स्वामी विवेकानंद: भारतीय संस्कृति के सच्चे ध्वजवाहक
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
स्वामी विवेकानंद एक ऐसा नाम है जिसे किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने पश्चिमी दुनिया के समक्ष हिंदू धर्म का वास्तविक स्वरूप प्रस्तुत किया। 1893 के शिकागो धर्म संसद में उनके प्रभावशाली भाषण ने उन्हें एक अज्ञात साधु से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्ति बना दिया। उनके जन्मदिवस 12 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य व्यक्तिगत मोक्ष और विश्व कल्याण था। उनकी शिक्षाओं का संकलन “द कम्प्लीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानंद” में किया गया है, जिसमें उनके व्याख्यान, निबंध, पत्राचार और कविताएं शामिल हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता के एक समृद्ध बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धर्मपरायण और गुणवान महिला थीं। बचपन में ही नरेंद्रनाथ (स्वामी विवेकानंद का बाल्यकालीन नाम) ने अपनी प्रतिभा और योग साधना के प्रति झुकाव प्रदर्शित किया।
उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से पढ़ाई की, जहां उन्होंने पश्चिमी इतिहास और दर्शन का गहन अध्ययन किया। इस दौरान उनका संपर्क ब्रह्म समाज से हुआ, जो बाल विवाह और अशिक्षा समाप्त करने तथा महिलाओं और निम्न वर्गों के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत था।
श्री रामकृष्ण से भेंट
जब नरेंद्रनाथ एक युवा थे, तब उन्हें गहरे आध्यात्मिक संकट का सामना करना पड़ा और वे ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न उठाने लगे। पहली बार उन्होंने अपने कॉलेज के एक शिक्षक से श्री रामकृष्ण के बारे में सुना। नवंबर 1881 में उन्होंने दक्षिणेश्वर काली मंदिर में श्री रामकृष्ण से भेंट की और सीधे पूछा,
“महाशय, क्या आपने ईश्वर को देखा है?”
श्री रामकृष्ण ने उत्तर दिया,
“हाँ, मैंने देखा है। और मेरी ईश्वर के प्रति धारणा इतनी स्पष्ट है जितनी कि आपकी।”
इस मुलाकात ने नरेंद्रनाथ के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। श्री रामकृष्ण की स्नेहपूर्ण आत्मीयता ने उनके संदेहों को दूर कर दिया और वे उनके शिष्य बन गए।
आध्यात्मिक जागरण और सन्यास की ओर अग्रसर
1884 में पिता के निधन के बाद नरेंद्रनाथ को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए उन्होंने श्री रामकृष्ण से देवी से प्रार्थना करने का अनुरोध किया। लेकिन जब वे मंदिर में गए, तो उन्होंने “विवेक” (अंतरात्मा) और “वैराग्य” (त्याग) की प्रार्थना की।
1886 में श्री रामकृष्ण का देहांत हो गया। उनके 15 शिष्यों ने मिलकर बारानगर में एक मठ की स्थापना की। 1887 में नरेंद्रनाथ ने सन्यास लिया और “विवेकानंद” नाम धारण किया, जिसका अर्थ है “ज्ञान का आनंद”।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 को कोलकाता के बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। मिशन का उद्देश्य कर्म योग के सिद्धांतों पर आधारित था और इसका मुख्य लक्ष्य गरीब, पीड़ित और समस्याग्रस्त लोगों की सेवा करना था। इस मिशन के तहत स्कूल, विश्वविद्यालय और अस्पताल स्थापित किए गए।
शिकागो धर्म संसद और अंतरराष्ट्रीय पहचान
1893 में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने अपने प्रसिद्ध संबोधन, “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों,” से पूरे विश्व का ध्यान खींचा। उनके विचारों ने पश्चिमी देशों को भारतीय संस्कृति और वेदांत के प्रति आकर्षित किया।
स्वामी विवेकानंद के प्रमुख विचार और शिक्षाएं
- धर्म और विज्ञान का संगम: उन्होंने कहा कि धर्म और विज्ञान विरोधाभासी नहीं, बल्कि पूरक हैं।
- युवा शक्ति पर विश्वास: उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा, “उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”
- मानवता की सेवा: वे मानते थे कि गरीब और जरूरतमंद लोगों की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।
- आध्यात्मिकता: आत्मा की शुद्धि और ध्यान को उन्होंने जीवन का मुख्य उद्देश्य बताया।
मृत्यु और विरासत
स्वामी विवेकानंद ने भविष्यवाणी की थी कि वे 40 वर्ष की आयु से पहले इस दुनिया को छोड़ देंगे। 4 जुलाई 1902 को ध्यान करते समय उन्होंने महासमाधि प्राप्त की। उनका अंतिम संस्कार गंगा के तट पर किया गया।
स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं ने युवाओं के साथ-साथ पूरे विश्व को प्रेरित किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति और पश्चिमी सभ्यता के बीच एक सेतु का निर्माण किया और यह सिखाया कि विभिन्नता के साथ भी हम एकता में रह सकते हैं।
प्रमुख शिक्षाएं और कोट्स
"उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"
"एक समय में एक काम करो और उसे पूरे मन, शक्ति और आत्मा के साथ करो।"
“तुम जो सोचते हो, वही बन जाते हो। अगर तुम खुद को कमजोर मानते हो, तो कमजोर बन जाओगे।”
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।”
“जो कुछ भी तुम्हें शारीरिक, मानसिक या आध्यात्मिक रूप से कमजोर बनाता है, उसे जहर की तरह त्याग दो।”
स्वामी विवेकानंद पर सवाल-जवाब
प्रश्न 1: स्वामी विवेकानंद का मूल नाम क्या था?
उत्तर: स्वामी विवेकानंद का मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।
प्रश्न 2: स्वामी विवेकानंद का निधन कितनी उम्र में हुआ था?
उत्तर: स्वामी विवेकानंद का निधन 39 वर्ष की आयु में 4 जुलाई 1902 को हुआ था।
प्रश्न 3: स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ था?
उत्तर: स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था।
प्रश्न 4: राष्ट्रीय युवा दिवस का क्या महत्व है?
उत्तर: राष्ट्रीय युवा दिवस 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती पर मनाया जाता है, जो युवाओं को प्रेरित करने और उनके योगदान को मान्यता देने के लिए मनाया जाता है।
प्रश्न 5: स्वामी विवेकानंद का सबसे बड़ा योगदान क्या था?
उत्तर: स्वामी विवेकानंद का सबसे बड़ा योगदान 1893 में शिकागो की धर्म संसद में भारत का प्रतिनिधित्व करना था, जहां उन्होंने भारतीय आध्यात्मिकता और वेदांत दर्शन को विश्व के सामने प्रस्तुत किया।