंचो ताकि हमारे दुश्मनों को तबाह कर दो। इसमें अब कोई देर नहीं होनी चाहिए।

तुम सबको ईश्वर के आदेश पर चलना चाहिए। तुम लोगों ने धर्म और विश्वास के लिए जंग की है, तो अब इस पर कायम रहो। हर अफसर को चाहिए कि वह अपनी पलटन और घुड़सवार सिपाहियों की कतार बनाए और उनको आदेश दे कि वह लड़ाई के लिए तैयार रहें। अगर कोई अफसर या सिपाही बहाना बनाए, तो फौरन उसकी रिपोर्ट बादशाह सलामत को भेजी जाए।

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