सैन फ्रांसिस्को में ली आखिरी सांस; संगीत जगत में उनकी कमी को भरना मुश्किल
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
मशहूर तबला वादक और म्यूजिक कंपोजर उस्ताद जाकिर हुसैन का 73 साल की उम्र में सैन फ्रांसिस्को में निधन हो गया। उनकी अचानक तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन वे जिंदगी की जंग हार गए। उनके निधन से भारतीय और वैश्विक संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
उस्ताद जाकिर हुसैन: एक महान संगीत यात्रा
उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ। उनके पिता, मशहूर तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा, ने उन्हें बचपन से ही संगीत की शिक्षा दी।
16 साल की उम्र में, उन्होंने अपना पहला स्टेज परफॉर्मेंस दिया और जल्दी ही भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक प्रतिष्ठित नाम बन गए।
संगीत में नए आयाम जोड़ने वाले कलाकार
उस्ताद जाकिर हुसैन ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई। वे शिवकुमार शर्मा, हरि प्रसाद चौरसिया, और रविशंकर जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ जुड़े।
उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट्स पर भी काम किया, जिनमें शक्ति बैंड और द वर्ल्ड ड्रम प्रोजेक्ट खास हैं।
उन्होंने भारतीय संगीत को पश्चिमी श्रोताओं से जोड़ने के लिए जॉन मैकलॉफलिन, गीतमुनी एल शोरे और मिकी हार्ट के साथ काम किया।
उपलब्धियां और सम्मान
- पद्म श्री (1988) और पद्म भूषण (2002) से सम्मानित।
- ग्रैमी अवॉर्ड जीतने वाले पहले भारतीय तबला वादक।
- राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान।
- दुनियाभर के प्रतिष्ठित मंचों पर प्रदर्शन, जिनमें कार्नेगी हॉल और रॉयल अल्बर्ट हॉल शामिल हैं।
- भारतीय और अंतरराष्ट्रीय श्रोताओं के बीच सेतु बनाने के लिए उनकी प्रशंसा हुई।
- 1970 में भारतीय और पश्चिमी संगीत को जोड़ने वाले बैंड “शक्ति” का हिस्सा बने।
संगीत को समर्पित जीवन
उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपनी कला के जरिए संगीत में गहरी समझ और संवेदना का परिचय दिया। उनकी उंगलियां जब तबले पर चलती थीं, तो ऐसा लगता था जैसे एक कहानी कही जा रही हो।
उन्होंने संगीत को न सिर्फ परंपरागत रूप से निभाया, बल्कि उसमें नवाचार जोड़कर इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति
उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन भारतीय और वैश्विक संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उनकी आत्मा को शांति मिले।