swami shailendra saraswati
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क्या भूत-प्रेत वास्तव में होते हैं? प्राचीन ज्ञान और आधुनिक चेतना का संगम

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ओशो परंपरा के एक प्रमुख वक्ता और आध्यात्मिक मार्गदर्शक, ने भूत-प्रेत की अवधारणा और प्राचीन ग्रंथों में उनके वर्णन को लेकर एक गहन और अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। जब एक साधक ने उनसे पूछा कि क्या भूत-प्रेत सच में होते हैं—जैसा कि ग्रंथों में कहा गया है, लेकिन जिसे आज तक किसी ने देखा नहीं—तो स्वामी जी ने एक ऐसा उत्तर दिया जो प्राचीन ऋषियों के अनुभव को आज के युग की सच्चाई के साथ जोड़ता है। यह लेख स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती के इस अद्भुत और तार्किक विश्लेषण को विस्तार से प्रस्तुत करता है, साथ ही ध्यान की एक विशेष विधि, चक्रवाक ध्यान, पर उनके मार्गदर्शन को भी उजागर करता है।

1. भूत-प्रेत की अवधारणा: प्राचीन सत्य बनाम आधुनिक जीवन

स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती एक बहुत ही सूक्ष्म और तार्किक उत्तर देते हैं जो प्राचीन ऋषियों और आधुनिक व्यक्ति दोनों की सत्यता को स्वीकार करता है:

दो सच्चाइयाँ: ग्रंथ और अनुभव

स्वामी जी कहते हैं कि यह एक बड़ी मुश्किल का सवाल है, क्योंकि यदि वह प्राचीन ग्रंथों को गलत कहें तो लोग नाराज हो जाएंगे, और यदि साधक के अनुभव को गलत कहें तो वह भी नाराज होगा। इसलिए, वह दोनों को सही मानते हैं:

प्राचीन ग्रंथ सही हैं: ऋषि-मुनियों ने जो लिखा कि भूत-प्रेत होते हैं, वह उस ज़माने की बात थी, और वह सच था।

साधक का अनुभव सही है: आज तक किसी ने भूत-प्रेत नहीं देखे, यह भी बिल्कुल ठीक है।

जनसंख्या का अद्भुत तर्क (The Population Logic)

स्वामी जी इस विरोधाभास को सुलझाने के लिए एक अद्वितीय, तार्किक और आध्यात्मिक कारण बताते हैं, जो आधुनिक युग से जुड़ा है: जनसंख्या वृद्धि (Population Explosion)।

उनका तर्क है:

“पहले, जिनको जन्म का अवसर नहीं मिलता था, वे भूत-प्रेत, जिन्न, चुड़ैल इत्यादि हो जाते थे। आजकल तो मौका ही मौका है (जनसंख्या वृद्धि के कारण), तो कहीं कोई भूत-प्रेत बचे ही नहीं, सब जन्म ले चुके हैं।”

अर्थात, प्राचीन समय में आत्माओं को शरीर धारण करने के अवसर कम मिलते थे, जिस कारण वे ‘अशरीरी’ या भूत-प्रेत के रूप में भटकती थीं। लेकिन वर्तमान में, अत्यधिक जनसंख्या के कारण हर आत्मा को जन्म का अवसर मिल रहा है, इसलिए बिना शरीर के भटकने वाली अशरीरी आत्माओं की संख्या लगभग शून्य हो गई है।

आज के भूत-प्रेतकहाँ हैं? (The Modern Ghosts)

स्वामी जी एक गहरी व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए बताते हैं कि यदि आज आपको भूत-प्रेत देखने हों, तो आपको मनुष्य जाति में ही देखना होगा। उनके अनुसार, ‘बिना शरीर के रहने की कोई आवश्यकता नहीं’ क्योंकि आज के दौर के असली ‘भूत-प्रेत’ इन इंसानी शरीरों में ही वास करते हैं:

  • राजनेताओं में
  • धर्म गुरुओं और ठेकेदारों में
  • आतंकवादियों में
  • युद्धों में

इनके कर्म, विचार और ऊर्जा ही आज के युग के सबसे बड़े भूत-प्रेत हैं, जो मनुष्यता को नष्ट कर रहे हैं। इस प्रकार, स्वामी जी ने भूत-प्रेत की अवधारणा को अंधविश्वास के दायरे से निकालकर एक सामाजिक और आध्यात्मिक चेतना के विषय में बदल दिया।

2. ओशो का चक्रवाक ध्यान: एक अद्भुत आध्यात्मिक विधि

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स्वामी जी साधक के एक अन्य महत्वपूर्ण अनुभव पर मार्गदर्शन करते हैं, जो ध्यान की एक विशेष विधि चक्रवाक ध्यान (Chakravak Dhyan) से जुड़ा है।

 चक्रवाक ध्यान का उद्गम

यह एक अद्भुत विधि है जिसे गौतम बुद्ध ने अपने भिक्षुओं के लिए खोजा था। बुद्ध के भिक्षुओं को भिक्षा मांगने के लिए लंबी दूरी तक पैदल चलना पड़ता था। जब वे ध्यान के लिए समय न मिल पाने की शिकायत करते, तो बुद्ध ने कहा:

चलने को ही ध्यान बना लो। होशपूर्वक, सभारपूर्वक चलो।”

यही चक्रवाक ध्यान है, जिसका अर्थ है चलते हुए होश को बनाए रखना।

 हाथ जोड़ने का रहस्य: आध्यात्मिक सर्किट

साधक ने बताया कि चलते हुए चक्रवाक ध्यान करते समय, जब वह सहज रूप से अपने दोनों हाथों को आपस में जोड़ लेता है, तो शरीर अचानक ‘गायब’ (निराधार) सा हो जाता है और वह एक गहरे आनंद और विस्मय में डूब जाता है। लेकिन जैसे ही हाथ छूटते हैं, वह अनुभव कम हो जाता है।

