दोस्तों, आज गाइड फिल्म से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हैं। एक दिन गोल्डी, सचिन दा और शैलेंद्र एक गीत की सिचुएशन के बारे में चर्चा कर रहे थे। नायिका रोजी से विवाह के बाद उसके पति मार्को ने रोज़ी के प्रिय गीत संगीत और नृत्य उसके जीवन से निकाल बाहर किए थे। पति से अलग होने के बाद सब बंधन तोड़ कर वह फिर से घुंघरू बांध लेती है। खुशी से नाचने-गाने लगती है। घुंघरू उसके स्वतंत्र जीवन के प्रतीक हैं। इस सिचुएशन पर शैलेंद्र ने पहली पंक्ति लिखी…

‘आज फिर जीने की तमन्ना है।

आज फिर मरने का इरादा है’

पर तीन घंटे बीत जाने पर भी मुखड़े से आगे गाड़ी बढ़ ही नहीं पा रही थी। “आज मुझे लगता है मैं आगे नहीं लिख पाऊंगा। मैं अब घर जाता हूं।” ऐसा कह कर शैलेंद्र घर चले गए।

शैलेंद्र यदि गीत लिखना शुरू करते तो फटाफट लिखते चले जाते। गोल्डी ने सोचा कि शैलेंद्र आज नहीं लिख पाए, तो कल आते समय मुखड़े के साथ-साथ अंतरा भी लिख कर ले आएंगे। दूसरे दिन न शैलेंद्र आए, न कोई संदेश भेजा। तीसरे दिन भी सब उनका इंतज़ार करते रहे। शायद कोई समस्या होगी, इसलिए शैलेंद्र नहीं आ पाए होंगे, यह सोचकर गोल्डी ने दो दिन और उनका इंतज़ार किया, पर शैलेंद्र नहीं आए, न उनका फ़ोन आया। आखिर छठे दिन सुबह गोल्डी शैलेंद्र के घर पहुंचे । सौभाग्य से शैलेंद्र घर ही मिल गए।

“क्या बात है शैलेंद्र जी? तबीयत तो ठीक है?” गोल्डी ने अपनेपन से पूछताछ की। “नहीं। तबीयत तो ठीक है, पर मैं आ नहीं सका।”

गोल्डी जी ने आगे पूछा—“गीत पूरा हो गया ?” इस पर शैलेंद्र ने जवाब दिया, नहीं। गोल्डी ने कहा कि “शैलेंद्र जी समय बर्बाद हो रहा है। मैं फिल्म की शूटिंग जल्द से जल्द शुरू करना चाहता हूं।

शैलेंद्र जी इमोशनल होते हुए बोले—“गोल्डी, मैं क्या करूं? कितना भी सोचूँ, मैं आगे गीत लिख ही नहीं पा रहा… आज फिर जीने की तमन्ना है… आज फिर मरने का इरादा है… ये कुछ उलट-पुलट हो रहा है। शायद इसीलिए आगे की पंक्तियां नहीं सूझ रहीं” शैलेंद्र बोले। “तो फिर आप ऐसा लिखिए… या जीने की तमन्ना है… या मरने का इरादा है। अगर कोई पूछे कि जीने की तमन्ना भी है और मरने का इरादा भी है ऐसा क्यों? तो मुखड़े के प्रश्न का उत्तर अंतरे में होगा। और मुखड़े में हम यह बताएंगे कि उसे ऐसा क्यों लग रहा है कि आज फिर जीने की तमन्ना है। और आज फिर मरने का इरादा है।” गोल्डी की यह बात सुनते ही शैलेंद्र झट से बोले, ‘काँटों से खींच के ये आंचल

तोड़ के बंधन बांधी पायल

कोई न रोको दिल की उड़ान को

दिल वो चला

आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है’ पिछले पांच-छह दिन से ख़ामोश प्रतिभा अचानक जाग उठी, शलेंद्र ने दो ही मिनट में मुखड़े की रचना कर दी।

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