डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद (3 दिसम्बर 1884 – 28 फरवरी 1963)  ने 26 जनवरी 1950 के दिन सुबह राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। राजेंद्र प्रसाद दो बार राष्ट्रपति रहे, उनका कार्यकाल 26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962 तक रहा।

राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के उपरांत 26 जनवरी 1950 के दिन वे प्रिंस एडवर्ड प्लेस (अब राष्ट्रपति भवन) से इर्विन स्टेडियम (अब नेशनल स्टेडियम) के लिए दोपहर 2 बजकर 30 मिनट से राजकीय बग्घी में बैठकर निकले थे। उनका राजकीय काफिला राष्ट्रपति भवन से निकलकर बारास्ता संसद भवन से होकर पार्लियामेंट स्ट्रीट, आउटर कनाॅट सर्किस, बाराखम्भा रोड, भगवान दास रोड, हार्डिंग एवेन्यू से होते हुए करीब 345 बजे इर्विन स्टेडियम पहुंचा था।

तब राष्ट्रपति के स्टेडियम में पहुंचने पर रक्षा मंत्री बलदेव सिंह ने उनकी अगवानी की और तीनों सेनाओं के प्रमुखों से परिचय करवाया। फिर राष्ट्रपति ने स्टेडियम में तिरंगा फहराया, जिसके बाद वहां मौजूद सशस्त्र सेना के बैंड समूहों ने नौसेना के ड्रम मेजर बर सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय गान की धुन बजाई थी। इन सभी बैंड समूहों के लिए संगीत का संयोजन नौसेना के संगीत निदेशक लेफ्टिनेंट एस. ई. हिल ने किया था। उसके बाद, राष्ट्रपति को तोप के 31 गोले दागकर सलामी दी गई।

राष्ट्रपति ने जीप पर ही खड़े होकर परेड का निरीक्षण किया और फिर सलामी स्थल की ओर लौट गए। इस परेड में तीनों सेनाओं और पुलिस के करीब तीन हजार अफसरों और जवानों ने भाग लिया था। मुख्य परेड के कमांडर ब्रिगेडियर जे. एस. ढिल्लन थे। जबकि सुनहले बैज के साथ नीली वर्दी पहने नौसेना के 120 सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह ने किया था। थल सेना के जवानों ने जैतून रंग की हरी वर्दी और टोपी पहनी थी।

जबकि विभिन्न इकाइयों के सैनिकों ने अपनी-अपनी रेजिमेंटों के अनुरूप रंगों वाली पोषाकें पहनी थी। जबकि वायु सेना के दो दस्तों में 240 वायुसैनिक थे, जिनकी कमान स्काड्रन लीडर वी एम राधाकृष्णन और स्काड्रन लीडर जे. एफ. शुक्ला के हाथ में थी। इसके अलावा, दूसरी पंजाब बाॅयज बटालियन की भी एक कंपनी थी। दिल्ली पुलिस के पुलिस अधीक्षक अजब सिंह की कमान वाली खाकी वर्दी पहने 120 जवानों की भी एक टुकड़ी थी।

इरविन स्टेडियम में परेड समारोह की समाप्ति के बाद राष्ट्रपति किंग्सवे (राजपथ) से होते हुए वापिस गवर्नमेंट हाउस लौट गए। राष्ट्रपति के काफिले के पूरे रास्ते पर सेना, नौसेना और वायुसेना के सैनिक तैनात किए थे। इतना ही नहीं, राजधानी के पूरे तयशुदा रास्ते में जगह-जगह पर स्वागत के लिए तोरण द्वार बनाए गए थे।

दिल्ली में समाज के सभी वर्गों की तिरंगे को फहराने और परेड समारोह में भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई थी। इर्विन स्टेडियम में होने वाले समारोह के लिए आस-पड़ोस के गांवों के निवासियों के आने के लिए प्रबंध किये गए थे। इस कार्यक्रम के लिए खास आमंत्रण भी भेजे गए थे। यहां आने वाले गणमान्य व्यक्तियों से लेकर जनसाधारण के वाहनों जैसे बस, कार, तांगा और साइकिलों की पार्किंग के लिए भी प्रबंध किया गया था। स्टेडियम के भीतर होने वाले कार्यक्रम के लिए आमंत्रित व्यक्तियों को विशेष रंग वाले अलग-अलग कार पार्क दिए गए थे।

इस परेड का मुख्य आकर्षण इर्विन स्टेडियम के ऊपर आकाश में विमानों का “फ्लाई पास्ट” था। जिसमें रॉयल इंडियन एयरफोर्स के चार इंजिन वाले लिबरेटर विमानों सहित एक बमवर्षक विमानों  की उड़ान प्रमुख थी। ‘लिबरेटर’ नामक इन विमानों के बेड़े का नेतृत्व विंग कंमाडर एच. एस. आर. गुहेल ने किया था।

फ्लाई पास्ट में भाग लेने वाले विमानों और समारोह स्थल पर होने वाले कार्यक्रमों में तालमेल बिठाने के लिए स्डेडियम में एक कंट्रोल रूम वाली कार भी तैनात थी। जिससे राष्ट्रपति के झंडारोहण के ठीक बाद होने वाले फ्लाई पास्ट में विमान स्टेडियम के ठीक ऊपर से सही समय पर उड़ान भर सकें।

उल्लेखनीय है कि भारत में कस्बों और शहरों के ऊपर आकाश में विमानों के समूह (फार्मेशन) में उड़ान पर प्रतिबंध था। पर चीफ ऑफ़ एयर स्टाफ एयर मार्षल सर थॉमस एलमर्हिस्ट ने ऐतिहासिक गणतंत्र दिवस परेड के महत्व को देखते हुए इसकी अनुमति दी थी। एक तरह से, आज़ाद हिंदुस्तान के मुक्त आकाश में, इन विमानों की उड़ान इतिहास के एक नए अध्याय के आरंभ का प्रतीक थी।

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