स्वामी जी इसे एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक प्रक्रिया का हिस्सा बताते हुए हाथ जोड़कर ही ध्यान करने की सलाह देते हैं:

  1. Bio-Electricity: “हमारे भीतर भी एक प्रकार की Bio-Electricity है।”
  2. सर्किट पूरा होना: जब आपके हाथ जुड़ते हैं, तो यह केवल शारीरिक रूप से जुड़ना नहीं है, बल्कि भीतर एक प्रकार का विद्युत सर्किट (Electrical Circuit) पूरा हो जाता है।
  3. ऊर्जा का प्रवाह: यह सर्किट बनने से ऊर्जा का प्रवाह केंद्र की ओर होने लगता है, जिससे साधक ‘निराधार’ होने की, यानी शरीर के बोध से मुक्त होने की, अनुभूति करता है।
  4. पूर्णता: यह प्रक्रिया सुखासन या पद्मासन में और भी अच्छे से होती है, जब पैर भी एक-दूसरे से मिले होते हैं और हाथ भी एक-दूसरे पर रखे होते हैं, जिससे एक कंप्लीट सर्किट बन जाता है।

यह हाथ जोड़ने की मुद्रा वास्तव में एक सहज ध्यान-मुद्रा है, जो आंतरिक शांति, संतुलन और निर्भार अनुभूति (weightlessness) को गहराती है।

3. विस्मरण की समस्या: मूर्छा को तोड़ने का उपाय

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साधक ने अंत में एक व्यावहारिक समस्या बताई कि ध्यान की अवस्था (स्मरण/होश) से आगे बढ़ने में विस्मरण (भूलने की पुरानी आदत) बाधा बन जाती है।

स्वामी जी का मार्गदर्शन:

  • पुरानी आदत: स्वामी जी इसे स्वीकार करते हैं कि 24 घंटे होश में रहना अचानक संभव नहीं है, क्योंकि यह “जन्मों-जन्मों की आदत है मूर्छा की।”
  • स्वीकार और धन्यवाद: वह कहते हैं कि घबराने की ज़रूरत नहीं, यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसे स्वीकार करें और इसके प्रति धन्यवाद का भाव रखें।
  • सरल सूत्र: “जब याद आए, वहां से चल साथ दिया।”
  • होश का निरंतर अभ्यास: उस समय को मत गंवाएं जब भूलने की आदत बीच में आ जाए। जब याद आ जाए, तो पुनः होश में आ जाना। नहाते समय, भोजन करते समय, चलते हुए—हर साधारण कार्य को स्मरण पूर्वक (Mindfulness) और सजगता (Awareness) सहित करना ही इसका समाधान है।

 जीवन ही ध्यान है (Life is Meditation)

स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती का यह प्रवचन केवल भूत-प्रेत या ध्यान की विधि पर मार्गदर्शन नहीं है, बल्कि जीवन को होशपूर्वक (Mindfully) जीने का एक सूत्र है। उन्होंने सिखाया कि:

  • भूत-प्रेत का डर छोड़ो, क्योंकि आज के सबसे बड़े खतरे हमारे समाज और मन में छिपे हैं।
  • चक्रवाक ध्यान जैसी सरल विधियों से चलते-फिरते जीवन को एक आध्यात्मिक प्रक्रिया में बदला जा सकता है।
  • हाथ जोड़ना मात्र अभिवादन नहीं, बल्कि हमारे शरीर में बायो-इलेक्ट्रिकल सर्किट को पूर्ण करके गहरे ध्यान की अवस्था में प्रवेश करने का एक सहज और सुंदर माध्यम है।

आपका जीवन एक माला बन सकता है, बशर्ते आप हर छोटे कार्य में होश का धागा पिरो दें।

Q&A (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न (Question)उत्तर (Answer)
Q1. स्वामी जी के अनुसार भूत-प्रेत क्यों नहीं दिखते?बढ़ती जनसंख्या के कारण, अशरीरी आत्माओं को अब शरीर धारण करने का अवसर आसानी से मिल जाता है, इसलिए बिना शरीर के भटकने वाली आत्माएं (भूत-प्रेत) लगभग समाप्त हो गई हैं।
Q2. स्वामी जी ने आज के भूत-प्रेतकिसे बताया?राजनेता, धर्म के ठेकेदार, आतंकवादी और युद्धखोर जैसी मनुष्य जाति की नकारात्मक प्रवृत्तियों और कर्मों को, जो मनुष्यता को नुकसान पहुंचाते हैं।
Q3. ‘चक्रवाक ध्यानक्या है?यह गौतम बुद्ध द्वारा खोजी गई ध्यान की एक विधि है, जिसमें चलते हुए पूरी सजगता और होश (Mindfulness) को बनाए रखा जाता है।
Q4. ध्यान करते समय हाथ जोड़ने से क्या होता है?स्वामी जी के अनुसार, दोनों हाथों को जोड़ने से शरीर के भीतर की Bio-Electricity का एक आध्यात्मिक सर्किट पूरा हो जाता है, जिससे ऊर्जा अंदर की ओर केंद्रित होती है और साधक निर्भार (Weightless) आनंद की अनुभूति करता है।
Q5. विस्मरण (भूलने) की आदत को कैसे तोड़ें?जब भी याद आए, वहीं से होशपूर्वक अपना कार्य शुरू कर दें। यह स्वीकार करें कि मूर्छा की यह आदत जन्मों-जन्मों की है और इसे धीरे-धीरे माइन्डफुलनेस के अभ्यास से तोड़ा जा सकता है।
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