1857 की क्रांति: दिल्ली में जंग अब निर्णायक मुकाम पर पहुंच गई थी। सिपाही जी जान लगाकर अंग्रेजों का मुकाबला कर रहे थे। जैसे-जैसे अंग्रेजों की घेराबंदी की तोपें नजदीक आती गई और 8 सितंबर को उन्होंने शहर की दीवारों पर हमला करना शुरू कर दिया।

बागी सिपाहियों ने एकजुट होकर अंग्रेजों का मुकाबला करने की ठानी। इसका सेहरा ज्यादातर मिर्जा मुगल के सिर था, जिनके दफ्तर से शहर की सुरक्षा के लिए आदेशों की झड़ी लग गई। और फिर उन्होंने अपने पिता की तरफ से एक आखरी अपील की कि सब लोगों को एकजुट हो जाना चाहिए।

6 सितंबर को उन्होंने लिखा कि ‘यह एक मजहबी जंग है’ और आदेश दिया कि इन शब्दों का नक्कारे की चोट के साथ सारे शहर में ऐलान हो। ‘यह लड़ाई मजहब के नाम पर लड़ी जा रही है, इसलिए इस शाही शहर और इसके इर्द-गिर्द रहने वाले सभी हिंदुओं और मुसलमानों का फर्ज है कि अपने विश्वासों कर दें’। धर्मों को मजबूती से पकड़े रहें।

अब अंग्रेजों की तोपें पूरी ताकत से शहर की उत्तरी दीवारों पर गोलाबारी कर रही थीं। 12 सितंबर तक उनकी पूरी साठ तोपें एक के बाद एक निरंतर 24 घंटे गोलाबारी कर रही थीं।

चार्ल्स ग्रिफिथ्स ने लिखा है कि “शोर इतना था कि कान फटे जाते थे। रात दिन तोप के गोलों की आवाज़ आती थी।”

शहर में और भी मुसीबत थीः जहीर देहलवी ने लिखा है कि “रिज पर लगी छोटी-बड़ी तोपें बराबर गोले बरसा रही थीं। अल्लाह जाने वह कितनी थीं। शहर की सारी दीवारें और दरवाजे कांप रहे थे और आसमान से आग बरस रही थी। ऐसा लगता था कि जमीन पर नर्क का नमूना बन गया है।”

लेकिन अंग्रेजों को यह मालूम नहीं था कि दीवारों के दूसरी तरफ मिर्जा मुग़ल ने बहुत तफ्सील से मोर्चाबंदी और सड़कों पर रुकावटें बनवानी शुरू कर दी हैं, जिसमें कश्मीरी दरवाज़े के सामने एक दमदमा या मिट्टी का एक किला भी था, क्योंकि उन्हें अहसास था कि जब अंग्रेज दीवारों के अंदर घुस आएंगे, तो उनकी फौज उससे कहीं ज़्यादा खतरे में होगी जितनी अभी वह रिज के पर बनाई हुई अभेद्य दीवारों में है।

इसका मकसद यह था कि अंग्रेजों को प्रोत्साहित किया जाए कि वह अपनी सुरक्षित जगह छोड़कर शहर के अंदर आएं, जहां की सड़कों पर उनकी रणनीति काम नहीं आएगी क्योंकि वहां बारूद से भरी तोपें और छिपे हुए निशानेबाज उनके लिए तैयार होंगे और उनका इंतज़ार कर रहे होंगे। अंग्रेजों ने रिज और शहर की दीवारों के बीच की ज़मीन पर जरूर आसानी से कब्ज़ा कर लिया था, लेकिन जब वह बिल्कुल शहर की दीवारों के पास आ गए तो बागी फौज ने पूरी शिद्दत से उन पर हमला कर दिया। अब भी जो लोग बाहर की दीवारों के पास खुले मैदान में तोपों के चबूतरे बनाने आते, वह क्रांतिकारियों  के लिए खुला निशाना होते जो जून से अब तक उनको हासिल नहीं था।

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