हम्मामखाने के बराबर और दीवाने खास के दक्षिण में पूरे संगमरमर के बने हुए चंद कमरे हैं, जिनके बीच में से नहर जाती है। इन कमरों और दीवाने खास के बीच संगमरमर का एक चबूतरा 46 फुट चौड़ा है। तस्वीहखाना, शयनगृह, बड़ी बैठक- सब एक ही इमारत में हैं। तस्बीहखाने के तीन कमरे दीवाने खास के सामने ही हैं, जिनके पीछे और तीन कमरे शयनगृह के नाम से मशहूर हैं और शयनगृह से मिला हुआ दालान बड़ी बैठक या तोशाखाना कहलाता है।
ये तीनों इमारतें मिलकर दीवाने खास के बराबर हैं। इस चबूतरे के बराबर बादशाह के शयनगृह का एक दालान बना हुआ है, जो तस्बीहखाना कहलाता है। कभी-कभी जब एकांत की जरूरत पड़ती थी या खास खास उमरा का दरबार होता था तो बादशाह यहां आते थे। इस दीवार के बीच में संगमरमर का तराजू का बना हुआ है और वहां मेजाने अदल (न्याय का तराजू) लिखा हुआ है और तारों के झुरमुट में से चांद निकलता दिखाया गया है।
बहुत-सा सुनहरी काम किया हुआ है। इसी तस्बीहखाने में से शयनगृह का रास्ता है, जो खासी ड्योढ़ी कहलाती है। उन सब कमरों बहूमूल्य रंग-बिरंगे पत्थरों की पच्चीकारी का काम था। असली पत्थर लोगों ने निकाल लिए। उन गढ़ों में रंग भर दिया गया है। बीच के कमरे की उत्तर-दक्षिण दीवार के दरवाजों में संगमरमर की जालियां लगी हुई हैं। पश्चिमी कमरे में से दीवाने खास को रास्ता जाता है, जिसे ड्योढ़ी खास कहते हैं। इस दालान के बीच में एक हौज है, जो संगमरमर का है। इसकी तह में तरह-तरह के रंगीन और बहुमूल्य पत्थरों से हजारों गुल-बूटे और पत्तियां बनाई गई हैं और हर फूल की पंखड़ी में एक सूराख रखा है कि जब पानी छोड़ा जाता था तो उन सूराखों में से फव्वारे छूटते थे।
इस हौज की पच्चीकारी में हजारों पंखुड़ियां हैं। इस दालान के आगे संगमरमर का सहन है और नहर बहिश्त (स्वर्ग की नहर) बहती और लहराती रंगमहल में चली जाती है। पश्चिमी रुख के दो कमरों में कुछ सामान सजाकर रखा गया है, जिसमें शाहजहां की खास तलवार आबदार है।
बुर्ज तिला या मुलम्मन बुर्ज या खास महल शयनगृह की पूर्वी दीवार से मिला हुआ दरिया की तरफ एक गुंबददार बरामदा है। यह एक अष्टकोण कमरा है, जिस पर गुंबद है। किसी जमाने में सारे गुंबद पर तांबे का झोल चढ़ा हुआ था, जिस पर सोने का मुलम्मा था। अब उस पर सफेद अस्तरकारी है। इस कमरे के तीन कोने तो शयनगृह में आ गए हैं और पांच कोने दरिया की तरफ हैं, जिनमें से चार में संगमरमर की जालियां लगी हुई हैं।
इसी प्रकार के मुसम्मन बुर्ज आगरा और लाहौर के किलों में भी बने हुए हैं। यह बतौर झरोखे के काम में लिए जाते थे, जहां बादशाह रोज बाहर निकलकर नीचे खड़ी हुई अपनी रिआया को दर्शन दिया करता था। मुसम्मन बुर्ज का असली बुर्ज अब नहीं रहा। मौजूदा बुर्ज गदर का बना हुआ है। असली और तरह का था। उस पर सोने के पत्तरों का खोल चढ़ा हुआ था।